ताल खुदा नहीं मगर कुदा देना ही तो है, शंकर देव तिवारी

आज की बात

  • शंकर देव

हमारे बड़े कहा करते थे फलां नेता विश्व का अमरीका संचालित एक संस्था के एजेंट हैं। तब देश उनकी नीतियों को सीधे स्वीकार नहीं करते थे तो ज्यादातर विपक्षी नेता ही इस संस्था के स्थाई अस्थाई सदस्यता दिया करते थे जैसे जैसे विश्व की दो से तीन शक्तियां हुईं तथा जैसे ही उनमें से एक शक्ति को शक्ति विखण्डित कर किया वैसे ही सत्ता सीन शक्तियाँ भी अपनी इन शक्तियों के आकाओं को संस्था में बिठाने शुरू कर दिया गया। जिससे उन शक्तियों पर भी आतिताईयों की नजर पड़ने लगी तो ये दूसरों के प्रति गेर जिम्मेदार होने लगे। इस व्यवस्था के तहत ही एशिया में देश लड़ने लगे यूरोप भी कम नहीं पड़ा। अब अमरीका कनाडा मे भी भारत पाक जैसे उकरेंन रूस जैसे हाल दिख रहा है जो विश्व गुरु बनने की जो होड़ है की ललक बढी है।
इसके अलावा साफ दिखने लगा है कौन चीन के साथ नहीं कौन अमरीका कौन रूस तो कौन फ्रांस कोरिया के साथ गल्फ देशों के साथ भी अलग थलग नहीं दिखता है। ऐसे दौर में भारत की शक्ति पर नियंत्रण करने की होड़ को खत्म करना भी है कि भारत अपने आपको सामान्य सा दिखा कर एक नया संदेश दे रहा है भारत।
सेना के आपस के समझौते को और आगे बढ़ाने से पहले कई सामान्य हालात की और बढ़ना भी असंगत स्थिति दर्शाता है।
हमने हवाई सेवाएं शुरू करदी। बी जेपी तिरंगा यात्रा कार्य क्रम देने केसाथ विपक्ष की हुंकार शुरू होने के साथ ही मोदी का रात्रि सम्बोधन का क्या अर्थ है तब जब दोनों देश के मध्य होने बाली बातचीत सार्वजनिक ही नहीं हुई है। आश्चर्य है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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