
राजनैतिक व्यंग्य-समागम
1. ऑपरेशन सिंदूर की क़ीमत तुम क्या जानो विपक्षी बाबू! : राजेंद्र शर्मा
ये विपक्ष वाले जब राष्ट्रभक्ति ही नहीं समझते हैं, तो ऑपरेशन सिंदूर की कीमत क्या जानेंगे? वर्ना ऑपरेशन सिंदूर में अपने अर्णव गोस्वामियों, गौरव सामंतों, नाविका कुमारों, अंजना ओम कश्यपों, अशोक श्रीवास्तवों आदि, आदि के वीरतापूर्ण कारनामों के गुण गा रहे होते या नहीं!
पर खुद गुण गाना तो छोड़िए, बेचारे मंत्री अश्विनी वैष्णव जी ने देश के मीडिया महारथियों का युद्ध के टैम पर देश के काम आने के लिए जरा सा धन्यवाद क्या कर दिया, ये तो बेचारे वैष्णव जी के ही पीछे पड़ गए। शोर मचा रहे हैं कि तो क्या दुनिया यह समझे कि इन सब ने जो-जो किया, जो-जो फेक न्यूज चलाए, जो-जो युद्ध के फर्जी दृश्य दिखाए, सब वैष्णव की सरकार के इशारे पर था।
इनके गोदी मीडिया होने की ख्याति तो खैर दुनिया भर में और दसों दिशाओं में पहले ही फैल ही चुकी थी। लोगों ने कहना और मानना शुरू कर दिया है कि गोदी मीडिया की खबर है, तो जरूर खबर से अगले दर्जे की चीज होगी ; कोई मजाक, कोई एंटरटेनमेंट की चीज। पर यह अब पता चला रहा है और खुद मंत्री जी के श्रीमुख से पता चल रहा है कि यह गोदी सवार होना ही फेक न्यूज का असली स्रोत है, आदि, आदि।
पर यह इल्जाम ही झूठ है, फेक न्यूज है। इस इल्जाम का आधार क्या है? यही ना कि गोदी मीडिया योद्धाओं ने जो खबरें चलायीं, सच नहीं थीं। किसी ने खबर चलायी कि भारतीय नौसेना ने करांची बंदरगाह को पूरी तरह से तबाह कर दिया, यह सच नहीं था। भारतीय नौसेना ने ऐसा कुछ नहीं किया था। किसी ने खबर चलायी कि भारतीय थल सेना पाकिस्तान की सीमाओं में घुसकर आगे बढ़ती जा रही थी, यह भी सच नहीं था। भारतीय थल सेना ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की थी। किसी ने शोर मचाया कि हमने रावलपिंडी पर कब्जा कर लिया है, तो किसी और ने दावा किया कि भारत ने पाकिस्तान के पांच शहरों पर कब्जा कर लिया है। कंपटीशन तेज हुआ तो किसी और ने पच्चीस शहरों पर कब्जा करा दिया, तो किसी और ने आधे पाकिस्तान पर। और जो कंपटीशन में सबसे तेज निकला, उसने पूरे पाकिस्तान पर।
किसी और ने फौज में तख्तापलट करा दिया और आसिम मुनीर को जेल में डलवा दिया, तो किसी और ने उदारता दिखाते हुए उसे भागने का मौका दे दिया और किसी और ने उसके छुपने का ठिकाना भी बता दिया। लेकिन, इस सब के सच नहीं होने से क्या होता है? खबर-खबर होती है। खबर में सच-झूठ कुछ नहीं होता। वास्तव में कुछ सच-झूठ ही कहां होता है। सिंपल है — अगर कुछ होता है, तो अपने देश का हित होता है, अपने देश का पक्ष होता है, अपने देश का नफा, अपने देश का नुकसान होता है। जो देश के साथ वो सच, जो दूसरे देश के साथ वो झूठ। इसमें मुश्किल क्या है?
इसे कलियुग ही कहा जाएगा कि भगवा पार्टी को बाकायदा वीडियो बनाकर, देश को और जाहिर है कि बाकी दुनिया को भी, यह ज्ञान देना पड़ा है कि सच-झूठ कुछ नहीं होता है और कहीं युद्ध का टैम हो, तब तो सच ही झूठ और झूठ ही सच होता है। यही हमारी प्राचीन परंपरा है, संस्कृति है, धर्म है, इतिहास है। बाकी छोड़िए, यही महाभारत का ज्ञान है। सिर्फ गीता नहीं, पूरे महाभारत का ज्ञान। महाराज युधिष्ठिर याद हैं। उनसे बड़ा सत्यवादी कौन होगा? लेकिन, महाभारत के युद्ध में क्या हुआ? युधिष्ठिर को भी मानना पड़ा कि सत्य और असत्य कुछ नहीं होता है। होता है, अपना पक्ष और विरोधी का पक्ष। गुरु द्रोणाचार्य को मरवाना था, तो युधिष्ठिर ने भी सत्य की परिभाषा लचीली कर दी। पुत्र अश्वत्थामा के मारे जाने का अर्ध सत्य द्रोणाचार्य के सामने युधिष्ठिर ने इस तरह बोला कि, पुत्र के शोक में पिता ने प्राण ही त्याग दिए। पिता के शोक में अश्वत्थामा ने असमय ही अपना अमोघ अस्त्र चला दिया और खुद भी मारा गया। पांडवों के युद्ध जीतने के लिए, युधिष्ठिर का झूठ जरूरी था यानी वही पांडवों का सत्य था। इतनी सी बात जो विपक्षी नहीं समझ सकते हैं, उनसे देशभक्ति की उम्मीद ही कैसे की जा सकती है!
बेचारे गोदी मीडिया वाले जब पूरी ताकत लगाकर पाकिस्तान को पीट रहे थे और वहां तक पीट रहे थे, जहां तक देश की सेना भी नहीं पीट पा रही थी, उसमें किसी देशभक्त को क्यों प्राब्लम होनी चाहिए। देशभक्त को प्राब्लम होनी चाहिए, जब दुश्मन वही करे। पर कोई गोदी मीडिया पर यह आरोप नहीं लगा सकता है कि उसने दुश्मन को पीटते हुए दिखाया। फिर उसकी राष्ट्र सेवा पर सवाल खड़े क्यों किए जा रहे हैं? उस पर देश का नाम बदनाम करने के इल्जाम क्यों लगाए जा रहे हैं? और अगर गोदी मीडिया की ऐसी राष्ट्र सेवा पर इसी तरह से सवाल उठाए जाते रहे, तो क्या हम कभी दुश्मन से जीत भी पाएंगे? पाकिस्तान को जीतने का जो मुंह से एलान तक नहीं कर सकते, वो क्या कभी उसे जीत पाएंगे? तो क्या हम अखंड भारत का सपना यूं ही देखते ही रह जाएंगे।
फिर ऑपरेशन सिंदूर की कीमत वही तो नहीं है, जो पाकिस्तान को या आतंकवादियों को झूठा-सच्चा पीटकर वसूल की गयी है। वह तो एकदम फौरी वसूली थी, जो डियर फ्रेंड ट्रंप ने रुकवा भी दी। ऑपरेशन सिंदूर की कीमत वह भी तो है, जो दस दिन की तिरंगा यात्रा में, सबसे ताकतवर फौजी के रूप में मोदी जी की तस्वीर घुमाकर वसूल की जाएगी। और जो बिहार के चुनाव में वसूल की जाएगी। बल्कि हुआ, तो अगले साल के चुनावों में भी वसूल की जाएगी। अगले ऑपरेशन तक वसूल की जाएगी। ऑपरेशन सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो विपक्षी बाबू!
2. संघवाहकों के साथ ‘अन्याय!’ : विष्णु नागर
भाजपा की रूलबुक के हिसाब से मध्य प्रदेश के जनजातीय मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने कुछ भी ग़लत नहीं कहा, बिलकुल भी नहीं। वही कहा, जो संघ और मोदी के सच्चे स्वयंसेवक को कहना चाहिए। ये मंत्री बेचारे संघ-भाजपा के अनकहे रूटीन का श्रद्धापूर्वक पालन कर रहे थे। अपनी ओर से कुछ भी नया नहीं जोड़ रहे थे। लाइन से हटकर कुछ नहीं कर रहे थे।
यह तो नाम से ही स्पष्ट है कि कर्नल सोफिया कुरैशी किस धर्म की हैं और संघ-भाजपा की नियम -पुस्तिका के अनुसार इस धर्म को मानने वाले दो-चार अपवादों को छोड़कर सभी आतंकवादी, पाकिस्तानी, देशद्रोही आदि हैं। विजय शाह ने वही बोला, जो आगे जाकर बाकी भाजपा सांसदों, विधायकों , मंत्रियों और स्वयंसेवकों को अपनी-अपनी तरह से बोलना था। उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने भी देश और देश की सेना को मोदी जी के आगे नतमस्तक करवाकर उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया था।यही भाजपा में आगे और आगे और आगे बढ़ते रहने का राजमार्ग है। इस पर जो भी चला, वह पिछले ग्यारह साल में सफलता की सीढ़ियां चढ़ता गया, उतरा नहीं।
रुका नहीं, थमा नहीं, थका नहीं। उसने पीछे मुड़कर देखा नहीं। वह मंजिल की ओर बढ़ता गया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की गद्दी का तो आरक्षण हो चुका है, मगर वह मुख्यमंत्री बना, मंत्री बना, सांसद नहीं बना, तो विधायक तो बना ही। कुछ भी नहीं बन सका, तो जिला पंचायत का अध्यक्ष बना, किसी नगर निगम का महापौर या नगर पालिका का अध्यक्ष बना।यह भी नहीं बना, तो पंच-सरपंच बना। और यह सब कुछ भी नहीं बना, तो इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, ईडी, सीबीआई के जैसे सुरक्षित हो गया। कहने का मतलब यह कि इस मार्ग पर जो भी भक्तिभाव पूर्वक चला, कभी निराश नहीं हुआ।हताश नहीं हुआ।
पिछले ग्यारह साल में इस भाषा में बोलने वालों ने बनाया ही बनाया। कमाया ही कमाया। विजय शाह ने हाथ घुमा-घुमाकर कर वीरतापूर्ण अंदाज में कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहा, तो कुछ और बड़ा पाने के लिए कहा, बेमक़सद नहीं कहा। विडियो गवाह है कि जहां कहा, वहां इस पर तालियां खूब पिटीं।एक भूतपूर्व मंत्री और विधायक उषा ठाकुर ने अपने मन की यह बात सुनकर अपनी खास मुस्कुराहट के साथ इसका स्वागत किया। सब चकाचक चल रहा था। विजय शाह ने यह जुमला फेंककर पार्टी में अपने नंबर बढ़ा लिये थे। मन ही मन मोहन यादव को राजनीतिक कुश्ती में पछाड़ दिया था। मुख्यमंत्री के सिंहासन को डगमगा दिया था। कल्पना में वह मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठ भी चुके थे, प्रधानमंत्री से आशीर्वाद ले चुके थे, अमित शाह के यहां सिर नवा चुके थे। राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बन चुके थे। किसे मालूम था कि मध्य प्रदेश में एक उच्च न्यायालय भी हुआ करता है और उनके दो जजों में इतनी हिम्मत है कि वे इस प्लान में भांजी मारने की कोशिश कर सकते हैं! अमूमन अदालतें ऐसी कठिनाइयां पैदा करती नहीं। जजों में आजकल दया-माया काफी दिखाई देती है।
मंत्री जी के आकलन में यह ज़रा सी भूल हो गई थी कि उन्हें यह याद नहीं रहा कि सोफिया कुरैशी केवल मुस्लिम नहीं हैं। वे सेना में कर्नल हैं। और कर्नल ही नहीं हैं, आपरेशन सिंदूर के दौरान सेना की प्रवक्ता हैं! सेना की धर्मनिरपेक्ष छवि की ब्रांड एम्बेसडर हैं।
ऐसे में मामला उल्टा भी पड़ सकता है। शुरू में जरा-सा हल्ला मचा था, तो बेचारे ने माफी मांगकर सब मैनेज कर लिया था, मगर बीच में हाईकोर्ट आ गया। उसने खुद आगे बढ़कर मंत्री जी के शब्दों का संज्ञान ले लिया और चार घंटे के अंदर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने यहां तक कह दिया कि एफआईआर आज ही रजिस्टर करें, ऐसे मामलों में कोई कल नहीं है। मैं कल तक जिन्दा रहूं, न रहूं। उन्होंने ऐसी दफाओं में केस दर्ज करने का हुक्म दिया कि जिसमें मंत्री को सात साल की सज़ा हो सकती है। अगले दिन पुलिस ने कमजोर एफआईआर दर्ज की, तो पुलिस को भी काफी डांट पिलाई। दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज ने भी कुछ साल पहले ऐसी हिम्मत दिखाने की गुस्ताखी की थी तो रातों-रात उनका स्थानांतरण कर दिया गया था!
हमारा तो यही कहना है कि इन मंत्रियों के साथ इतनी सख्ती ठीक नहीं। देखिए न अगर अदालतों ने इतना सख्त होना शुरू कर दिया, तो जेलें इनसे भर जाएंगी, बेचारे छोटे-छोटे अपराधी तब कहां जाएंगे? तिरंगा यात्रा निकालने के इस खुशगवार मौसम में अधिकांश भाजपाईयों और संघियों के साथ ऐसा ‘अन्याय ‘ठीक नहीं।’ इस तरह तो आकाजी से लेकर काकाजी तक कोई नहीं बचेगा। जेल से देश चल रहा होगा और देश जैसे आज चल रहा है, उसी तरह चल रहा होगा। जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री होते हुए जेल में थे, तो दिल्ली के उप राज्यपाल की मेहरबानी से सरकार उतनी ही अच्छी या उतनी ही खराब चल रही थी, जितनी कि अमूमन चलती है। बस केजरीवाल जी अंदर तड़प रहे थे।
इनके खिलाफ एफआईआर ठीक से दर्ज हुई, इनका ग़लती से इस्तीफा हो गया (वैसे होगा नहीं, भाजपा में यह परंपरा नहीं) तो बाकी सब तो ठीक है, लेकिन मगर हिंदुत्व का छोटी ऊंगली बराबर नुकसान हो जाएगा। ‘नये भारत’ के प्रतीक बुलडोजर का भविष्य कुछ अंधकारमय हो जाएगा, गरीब और मुसलमान थोड़ी-सी राहत पा जाएंगे। और जिन्हें हार्ट अटैक अभी तक नहीं आया, आ जाएगा।
(राजेंद्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)