
यूपी में पिछले एक साल में लगभग 11 बार आए सरसंघचालक मगर मुलाक़ात एक भी नसीब नहीं हुई..
कई मंचों से भागवत जी ने बिना नाम लिए सरकार की कार्य प्रणाली पर नाराज़गी व्यक्त की “हर जगह मंदिर मत खोदो, जातिय भेदभाव को बढ़ावा मत दो.. “
जिस हिन्दु राष्ट्र की परिकल्पना के साथ संघ ने भगवा धारण किए व्यक्ति को ऐसे राज्य का मुख्यमंत्री बनवाया जहां से निकली आवाज देश की दिशा और दशा तय करती है,
मुखिया की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने हिन्दुत्व का चोला उतारकर जातीय अस्मिता का आवरण धारण कर लिया।
हिन्दुओं को जाति में बांटने ख़ासकर सवर्णों में राजपूत-ब्राह्मण के बीच ऐसी खाई पैदा कर दी कि पार्टी का परम्परागत वोटर (ब्राह्मण) भी छिटकने लगा…
भाजपा के कई सवर्ण नेता अब बोलने लगे हैं कि 15-16 प्रतिशत आबादी पर 3-4 प्रतिशत वाले का वर्चस्व!!! ऐसे कैसे चल पाएगी हिन्दुत्व की राजनीति पार्टी की…
इसी खींचतान के चलते पार्टी को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने में इतना वक्त लग रहा है…