अधूरा न्याय : जल रही है संघर्ष की मशाल!(आलेख : जी सुबर्णा, अनुवाद : संजय पराते)

अधूरा न्याय : जल रही है संघर्ष की मशाल!
(आलेख : जी सुबर्णा, अनुवाद : संजय पराते)

आरजी कर मामले में सियालदाह कोर्ट के फैसले ने कोलकाता पुलिस, राज्य प्रशासन और सीबीआई की भूमिका पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। संजय रॉय को हत्या और बलात्कार के मुख्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, लेकिन यह फैसला खुद सीबीआई जांच में कई खामियों की ओर इशारा करता है। संजय रॉय को एकमात्र अपराधी मानना कई सवालों को अनुत्तरित छोड़ देता है।

अनुत्तरित सवाल

सबसे पहले, कोलकाता पुलिस ने घटना के बाद रात में ही संजय को गिरफ्तार कर लिया था। मुख्यमंत्री ने उसे मुख्य आरोपी घोषित किया था और कहा था कि उनकी पार्टी और सरकार उसे फांसी पर लटकाना चाहती है। अगर ऐसा था, तो पीड़ित के माता-पिता को अस्पताल में तीन घंटे तक क्यों इंतजार करवाया गया, उन्हें अपने बच्चे के शव तक पहुंचने से क्यों रोका गया? पुलिस ने स्वास्थ्य सिंडिकेट के सदस्यों को उन तीन घंटों के दौरान सेमिनार हॉल में क्यों खुलेआम घूमने दिया? डीसी सेंट्रल ने पुलिस फिंगर प्रिंट विशेषज्ञों की तस्वीरों को क्रॉप करके क्यों पेश करने की कोशिश की? सभी नियमों को तोड़ते हुए रातों-रात पोस्टमार्टम क्यों किया गया? जब परिवार शव को सुरक्षित रखना चाहता था, तो पुलिस ने जल्दबाजी में उसका अंतिम संस्कार क्यों किया? डीसी नॉर्थ ने मृतक की मां को बड़ी रकम देने की कोशिश क्यों की? शव से लिए गए नमूनों को चार दिन बाद फोरेंसिक प्रयोगशाला में क्यों भेजा गया? संजय को 10 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया था, तो फिर आरजी कर के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष ने स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक के आदेश पर, सभी सरकारी प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए, 13 अगस्त को जल्दबाजी में छाती विभाग से सटे शौचालय को क्यों ध्वस्त कर दिया? 14 अगस्त की रात को चालीस हथियारबंद बदमाशों को आरजी कर में घुसकर सेमिनार कक्ष में तोड़फोड़ करने की अनुमति क्यों दी गई, जबकि पुलिस मूकदर्शक बनी रही? यदि संजय रॉय ही एकमात्र अपराधी था, तो केंद्रीय फोरेंसिक प्रयोगशाला की रिपोर्ट में मृतक डॉक्टर के निजी अंगों से लिए गए नमूनों में कई डीएनए नमूने क्यों पाए गए? ये डीएनए किसके थे और उनकी जांच क्यों नहीं की गई? शुरू से ही आरोप लगाया जा रहा था कि आरजी कर अस्पताल में हुई यह भयावह घटना एक सुनियोजित और सामूहिक अपराध है। घटनास्थल और पोस्टमार्टम की शुरुआती रिपोर्ट भी इस ओर इशारा करती है। डीएनए विश्लेषण रिपोर्ट सहित केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) की रिपोर्ट, तथा बहु-संस्थागत मेडिकल बोर्ड (एमआईएमबी) की अंतरिम रिपोर्ट ने इस असाधारण हत्या और बलात्कार के असली अपराधियों को बचाने की राज्य की साजिश को और उजागर कर दिया है।

इसलिए, आम लोगों ने इस खंडित न्याय को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है।

सियालदह कोर्ट के फैसले से राज्य प्रशासन, कोलकाता पुलिस और सीबीआई द्वारा अक्षमता, उदासीनता और कानून की अवहेलना करने का एक पैटर्न सामने आता है। कोलकाता पुलिस के दो अधिकारियों पर कदाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, जिनमें एक महिला अधिकारी भी शामिल है, जिसने संजय रॉय की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उनके मोबाइल फोन को अवैध रूप से जब्त कर लिया था। इससे डिवाइस से कॉल लॉग जैसे महत्वपूर्ण सबूतों को संभवतः नष्ट करने के बारे में चिंता पैदा होती है।

संजय के वकील ने इससे भी बड़ी साजिश का खुलासा किया है। संजय के बचाव के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा नियुक्त वरिष्ठ वकील ने वास्तव में अदालत में सीबीआई के तर्कों को दोहराया है, जैसा कि उनके कनिष्ठ सहयोगी ने मीडिया के सामने खुलासा किया। दूसरे शब्दों में, सीबीआई और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने संजय को एकमात्र अपराधी के रूप में स्थापित करने के लिए अदालत में एक साथ काम किया। राज्य और केंद्र सरकारों के बीच मिलीभगत, भाजपा और टीएमसी के बीच की सेटिंग अब कोई रहस्य नहीं है।

मुख्यमंत्री का यह दावा कि अगर यह मामला उनकी पुलिस द्वारा संभाला जाता, तो वे मृत्युदंड सुनिश्चित कर देतीं, न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप का एक स्पष्ट उदाहरण है। बहरहाल, राज्य पुलिस द्वारा जिन मामलों की जांच की गई हैं, उसकी वास्तविकता एक अलग ही तस्वीर पेश करती है। कामदुनी बलात्कार मामले जैसे कई मामलों में अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं। न्याय सुनिश्चित करने के मुख्यमंत्री के दावे तब खोखले साबित होते हैं, जब कोई हंसखाली, मध्यमग्राम, कालियाचक, रानाघाट और बारासात में दोषसिद्धि में कमी की जांच करता है।

सियालदह कोर्ट द्वारा संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के अगले दिन राज्य सरकार ने उसकी फांसी की सजा के लिए हाईकोर्ट में अपील की थी। दो दिन बाद सीबीआई ने भी यही अपील की। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा इस मामले में अपील करने के कानूनी अधिकार पर सवाल उठाया है। राज्य सरकार शुरू से ही संजय की फांसी के लिए आतुर रही है, जिसमें सीबीआई यानी केंद्र सरकार उसकी सहयोगी है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे दोनों संजय को फांसी देकर एक महत्वपूर्ण गवाह को खत्म करना चाहते हैं, ताकि असली सच्चाई कभी सामने न आ पाएं और अपराधी छिपे रहें। केंद्र में भाजपा सरकार और राज्य में टीएमसी सरकार हमेशा सत्ता में नहीं रहेगी। अगर केंद्र और राज्य में लोकतांत्रिक तरीकों से नई सरकार आती है, तो संजय की गवाही लोगों के सामने असली सच्चाई लाने, सभी अपराधियों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने में महत्वपूर्ण होगी। इसलिए, जेल में भी उसका जीवित रहना बहुत महत्वपूर्ण है। कुछ लोग तो और भी अधीर हैं और चाहते हैं कि संजय को एनकाउंटर में मार दिया जाए। अपराधियों को बचाने की टीएमसी और बीजेपी की यह साजिश लोगों के सामने उजागर हो चुकी है। इसलिए, पीड़ित परिवार, विशाल अभया आंदोलन और आम जनता अब संजय की फांसी नहीं चाहती।

अंतहीन अक्षमता

अभया आंदोलन में सबसे आगे रहने वाले प्रदर्शनकारी डॉक्टर नेता शुरू से ही सरकार की आंखों में खटक रहे हैं। अगस्त में ही उनमें से कुछ को लालबाजार बुलाया गया था। विरोध में हजारों डॉक्टर और नागरिक लालबाजार पहुंच गए। सरकार को मजबूरन सम्मन वापस लेना पड़ा। प्रदर्शनकारी जूनियर डॉक्टरों को परेशान करने में पुलिस अति उत्साही है, उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर रही है। इस बीच, राज्य चिकित्सा परिषद के रजिस्ट्रार, जो खुद अवैध रूप से इस पद पर हैं, ने साल्ट लेक इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स पुलिस स्टेशन में चार प्रमुख वरिष्ठ डॉक्टरों के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई है।

इस मेडिकल काउंसिल पर, टीएमसी के लिए जबरन वसूली करने वाली ताकत ने, फर्जी चुनावों के जरिए कब्जा कर लिया है, जिससे संबंधित कानूनी मामले अभी भी हाईकोर्ट में लंबित हैं। ये वही सदस्य हैं, जो वायरल वीडियो में आरजी कर अस्पताल के छाती विभाग के सेमिनार हॉल में अभया के शव के चारों ओर भीड़ लगाते और सबूत मिटाने की कोशिश करते देखे गए थे। घटना स्थल पर देखे गए तृणमूल छात्र परिषद के अस्थायी रूप से निलंबित महासचिव अभिक डे इसी काउंसिल के सदस्य हैं, जिनके खिलाफ कई महिला डॉक्टरों से छेड़छाड़ और जबरन वसूली के आरोप हैं। तीन महीने पहले ही सबूतों के साथ ये आरोप स्वास्थ्य विभाग को सौंपे गए हैं। इसी मेडिकल काउंसिल ने प्रदर्शनकारी डॉक्टर नेताओं के खिलाफ थाने में झूठी शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन पर उनके दैनिक काम में बाधा डालने का आरोप लगाया गया है। इस घटना से राज्य की जनता काफी गुस्से में है।

हाल ही में मिदनापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में नकली सलाइन के कारण माताओं और बच्चों की हुई मौत के बाद सरकार के खिलाफ एक बार फिर जनाक्रोश भड़क उठा है। नकली दवा के कारोबार में शामिल लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय सरकार कुछ डॉक्टरों को निलंबित करके मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। पिछले साल मार्च में कर्नाटक सरकार ने वेस्ट बंगाल फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित सलाइन को काली सूची में डाल दिया था और उसके ड्रग कंट्रोलर को निलंबित कर दिया था। इस राज्य की टीएमसी सरकार को चोपड़ा में उनके कारखाने का निरीक्षण करने और उन्हें सलाइन के उत्पादन पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन पहले से उत्पादित और बाजार में बिकने वाले सलाइन के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया। बहरहाल, राज्य के सौ से अधिक अस्पतालों के डॉक्टर पिछले एक साल से इस सलाइन की गुणवत्ता के बारे में स्वास्थ्य विभाग से शिकायत कर रहे हैं। एक मां और एक नवजात की मौत के बाद, स्वास्थ्य विभाग को कंपनी द्वारा उत्पादित सलाइन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन कंपनी या ड्रग कंट्रोलर के खिलाफ कोई कार्रवाई किए बिना सरकार ने तेरह डॉक्टरों को बलि का बकरा बना दिया। इस घटना ने एक बार फिर नकली दवा विक्रेताओं के भ्रष्टाचार के साथ सरकार के समझौते को उजागर कर दिया है।

इस राज्य में बड़े पैमाने पर व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ अनियंत्रित हिंसा और हाशिए पर पड़े यौन और लैंगिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, कार्यस्थल पर श्रमिकों और कर्मचारियों की असुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणालियों की बर्बादी, अपराधी-अनुकूल और पक्षपातपूर्ण प्रशासन और राज्य के हर कोने में धमकी की संस्कृति और डराने की राजनीति के खिलाफ कामकाजी और मध्यम वर्ग के पेशेवरों को बड़े पैमाने पर एकजुट संघर्ष चलाना होगा।यही अभया मामले सहित सभी मामलों में न्याय प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है। राज्य के हर जिले में जन आंदोलन तेज हो रहा है। इस आंदोलन को सत्ता परिवर्तन के संघर्ष में बदलना होगा, तभी राज्य के सामाजिक-राजनीतिक संकट का निर्णायक समाधान संभव होगा।

(लेखक प. बंगाल में अभया आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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