समाज उसी को पूछता है, जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जीता है : लक्ष्मी सिन्हा

बिहार। भारतीय दर्शन का एक मंत्र है-‘सादा जीवन उच्च विचार।’देखने-सुनने में यह बड़ा सरल लगता है, लेकिन उतना ही कठिन है। यह बातें एक कार्यक्रम के दौरान समाजसेवी श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा कहां आगे उन्होंने कहा कि जीवन में अधिकांश बुराइयां इस मंत्र की अवहेलना से उत्पन्न होती है। सादगी और सात्विकता एक दूसरे के पूरक है। जिसमें सादगी का गुण होता है, वह असाति्वक कभी हो नहीं सकता। हमारे यहां हमेशा इस बात पर जोर दिया गया है कि मनुष्य हर तरह से शुद्ध रहे। संयमित जीवन जिए। ताप एवं साधना से अपने जीवन को निखारे। कठोर साधना से आत्मा परमात्मा बन सकता है। गुणी मनुष्य सार को ग्रहण करते हैं, छाया को छोड़ देते हैं। जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता, वही समाज में आदर के योग्ग बनता है। इसी से कहा जाता है-गुण की सर्वत्र पूजा होती है। आगे श्रीमती सिन्हा ने कहा कि आज संसार में मानव मूल्यों का निरंतर ह्मस हो रहा है। भौतिक मूल्य चारों ओर छा गए हैं। यही वजह है कि नान प्रकार की विकृतियों से मानव, समाज और राष्ट्र परेशान है। आज की हिंसा, युद्ध एवं आतंक की समस्या का मूल करण परिग्रह है। मनुष्य अपने से, अपने लोगों और प्रकृति से कट रहा है। उसका एकता को रहा है और सामाजिकता से भी कहीं गुम होती जा रही है। आज मानव ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां उसके आगे का रास्ता अंधेरी सुरंग से होकर गुजरता है। लगता है कि जैसे स्वार्थ इस युग का ‘गुण’बन गया है। भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार हो गया है। उसी की आराधना में सब लिप्त हैं। यह देखते हुए भी कि हम नीचे जा रहे हैं, अपनी गति और मति को हम रोक नहीं पाते। इस प्रकार की स्थिति से उभरने का एक ही मार्ग है और वह यह है कि हम अपने अंतर हो टटोलें। अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मुंह आदि दुर्गुणों को दूर करें और उसे मार्ग पर चलें, जो मानवता का मार्ग है। समाज उसी को पूजता है, जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जीता है।
राम आसरे

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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