पैसे पेड़ पर नहीं उगते: श्री मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार

पैसे पेड़ पर नहीं उगते: श्री मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार

ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं! बात की शुरुआत करते हैं वर्ष 1989 से, उस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत थी मात्र 19 डॉलर प्रति बैरल! …और भारत में पेट्रोल उस वक्त साढ़े आठ रूपये व डीजल साढ़े तीन रुपये प्रति लीटर की दर से मिला करता था!

1990 से लेकर 2014 तक देश में कई सरकारें बनीं! इसमें बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA सरकार का भी दौर शामिल है!

लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों के दामों के लिहाज से साल 2010-12 वाला दौर सबसे भयानक रहा था! इस दौर में पूरा विश्व आर्थिक मंदी की चपेट में था! कच्चे तेल की कीमत औसतन 110 डॉलर प्रति बैरल रही थी! एकाध तिमाही में यह कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गयी थी!

भारत भी इससे अछूता नहीं रहा था! भारत में पेट्रोल 65-70 व डीजल 42-45 रूपये प्रति लीटर मिलने लगा था!

पेट्रोलियम पदार्थों की इस वृद्धि पर बीजेपी ने पूरे देश में गदर काटा! भारत बन्द का आयोजन किया गया! इस आयोजन में शिरकत करने वाले अधिकांश नेता आज केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री हैं!

तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के सामने आये और बहुत ही सरल शब्दों में देश को ये समझाया कि हमें ऐसा क्यों करना पड़ा!

वे चाहते तो कोई देशभक्ति वाली फिल्म बनाकर लोगों का ध्यान बंटा सकते थे! ताली, थाली, शंख बजवा सकते थे! दीये जलवा सकते थे! लेकिन उन्होंने ये सब नहीं किया!वे जनता से मुखातिब हुए!

उन्होंने कहा कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते! हमे अपने लोगों की नौकरियां बचानी हैं! उन्हें सैलरी देनी है! गरीबों को सब्सिडी देने के लिए हमें पैसे चाहिए! …और भी कई बातें गिनायीं जो एक प्रधानमंत्री को करना चाहिए!

इसको समझने के लिए आपको 25 जुलाई 2017 की राज्यसभा की कार्यवाही देखनी चाहिए, जिसमें भारत सरकार के कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रुपाला राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहते हैं-

“Congress-led United Progressive Alliance (UPA) waived Rs 60,000 crore ($13 billion) in farm loans in 2008.”

अर्थात “कांग्रेस नेतृत्व वाली UPA सरकार ने साल 2008 में किसानों का साठ हजार करोड़ मूल्य का कर्ज माफ़ किया था।”

किसानों की कर्जमाफी का जिक्र यहाँ क्यों कर रहा हूँ मैं?

केंद्र के 11 लाख सरकारी कर्मचारियों को लाभान्वित करने वाला छठा वेतन आयोग इसी दौर में आया था…10 साल बाद! …और किसानों की कर्जमाफी की वजह से 1 साल देरी से लागू हुआ था। मतलब सरकार के ऊपर संकट 2007 से ही शुरू हो गया था!

किसानों की कर्जमाफी, सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान और पूरे विश्व में फैला आर्थिक संकट…इन सब पर एक साथ पार पाना किसी भी विकासशील देश के लिए संभव नहीं था।

लेकिन महान अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह पर कांग्रेस गठबंधन को पूरा भरोसा था और मनमोहन जी ने इस भरोसे को कायम रखा।

-किसानों का कर्ज माफ़ हुआ!
-छठा वेतनमान भी लागू हुआ!!
-वैश्विक आर्थिक संकट का भारत पर जरा भी असर नहीं हुआ!
-लोगों की नौकरियां बच गयी थीं!
-सैलरी और DA कटने का तो कोई सवाल ही नहीं था!

नतीजा ये हुआ कि 2009 के आम चुनावों में देश की कमान पुनः कुशल अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के हाथों में थी।

सरकार बनते ही मनमोहन सिंह पर ये दबाव था कि वे सातवें वेतनमान और किसानों की कर्जमाफी से उत्पन्न हुए वित्तीय घाटे को कैसे भी पाटें!

तभी कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हाहाकार मच गया! एक बैरल की कीमत डॉलर के तीन अंकों को पार कर गयी! देश में पेट्रोल-डीजल और एलपीजी के दामों में भारी वृद्धि की गयी!

जो बीजेपी आज सत्ता में है और ये कह रही है कि मुश्किल घड़ी में विपक्ष को देश के प्रधानमंत्री के साथ खड़े होना चाहिए….वह उस वक्त “भारत बन्द” कर के बैठी थी! चौराहों पर इनके नेता आये दिन एलपीजी सिलिंडर लेकर बैठ जाते थे! प्याज और टमाटर की मालाएं इनके गले में ही लटकी मिलती थीं! मनमोहन सिंह के पुतले फूंक रही थी! कुछ नेता तो नंगे भी हो गये थे!

…और सदी का महानायक बाइक पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने पर आमादा था!

आज क्या हो रहा है?

हार्वर्ड को गाली देने वाली और हार्डवर्क करने वाली इस सरकार को आज कच्चा तेल उसी 1989 के रेट में मिल रहा है! एक महीने पहले तो यह रेट 1947 वाला हो गया था! कीमत माइनस में चली गयी थी! फिर भी….

-करोड़ों लोग बेरोजगार हुए घूम रहे हैं!
-जीडीपी धराशायी हुई पड़ी है!
-मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर समेत तमाम सेक्टरों में नौकरियां जा रही हैं!
-पत्रकारों तक की नौकरियां छीनी जा रही हैं!
-सरकारी कर्मचारियों का DA और एक दिन की तनख्वाह काट ली गयी है!
-सारी सरकारी योजनाओं के मदों को रोक दिया गया है!
-सांसद निधि की राशि कम कर दी गयी है!
-परधान केअर फण्ड खोले बैठा है!

…और देशवासियों को 2011-12 वाले पेट्रोल के रेट में आज डीजल मिल रहा है!

खुद को कमजोर कहे जाने और 2014 में सत्ता से बेदखल होने के बाद इस महान अर्थशास्त्री ने अपने बारे में कहा

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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