
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक स्टेटमेंट जारी किया है। इसमें कहा गया कि जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर हुई घटना के संबंध में गलत सूचना और अफवाहें फैलाई जा रही हैं। वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं और कॉलेजियम के सदस्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनको इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का प्रस्ताव निष्पक्ष और जांच प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है। वह हाई कोर्ट में वरिष्ठता में 9वें नंबर पर होंगे।
क्या कहा हाई कोर्ट ने!
दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने 20 मार्च की कॉलेजियम बैठक से पहले जांच शुरू की थी और आज सीजेआई को रिपोर्ट सौंपेंगे। चीफ जस्टिस की रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा और आगे की आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। वहीं हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद ने जस्टिस यशवंत वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने शुक्रवार को कहा कि अगर किसी आम कर्मचारी के घर से 15 लाख रुपये मिलते हैं, तो उसे जेल भेज दिया जाता है। एक न्यायाधीश के घर से 15 करोड़ रुपये की नकदी मिलती है और उसे ‘घर वापसी’ दी जा रही है। क्या इलाहाबाद हाई कोर्ट एक कूड़ेदान है।
जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट नहीं भेजा जाए- अनिल तिवारी
एक समाचार न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल तिवारी ने कहा, ‘करप्शन के खिलाफ हाई कोर्ट बार खड़ा है। हम उसका स्वागत यहां पर नहीं होने देंगे। उनकी ज्वाइनिंग अगर यहां पर होती है तो हम न्यायालय में अनिश्चित काल के लिए रहेंगे और वकील कोर्ट से दूर रहेंगे। बहुत बड़ी जनरल हाउस होने जा रही है। इसमें सारे लोग यह मिलकर तय करेंगे कि हमारी मांगे क्या है। इतना तो तय है कि जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद में नहीं भेजा जाए। यह हमारी मांग है। किसी तरह की आपको जांच की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अगर जस्टिस वर्मा कोई एक्सप्लेनेशन देते हैं तो उससे लोगों का भरोसा वापस नहीं आ सकता है। लोगों का भरोसा पूरी तरह से टूट चुका है। हम कॉलेजियम के फैसले के खिलाफ हैं।’
जिसने आग बुझाई उसकी भी सुनो
जस्टिस वर्मा के आवास पर नहीं मिली कोई नकदी- डीएफएस चीफ अतुल गर्ग
दिल्ली फायर सर्विस चीफ अतुल गर्ग ने शुक्रवार को बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड की टीम को नकदी नहीं मिली। गर्ग ने बताया कि 14 मार्च की रात 11.35 बजे कंट्रोल रूम को वर्मा के लुटियंस दिल्ली में मौजूद आवास पर आग लगने की सूचना मिली और दो दमकल गाड़ियां तुरंत मौके पर पहुंच गईं। रात 11.43 बजे फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं। गर्ग ने बताया कि आग स्टेशनरी और घरेलू सामान से भरे एक स्टोर रूम में लगी थी, आग पर काबू पाने में 15 मिनट लगे। कोई हताहत नहीं हुआ। डीएफएस चीफ ने कहा कि आग बुझाने के तुरंत बाद हमने पुलिस को आग की घटना की सूचना दी। इसके बाद फायर डिपार्टमेंट के कर्मियों की एक टीम मौके से चली गई। हमारे कर्मियों को अपने अभियान के दौरान कोई कैश नहीं मिला।
क्या बाकई कुछ और है परदे के पीछे
शायद यह भी हो सकता है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के पीछे उनका कॉलेजएम मेँ सदस्य होना और हाई कोर्ट की वरिष्ठता सूची में 9 वें नंबर के जज होना अपराध तो नहीं बन रहा है। क्योंकि इसी प्रक्रिया के तहत जस्टिस यशवंत वर्मा सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक भी कुछ महीने के लिए पहुंचने वाले हो सकते है.
क्या इन कारणों से जस्टिस वर्मा पर मिडिया हावी हुई है?
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियाँ: न्यायमूर्ति वर्मा ने माना कि ईडी के पास धन शोधन के अलावा किसी अन्य अपराध की जाँच करने का अधिकार नहीं है और एजेंसी खुद से यह नहीं मान सकती कि कोई अपराध किया गया है।
यह भी समझ लीजिये!क्या यही कारण तो नहीं है!
दिल्ली आबकारी नीति मामले की मीडिया रिपोर्टिंग: न्यायमूर्ति वर्मा ने रिपब्लिक टीवी, इंडिया टुडे, जी न्यूज और टाइम्स नाउ को दिल्ली आबकारी नीति मामले में मुकदमे की कथित गलत रिपोर्टिंग के लिए नोटिस जारी किया और देश के तमाम समाचार चैनलों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मामले पर सभी प्रसारण सीबीआई और ईडी द्वारा जारी “आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियों” के अनुरूप हों।
गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम: न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि यूएपीए की धारा 45(1) के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी देने के लिए जिन प्रस्तावों और दस्तावेजों पर भरोसा किया जाता है, उनका खुलासा सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(ए) के तहत छूट दी जा सकती है।
न्यायिक पूर्वाग्रह: न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि किसी मामले में न्यायिक पूर्वाग्रह को वास्तव में मौजूद साबित करने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि इसे केवल एक सामान्य व्यक्ति के दृष्टिकोण से परखा जाना चाहिए और उचित आशंका के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
यह भी हो सकता है कि भ्रष्टाचार के रास्ते.. वर्मा को हटाना हो
जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए एक सिण्डिकेट के तहत काम तो नहीं किया जा रहा है क्योंकि जस्टिस वर्मा के यहां पर 15 करोड़ रूपये किसने देखे है और किस एजेंसी ने वो रूपये जप्त किये है क्योंकि अभी तक देश की किसी एजेंसी ने यह बयान नहीं दिया है कि जस्टिस वर्मा के घर से रूपये जप्त किये है. फिलहाल हाई कोर्ट इलाहबाद बार एसोसिएशन बेफितूर होकर बयान देता प्रतीत हो रहा है क्योंकि हाई कोर्ट के जजों में भी जस्टिस वर्मा के प्रति अच्छा व्यवहार प्रतीत नहीं नहीं दिखाई दे रहा है।