कोई भी पति पत्नी की फोन पर ‘अश्लील चैटिंग’ बर्दाश्त नहीं करेगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

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By Chamber of Advocate  High Court Allahabad


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कोई भी पति पत्नी की फोन पर ‘अश्लील चैटिंग’ बर्दाश्त नहीं करेगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक बरकरार रखी

⚫ फैमिली कोर्ट द्वारा पारित फैसला बरकरार रखते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने कहा कि पति की आपत्तियों के बावजूद, यदि पत्नी अन्य पुरुषों के साथ अश्लील चैटिंग में शामिल है, तो यह मानसिक क्रूरता के बराबर होगा और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक का आधार होगा।

जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा,

🟤 “पत्नी या पति से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे विवाह के बाद भी किसी पुरुष या महिला मित्र के साथ चैटिंग करके अभद्र या अश्लील बातचीत करें। कोई भी पति यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी पत्नी मोबाइल पर इस तरह की अश्लील चैटिंग के माध्यम से बातचीत कर रही हो। विवाह के पश्चात पति-पत्नी दोनों को मोबाइल, चैटिंग तथा अन्य माध्यमों से मित्रों से बातचीत करने की स्वतंत्रता होती है, किन्तु बातचीत का स्तर सभ्य तथा गरिमापूर्ण होना चाहिए, विशेषकर जब विपरीत लिंग के साथ हो, जो जीवन साथी को आपत्तिजनक न लगे। यदि आपत्ति के बावजूद पति या पत्नी ऐसी गतिविधियों को जारी रखते हैं, तो निश्चित रूप से यह मानसिक क्रूरता का कारण बनता है।

⚪ अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19(1) के अन्तर्गत एडिशनल प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, उज्जैन द्वारा पारित निर्णय के विरूद्ध वर्तमान अपील दायर की गई, जिसमें प्रतिवादी-पति द्वारा हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अन्तर्गत दायर याचिका स्वीकार की गई, जिससे उनका विवाह विघटित हो गया था, जो 2018 में सम्पन्न हुआ था।

🔵 प्रतिवादी के अनुसार, विवाह के तुरन्त पश्चात अपीलकर्ता ने अपनी मां के साथ दुर्व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया। विवाह के डेढ़ माह पश्चात अपीलकर्ता अपने पिता के घर चली गई तथा वापस आने से इंकार कर दिया। यह भी आरोप लगाया गया कि विवाह के पश्चात भी अपीलकर्ता अपने दो पुराने प्रेमियों से मोबाइल पर बात करती थी। प्रतिवादी ने पाया कि चैट अश्लील प्रकृति की थी। अपीलकर्ता अपने पति के साथ शारीरिक संबंधों के बारे में व्हाट्सएप चैट पर चर्चा करती थी।

🟢 इसके बाद प्रतिवादी ने पुलिस को लिखित शिकायत की कि अपीलकर्ता उसे झूठे मामले में फंसाने की धमकी देता था। प्रतिवादी के अनुसार, समझौता हो गया और उसने लिखित में दिया कि वह भविष्य में किसी को भी दोष देने का मौका नहीं देगी। अपीलकर्ता के पिता, जो एक वकील हैं, ने भी पुलिस को लिखित में अपना बयान दिया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी बेटी अन्य पुरुष मित्रों के साथ चैट में लिप्त रही है, जिससे परिवार के सभी सदस्य शर्मिंदा हैं।

प्रतिवादी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह विच्छेद की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

🟡 अपीलकर्ता ने यह तर्क देकर तलाक याचिका का विरोध किया कि आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने उसके मोबाइल को हैक कर लिया और झूठे और निराधार आरोप लगाने के लिए सबूत बनाने के लिए अपीलकर्ता के दो कथित प्रेमियों को वे सभी मैसेज भेजे थे। ऐसा करके प्रतिवादी-पति ने उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन किया। इसके बाद विशेष दलीलों के माध्यम से उसने प्रतिवादी-पति के खिलाफ मारपीट, अपमान, 25 लाख रुपये दहेज मांगने आदि का आरोप लगाया।

रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद फैमिली कोर्ट ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक का आदेश दिया।

🟠 हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता के पिता ने स्वीकार किया कि उनकी बेटी को पुरुष मित्रों से बात करने की आदत थी और जिसके कारण वह शर्मिंदा था। इस संबंध में दस्तावेज फैमिली कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए गए, जिन्हें अपीलकर्ता ने पूरी तरह से नकारा नहीं।

न्यायालय ने कहा,

🔴 “फैमिली कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता के पिता प्रैक्टिसिंग वकील हैं, जो 40-50 वर्षों से बार में कार्यरत हैं, लेकिन उन्होंने पुलिस को दिए गए अपने बयान से इनकार करने के लिए गवाह के कठघरे में प्रवेश नहीं किया।”

न्यायालय ने अपीलकर्ता की दो कथित प्रेमियों के साथ चैटिंग के प्रिंटआउट से यह भी अनुमान लगाया कि बातचीत अभद्र थी।

🛑 न्यायालय ने आगे कहा कि प्रतिवादी के खिलाफ घरेलू हिंसा आदि की FIR या शिकायत के रूप में कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिवादी द्वारा पत्नी के खिलाफ लगाए गए आरोप सही थे।

🟣 न्यायालय ने कहा कि कोई भी पति यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी पत्नी मोबाइल पर इस तरह की अश्लील चैटिंग के जरिए बातचीत कर रही हो। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि पति की आपत्तियों के बावजूद, यदि पत्नी इस तरह की गतिविधियों को जारी रखती है तो यह मानसिक क्रूरता के बराबर है।

फैमिली कोर्ट द्वारा पारित निर्णय को बरकरार रखा गया और अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: राधा बनाम सुधांशु, प्रथम अपील संख्या 1605/2023

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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