एक जननायक का दर्द: जब इंसाफ की राह में खुद को अकेला पायाजिसका नाम है विजेंद्र बहादुर सिंह

मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश:

यह कहानी है उस शख़्स की, जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई, दलितों के हक़ के लिए लड़ा और सिस्टम में छिपे कमीशनखोरों के चेहरे बेनकाब करने की ठानी. लेकिन विडंबना देखिए, जिस समाज के लिए वो जंग लड़ रहा था, उसी समाज के कुछ लोगों को भू-माफिया और भ्रष्टाचारियों ने अपने साथ मिला लिया और उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया. हम बात कर रहे हैं विजेंद्र बहादुर सिंह की, मिर्जापुर के पौनी, भुड़कुड़ा के एक ऐसे सपूत की, जिसने अन्याय के खिलाफ संघर्ष को अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया.

संघर्ष की चिंगारी

विजेंद्र बहादुर सिंह, स्वर्गीय रामफल सिंह के बेटे हैं, दो बच्चों – विवेक कुमार और रागिनी सिंह, और पत्नी सुंदरी देवी के साथ एक साधारण जीवन जी रहे थे. लेकिन उनके भीतर का समाजसेवी उन्हें चैन से बैठने नहीं देता था. इस कहानी की शुरुआत होती है गांव की एक पोखरी से, जिसे कुछ दबंगों ने पाटकर उस पर मकान बना लिए थे. नतीजा यह हुआ कि प्राथमिक विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र पानी से लबालब भर जाते, और आए दिन लोगों में मारपीट और गाली-गलौज होने लगी. विजेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि खुद उनकी भी दबंगों से कई बार कहासुनी हुई. पशु-पक्षियों के लिए भी पानी की घोर किल्लत होने लगी थी.
यह सब देखकर विजेंद्र बहादुर सिंह का मन विचलित हो उठा. उन्होंने सोचा, “अब कुछ करना होगा.”

भ्रष्टाचार के खिलाफ रणभेरी

साल था 6/4/2011 . विजेंद्र बहादुर सिंह ने पहला प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी और तहसीलदार चुनार को दिया. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. यहीं से उनके भीतर की चिंगारी आग बन गई. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. अधिकारियों के काले कारनामों का खुलासा करना शुरू किया और गांव के दलितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए आवाज़ बुलंद की. उन्हें लगा कि यह उनकी लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे समाज की लड़ाई है.
मगर, यहीं से कहानी में एक भयानक मोड़ आया. जिस दलित और पीड़ित समुदाय की वो आवाज़ बने थे, भू-माफिया और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों ने उन्हें पैसे का लालच देकर अपने साथ मिला लिया. जिनकी लड़ाई विजेंद्र बहादुर सिंह लड़ रहे थे, उन्हीं लोगों ने उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करा दिए. यह ऐसा क्षण था, मानो किसी ने उनके ही सीने में खंजर घोंप दिया हो.

अकेला योद्धा और सिस्टम की साजिश

विजेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना, सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़े के खिलाफ बोलना और तहसील में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों को भी रास नहीं आया. गांव के दबंगों, भू-माफियाओं और तहसील के भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत का नतीजा यह हुआ कि उन्हें न्याय मिलना तो दूर, उलटा उन पर कई मुकदमे लाद दिए गए.
संघर्ष का यह सिलसिला चलता रहा और एक बड़ी कहानी बन गई. एक गांव का समाजसेवी, सिस्टम की साज़िशों का शिकार होकर गुंडा बना दिया गया. विजेंद्र बहादुर सिंह बताते हैं कि यह सब अधिकारियों का खेल था. नीचे से ऊपर तक प्रार्थना पत्र देने के बावजूद जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने सिस्टम के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई. इसका परिणाम यह हुआ कि दबंगों और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों का एक संगठित गिरोह बन गया. उन्होंने गरीबों और दलितों को मिलाकर विजेंद्र बहादुर सिंह पर एक के बाद एक फर्जी मुकदमे थोप दिए.
“वह दृश्य इतना भयानक था, जैसे लग रहा था कि अचानक महाप्रलय आ गया हो,

” विजेंद्र बहादुर सिंह बताते हैं. “कोई ऐसी छोटी-बड़ी धाराएं नहीं थीं जो हमारे ऊपर नहीं लगाई गईं. दबंगों ने अपना हर हथकंडा अपनाया.”
न्याय की लौ और बुलंद हौसले
इतने वार झेलने के बाद भी विजेंद्र बहादुर सिंह का हौसला टूटा नहीं, बल्कि और बुलंद हो गया है. उनका कहना है, “मैं रहूं या ना रहूं, लेकिन अब हमारी लड़ाई को लड़ने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठनों ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का बीड़ा उठा लिया है.” उन्हें पूरा यकीन है कि अब उन्हें न्याय मिलेगा और भू-माफियाओं, दबंगों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी.
विजेंद्र बहादुर सिंह ने यह भी कहा कि वो आगे सारा वृतांत बताएंगे कि किस तरीके से अन्याय का झंडा गाड़ने वाले लोगों ने अपना काला साम्राज्य स्थापित किया.
उनकी जुबान पर आज भी वही शेर है:
“हम अकेले चले थे जानिब-ए-मंज़िल,
साथ लोग आते गए कारवां बनता गया.”
एक नई सुबह का इंतजार।

भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक ए.के. बिंदूसार का कहना है कि , विजेंद्र बहादुर सिंह के संदर्भ में जानकर दुख हुआ, लेकिन उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया है कि वे इस पूरी कहानी की विस्तार से जांच-पड़ताल करेंगे और सारी सच्चाई सामने लाएंगे.
यह कहानी सिर्फ विजेंद्र बहादुर सिंह की नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों की है जो भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं, और सिस्टम उन्हें ही दुश्मन बना लेता है. यह कहानी एक संदेश है – अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना कभी व्यर्थ नहीं जाता, भले ही राह कितनी भी कठिन क्यों न हो. एक दिन सच्चाई ज़रूर सामने आती है.
अगले भाग में, हम और भी चीजों को स्पष्ट करेंगे. तब तक के लिए नमस्कार और इंतज़ार करें.
जय हिंद, जय भारत,
इंकलाब जिंदाबाद।।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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