मोदी जी, अगर देश का सम्मान बचा नहीं सकते, तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देते?(आलेख : महेंद्र मिश्र)

एक देश कैसे मरता है, अमृतसर में उतरने वाले अमेरिकी सैन्य विमान और उनमें हथकड़ियों और बेड़ियों से बंधे बैठे भारतीय नागरिक उसकी खुली निशानी हैं। मृत्यु केवल एक भौतिक क्रिया नहीं है। अगर किसी का मान-सम्मान खत्म हो जाए, किसी की प्रतिष्ठा धूल-धूसरित हो जाए, तो वह शख्स भी मरे के समान है। एक चलती-फिरती जिंदा लाश। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के नागरिकों को खुद उसकी ही धरती पर एक दूसरा देश हाथ-पांव बांधकर लाकर पटक रहा है और उस देश के लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, इससे बड़ी विडंबना कोई दूसरी नहीं हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह देश इन्हीं साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ अपने मान-सम्मान, स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के लिए लड़ते हुए खड़ा हुआ था। और उसी काम के लिए लाखों-लाख लोगों ने अपनी जानों की कुर्बानीयां दी थीं। उन्होंने हंसते-हंसते फांसी के फंदे चूमे थे।

आखिर क्या मांग थी और क्यों लड़े अंग्रेजों के खिलाफ हमारे पुरखे? यही तो कि हम खुद अपने ऊपर शासन के लिए स्वतंत्र हैं और हमारे ऊपर कोई दूसरा राज करे, यह बात हमें गंवारा नहीं। वह भौतिक हो या कि नीतिगत स्तर पर, किसी तरह की गुलामी उन्हें मंजूर नहीं थी, जिसका नतीजा था कि अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना पड़ा और फिर स्वतंत्र रुप से देश ने अपने निर्माण की प्रक्रिया शुरू की। आज 75-76 सालों के दौरान न केवल ये लोकतंत्र के रूप में फला-फूला, बल्कि दुनिया के पैमाने पर भी अपनी एक हैसियत, प्रतिष्ठा और पहचान बनायी, जिसको महाशक्ति कहे जाने वाले दुनिया के तमाम देशों से लेकर छोटे-बड़े देशों ने स्वीकार किया। लेकिन 75 सालों के बाद एक ऐसी सरकार आयी है, जो इस पूरी प्रक्रिया को ही उलट देना चाहती है। पिछले 10 सालों में उसने न केवल लोकतंत्र को रौंदने का काम किया, बल्कि देश को एक कट्टर धार्मिक राज्य में बदल देने की हर संभव कोशिश की। इस प्रक्रिया में न केवल साम्राज्यवादी ताकतों के सामने समर्पण कर दिया गया, बल्कि देश की रही-सही प्रतिष्ठा को भी धूल-धूसरित कर दिया गया।

क्या आप सोच सकते हैं कि कोई ऐसा देश, जो किसी देश के नागरिकों को हथकड़ी लगा कर उसी के देश भेज रहा हो, बावजूद इसके उस देश का शासक उसकी यात्रा करने के लिए तैयार हो जाएगा? और इस कड़ी में वह सब कुछ मानने के लिए तैयार हो जाएगा, जो सामने वाला उसको निर्देशित करेगा? लेकिन ऐसा हुआ। और यह सब कुछ मोदी जी ने किया। लेकिन शायद मोदी जी को पता नहीं है कि जब आप ऐसा करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो सामने वाला भी आपकी हैसियत का अंदाजा लगा लेता है और फिर उसी तरह से आपके साथ व्यवहार करने लगता है। हालिया दौरे में ट्रम्प का पीएम मोदी के साथ किया गया व्यवहार वही दर्शाता है।

पूरे दौरे में ट्रम्प के रुख से यही लगा कि वह किसी हेड ऑफ स्टेट को नहीं बुलाए हैं, बल्कि उन्होंने एक गुलाम को न्योता दे रखा है, जिसको उनके निर्देशों पर चलने में कोई परेशानी नहीं है। वरना उसी के आस-पास आए तीन दूसरे राष्ट्राध्यक्षों का ह्वाइट हाउस के बाहर आकर उन्होंने जब अगवानी की, तो पीएम मोदी की भी कर सकते थे। लेकिन उन्होंने नहीं किया। गैस, तेल और एफ-35 बेचकर आखिर वह किसको लाभ दिलवाए। टैरिफ के मामले में भी वह रत्ती भर भी पीछे नहीं हटे। और मोदी हर चीज को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिए। कहीं किसी एक मामले में भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब पीएम मोदी, ट्रम्प से हाथ मिला रहे थे, तो उसी दौरान भारतीय नागरिकों को उसी धरती पर हथकड़ी बांध कर डिपोर्ट करने की तैयारी चल रही थी।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो संसद के भीतर बोला था कि वह इस मसले पर अमेरिकी सरकार से बात करेंगे और इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय नागरिकों के साथ किसी तरह का गलत व्यवहार न हो। लेकिन इस भरोसे का क्या हुआ, जो देश की सबसे बड़ी पंचायत को उन्होंने दिया था? क्या उन्होंने बात की? और नहीं की, तो उसके बारे में बताएं। क्योंकि क्या पता, अमेरिकी अधिकारियों के सामने डर के चलते उनके बोल ही नहीं फूटे हों। और अगर बात हुई है और फिर भी वे तैयार नहीं हुए, तो उसके बारे में देश को उन्हें बताना चाहिए।

फिर तो संसद और देश फैसला करेगा कि उस पर क्या किया जाना चाहिए। हां, इस बीच बात हुई या नहीं, वह तो जयशंकर और सरकारी अमला जाने। लेकिन भेजे गए प्रवासी भारतीयों को अमेरिकी सैनिकों की तरफ से ज़रूर यह दूसरा तर्क दिलवा दिया गया कि ये बेड़ियां और हथकड़ियां खुद उनकी सुरक्षा के लिए ही लगायी गयी थीं, क्योंकि जिस मन:स्थिति से वो गुजर रहे हैं, उसमें कुछ ऐसी हरकत कर सकते हैं, जो खुद उनके लिए भी नुकसानदायक हो सकती हैं। अब इससे बड़ा मजाक कोई दूसरा नहीं हो सकता है।

चलिए, एकबारगी आपका ही तर्क मान लेते हैं। तो फिर उन महिलाओं और बच्चों का क्या, जिनको आपने इससे छूट दे रखी थी। क्या उनकी जान की कीमत कम थी या फिर आप को उनकी फिक्र नहीं थी? इस लिहाज से तो बच्चों के लिए और ज्यादा जरूरी हो जाता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल यह भारतीयों को उनकी औकात बताने का रास्ता अपनाया गया है, जिससे अमेरिका की तरफ देखने की भी वो हिम्मत नहीं जुटा सकें।

एक सवाल मोदी जी से ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि आपके 17 हजार नागरिकों को अगर इसी तरह से हथकड़ियां और बेड़ियां बांधकर लाया जाएगा तो क्या आप कभी अमेरिकी राष्ट्रपति या फिर उसके दूसरे अधिकारियों से नजर से नजर मिलाकर बात कर सकेंगे? ये मत भूलिए, जिन्हें अपने मान-सम्मान का ख्याल नहीं होता है, दूसरे भी फिर उसकी फिक्र नहीं करते हैं। इसलिए आपकी इज्जत आपके हाथ में होती है। क्या आप कभी सोच सकते थे, देश के दूसरे प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और यहां तक कि मनमोहन सिंह भी इस तरह की कोई शर्त मानने के लिए तैयार हो जाते? कतई नहीं!

अनायास नहीं, बांग्लादेश वार में जब अमेरिका के सातवें बेड़े के आने की बात कही जाने लगी तो इंदिरा गांधी ने बयान दिया कि सातवां बेड़ा आए या सत्तरवां युद्ध नहीं रुकेगा। मोदी जी यह साहस आप क्यों नहीं दिखा सके? मैं बताता हूं, उसके पीछे क्या कारण है। दरअसल आप जिस आरएसएस और हिंदुत्व की धारा से आते हैं, उसने आजादी की लड़ाई में हमेशा अंग्रेजों का साथ दिया। आपकी पूरी मानसिकता ही गुलामी की है। आपने बाहर के जो असली दुश्मन थे, जो देश को लूट कर ले जा रहे थे, उन्हें कभी दुश्मन के रूप में देखा ही नहीं। आप हमेशा उनके दोस्त बने रहे। आपने हमेशा उनका सहयोग किया।

और यहां तक कि उनके लिए मुखबिरी तक की। इसलिए वो कभी भी आपको दुश्मन नजर ही नहीं आते। आपने अपने देश के भीतर ही अपने भाई-बंधुओं के बीच दुश्मन ढूंढ लिए हैं। जिनसे भाईचारे का रिश्ता है, उनमें आप नफरत और घृणा फैलाते रहते हैं। इसलिए आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले उस अपमान का एहसास ही नहीं है। और आप चाह रहे हैं कि पूरा मामला रफा-दफा कर दिया जाए। इसकी किसी को कोई खबर ही न हो। और वह चर्चा का विषय ही न बने।

इसीलिए आपका कार्टून प्रकाशित करने वाली उस तमिल वेबसाइट को बैन कर दिया गया जिसमें ट्रम्प के सामने आपके हाथों और पैरों में जंजीरें बांधकर कुर्सी पर बैठे दिखाया गया है। इसमें गलत क्या है। यही असली सच्चाई है। वह जंजीरें उन नागरिकों के पैरों और हाथों में नहीं बांधी गयी हैं, वो हमारे और आपके हाथों में बांधी गयी हैं। और देश के किसी नागरिक से पहले आपके हाथों में बंधी हैं, क्योंकि आप देश के मुखिया हैं और इस देश की संप्रभुता के रक्षक। अगर देश के साथ कुछ होता है, तो उसकी सबसे पहली जिम्मेदारी और जवाबदेही आपकी है। लेकिन आप उसको लेने से भाग रहे हैं और अपने ही नागरिकों को अपराधी करार देकर अपनी जिम्मेदारी से फुर्सत पा लेना चाहते हैं।

होना तो यह चाहिए था कि आप कोलंबिया के राष्ट्रपति की तरह उसका प्रतिरोध करते और जैसा कि कोलंबिया के राष्ट्रपति ने किया है, इन अमेरिकी सैन्य विमानों को भारत की धरती पर उतरने ही नहीं देते। लेकिन आप तो ऐसा नहीं कर सके। लेकिन इस देश की जनता इसको स्वीकार करने नहीं जा रही है। अगली कोई खेप इस धरती पर नहीं उतरनी चाहिए। और इसके लिए जरूरत पड़े तो भारतीय विमानों को अमेरिका उन्हें लेने के लिए भेजा जाना चाहिए। और अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो भारतीय नागरिकों को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए, चाहे इसके लिए भले ही उन्हें चंदे इकट्ठा करना पड़े। और फिर उस पैसे से भारतीय नागरिकों को भारत ले आया जाए। जरूरत पड़े, तो इसके लिए राष्ट्रव्यापी अभियान भी चलाया जा सकता है।

(लेखक वेब पोर्टल ‘जनचौक’ के संपादक हैं।)

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks