लोकसभा चुनाव का विगुल दो चरण होने के बाद और जोरो से चिघाड़ रहा है

सुनो एटा वालों! तुम भी सुनो कासगंज वालों!l*

लोकसभा चुनाव का विगुल दो चरण होने के बाद और जोरो से चिघाड़ रहा है।

एटा लोकसभा में बीजेपी से वर्तमान सांसद राजवीर सिंह राजू भईया प्रत्याशी है सपा द्वारा जनपद ओरैया से आये देवेश
शाक्य पर दाँव खेला है.

इस लोकसभा चुनाव की लड़ाई अब तक बेहद दिलचस्प थी परंतु पहले चरण के बाद समीकरण बदले-बदले से आ रहे है या यूँ कहे कि पूरा ही बदल गया है।कुछ भी बदलें या न बदले राजनीति का खेल कभी भी ख़त्म हो सकता है, भारत की राजनीति जातियों के जनाधार पर टिकी होती है. यही कारण है कि लगभग भारत की सभी पार्टियां जातियों व धर्म के हिसाब से प्रत्याशी को मैदान में उतारती है।

एटा-कासगंज लोकसभा से बीजेपी से राजवीर सिंह मैदान में उस समय से ही है ज़ब से उनके पिता कल्याण सिंह बाबू जी ने यह सीट अपने बेटे को सौपी है. वो इस सीट का मान बनाये हुए है। राजवीर सिंह एटा लोकसभा पर बड़ा नाम तो है ही। साथ ही कल्याण सिंह के पुत्र के रूप में भी पहचान है।

लोधी बाहुल्य इस सीट का परसिमन 2009 में हुआ था तब से अब तक इस सीट पर लोधी प्रत्याशी ही विजय का तिलक लगाए हुए है. इस बार सपा से देवेश शाक्य ने आकर शाक्य जाति पर अपना अधिकार जता दिया है लेकिन लोधी बाहुल्य सीट के अनुसार देवेश शाक्य के लिए संख्या बल को मात देना बेहद कठिन हों सकता है।

*सपा का परम्परागत वोटर यादव,मुस्लिम वोट के साथ शाक्य वोट की गिनती कर ली जाये तो भी सपा का बूथ बेहद कमजोर दिखाई दे रहा है।*

बीजेपी के इस सीट पर परम्परागत वोटर लोधी,वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण,कश्यप,मल्हा, व छोटी सख्या में निवास करता वो वोटर जो सिर्फ बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को ही देखता है। जिसे बीजेपी की योजनाओं का सीधा लाभ मिल रहा है। इस संख्या तक किसी का पहुंचना बेहद कठिन है। उस वोटर को रोक पाना भी सपा के लिए मुश्किल है या फिर अपने पक्ष में खड़ा करना बेहद जटिल ही है।

बीजेपी को एक संसय जरूर दिखाई दे रहा होगा कि आखिर शाक्य वोटर की पूर्ति कहा से करेंगे. लेकिन बीजेपी के पास करीब 1.50 लाख वोटर ऐसा भी है जो सिर्फ वोट करता है। उसे सुरक्षा और शांति पसंद है। फिर चाहे सरकार किसी की भी बन जाये.जो सुरक्षा और शांति देगा उसी को लोकसभा का यह 1.50 लाख वोटर वोट करेंगा। समाजवादी पार्टी की पूर्व की विसगतिया अभी तक वोटर भुला नहीं पाया है। देवेश शाक्य को मैदान में उतार कर सपा का यही प्रयास है कि स्थानीय सपा नेताओं के कृत्य को भूल कर मतदाता पुनः सपा से जुड़ जाये।लेकिन सम्भवतय तो मुश्किल ही लग रहा है।

Knls की टीम ने कासगंज से लेकर एटा सदर की उस जनता से बात की तो देखा कि सुरक्षा और शांति आज भी जनता के लिए मुख्य मुद्दा बना हुआ है। जनता का यह भी कहना है कि अगर सपा को वोट दिया जाता है तो देवेश शाक्य को 300 KM कौन तलाशेगा!! बीजेपी के सांसद न भी मिलते हो लेकिन स्थानीय विधायकों से या बीजेपी का सघठन से समस्या निपट तो जाती है। जनता का रुख कहता है कि आखिर सपा प्रत्याशी देवेश शाक्य के लिए किधर जाना होगा अभी तक तय नहीं है. क्योंकि देवेश शाक्य का स्थाई निवास ही जनपद एटा में कही नहीं है।

इस तरह के सवालों के जवाब जरूर सपा के लिए कठिनाई पैदा करेंगे क्योंकि देवेश शाक्य का स्थानीय स्तर पर अपने आप को साबित करना कठिन दिखाई दे रहा है। परंतु सपा के यादव व शाक्य जातियों में देवेश शाक्य का क्रेज जमकर दिखाई दे रहा है.यहां एक बात और आपको बताते चले कि देवेश शाक्य को शाक्य वोटर ही चुनाव लड़ा रहा है. जबकि यादव वोटर चुपके से अपने नंबर का इंतजार कर रहा है क्योंकि सपा का परम्परागत वोटर यादव मुस्लिम इस चुनाव के केम्पनिंग से दूर ही रह रहा है। इस का यह भी कारण है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने यादव वोटर व मुस्लिम वोटर को अराजकता का मुखिया जो बना दिया है। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को मंच पर भी बोलते देखा गया है कि सपा के गुंडे लौट रहे है…. इस आवाज का भी जमीनी स्तर पर वोटर में पूर्वांभास हों रहा है।

*एटा में लोधी शाक्य नहीं था

दोनों समुदाय के लोग यह भी कहते इस बार सुनाइ दे रहे है कि क्या इन दोनों समाज का कोई नेता जनपद एटा या कासगंज में नहीं था जो चुनाव लड़ सकें।

*बीजेपी के लिए लगभग वोटर *
2.40 लाख लोधी, 70 हजार वैश्य, 72 हजार ब्राह्मण,1.30 हजार क्षत्रिय, 60 हजार कश्यप,35 हजार मल्हा, बीजेपी की नीतियों से प्रभावित मतदाता करीब 1.50 हजार सभी जातियों से…. इस आंकड़े को कौन छूता दिखाई दे रहा है.

*सपा के लिए लगभग वोटर*

1.75 लाख यादव,1.35 लाख शाक्य,82 हजार मुस्लिम,  सपा की नीतियों से प्रभावित वोटर करीव 10 हजार अन्य जातियों से… इस तरह आंकड़े बता रहे है कि सपा के पास जीत हासिल करना बेहद कठिन है. लेकिन जनता का इरादा आखिर तक कुछ भी हो सकता है।

*इन सादा आंकड़ों से आप भी अपना केलकुलेटर उठा लीजिये और हार जीत का मतदान के बाद अंदाजा बता दीजिये.*

पत्रकारिता के जगत में ऐसे भी पत्रकार देखे जा सकते है जो प्रत्याशी को हार-जीत दिखा रहे है लेकिन यह आंकड़े साफ है जिन्हे आप समझ सकते है।यह वह आंकड़े है जो दोनों पार्टियों को सीधा प्रभावित करते है। या जुड़े हुए है।

*बीजेपी प्रत्याशी की कमी *

प्रत्याशी बीजेपी को देखे तो यह समझ में आता है कि राजवीर सिंह एटा लोकसभा से करीब 75 KM पर रहते है लेकिन एटा कम ही आते है. जिसका असर जरूर देखने को मिलेगा क्योंकि जनता में थोड़ी नाराजगी है क्योंकि जनता को किसी काम के लिए अलीगढ तक भागना होता है. वहीं कुछ छूटभैया नेताओ की वज़ह से सांसद की छवि को नुकसान हुआ है।वर्तमान में शामिल किये गए बीजेपी में यादव नेताओं की वज़ह से भी मतदाता को बीजेपी के लिए वोट करवाना दिक्कत हो सकती है।बीजेपी में इस समय शामिल किये गए वहीं समाजवादी नेता है जिन्होंने सपा की नैया को डुबो दिया था। जिनकी माफियागिरी से अस्त जनता ने बीजेपी को चुना था।अब वहीं तथाकथित नेता बीजेपी को जिताने का दम भरते दिखाई दे रहे है. जनता के लिए यह भी संसय बढ़ा रहा है।

*सम्भवतय यह हो सकता है कि सांसद राजवीर सिंह ने अगर किसी मंच से अपनी गलतियों के लिए माफ़ी और कसमें वादे कर लिए तब इन सारी बाँधाओ को दूर किया जा सकता है।मतदाता कुछ ज्यादा से कम में राजी हो जाता है।*

*सपा प्रत्याशी के लिए दिक्कत *
300 KM की दूरी को कम करना देवेश शाक्य के लिए दिक्कत करेगा क्योंकि जनता को नजदीक और अपनी बात कहने का माध्यम चाहिए. देवेश शाक्य के पास स्थानीय स्तर पर कोई ऐसा नेता नहीं है जो देवेंश शाक्य की वागडोर संभाल सकें. मतदाताओं के लिए यह भी मुश्किल हो रही है कि अगर देवेश शाक्य को वोट दिया भी जाये तो सत्ता वहीं सपा के नेता ही संभालेंगे जिन्होंने पिछले कई सालों से एटा की धरती पर काला अध्याय का उत्पादन किया था। जनता के सामने सुगम और सरल रास्ते तलाशना इस समय कठिन तो है ही. साथ निर्णय की तारीख भी नजदीक आ चुकी है।

*बीजेपी से दूरी के परिणाम *
शाक्य वोटर के लिए मुश्किल भी है और बीजेपी से दूरी रखना भी दिक्कत पैदा कर रहा है। क्योंकि राज्य की सरकार अभी मौजूद है।जिस तरह से वर्तमान में यूपी सरकार का काम देखा जाये तो शाक्य वोटर के लिए बीजेपी छोड़ना भी मुश्किल हों सकता है। परंतु शाक्य वोटर के लिए जनपद एटा कासगंज में नेतृत्व बीजेपी ने छोड़ा भी तो नहीं है। फिर आखिर शाक्य जाये कहा…. सपा में जाने का मन नहीं है और प्रत्याशी को अकेला छोड़ सकता नहीं है।

*ब्राह्मण भी पसोपेश में *

कासगंज एटा से ब्राह्मण का नेतृत्व भी बीजेपी ने खत्म कर दिया है पुरे लोकसभा में ब्राह्मण वोटर करीब 72 हजार के करीब है. ब्राह्मण वोटर भी बदले की भावना से बैठा हुआ है लेकिन ब्राह्मण वोटर के लिए कही वोट देना भी शान के खिलाफ है इसलिए यह वोटर बीजेपी को अकेला मझधार में छोड़ने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा है.

*4 जून *
आंकड़े होने के बाद बीजेपी के प्रत्याशी राजवीर सिंह इस समय करीब 35 से 50 हजार वोटर की बढ़त बनाये हुए है। हार जीत का फैसला जनता के रुख पर तय करेगा।अमित शाह की रैली ने साफ कर दिया है कि राजवीर एक बड़ा नाम तो है ही।देवेश शाक्य के लिए यह चुनाव बड़ा फर्क लेकर आने वाला है. दूसरी तरफ इतने बड़े वोट संख्या को चुनौती भी सपा के किसी नेता ने आज तक एटा लोकसभा पर नहीं दीं है. जिस तरह से देवेश शाक्य चुनाव लड़ रहे है।

बड़ा आदमी बनाने का दाव हर समय नहीं चलता है अमित शाह………

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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