राष्ट्रकविदिनकरजी की पुण्यतिथि पर विशेष स्मरण(23 सितम्बर1908—24अप्रैल 1974)

पुण्य_तिथि


आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्यतिथि है,जिनके आशीष से मैं प्रथम बार एटा प्रदर्शनी के अखिल भारतीय कविसम्मेलन में अपना प्रतिभा प्रदर्शन करने में समर्थ हुआ। दिनकर जी का प्रभाव मेरे काव्यजीवन पर सदैव रहा। उनसे मेरी एक भेंट और हुई दिल्ली में।मैं तब भी आदरणीय रंग जी के साथ था-दिनकर जी तब अस्वस्थ थे। मैंने उनको प्रणाम किया लेकिन वह पहचान न सके।
रंग जी ने एटा के पुराने सन्दर्भ -स्मरण के साथ मेरा नाम लिया तो एक आत्मीय स्मित उनके ओजस्वी मुखमण्डल पर तैर गयी। मेरी पीठ थपथपाई और स्नेह से भर उठे। उस मुलाकात में ही उन्होंने अपनी काव्यकृति “सामधेनी'” मुझे भेंट की थी। तब मेरी समझ इतनी कम थी कि मैं उनकी हस्ताक्षर की हुई किताब की कीमत भी न समझ सका। परिणामत: मेरे एक मित्र के मांगने पर उनको पढ़ने के लिये दे दी। फिर मैं उसे वापस न पा सका।
दिनकर जी का लम्बी बीमारी के बाद चैन्नई में 24 अप्रैल 1974 को आज के ही दिन निधन हो गया। जिस दिन साहित्य के इस दिनकर का अस्त हुआ मैं बहुत रोया था।दिनकर के डूबते ही हिन्दी जगत में ऐसा अन्धकार छाया,कि आज तक प्रकाश का पता नही। उनके दिवंगत होते ही मञ्च के प्रपञ्च तो अपराधों तक पहुँच गए। जब तक उनके शरीर मे शक्ति रही ,वे काव्यमञ्च को भी अपनी उपस्थिति से प्रकाशित करते रहे।
उनकी प्रारंभिक रचनाओं में छायावादी प्रभाव है,लेकिन बाद की रचनाएं द्विवेदी युग के भाव की पूर्ण प्रकाशिका बन पड़ी है। प्रेम से लेकर राष्ट्रबोध तक के उच्चतम शिखरों के दर्शन हम उनके काव्य में कर सकते है।
“परशुराम की परीक्षा “-उनकी श्रेष्ठ कृति है। आक्रोश , विद्रोह उनका प्रधान स्वर है इसी लिये उनको भूषण के बाद वीररस का श्रेष्ठ कवि माना जाता है।” उर्वशी “प्रेम की पराकाष्ठा की पुकार है इसलिए वे प्रेम के पूर्ण कवि हैं।
रसवंती,रश्मिरथी,हुँकार,हाहाकार,उनकी अद्भुत कृतियां है “उर्वशी ” को तो ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त ही हुआ लेकिन “कुरुक्षेत्र’ की तो विश्व की सौ श्रेष्ठ काव्यकृतियों में गिनती है और उसे 74 वां स्थान प्राप्त है। गद्य लेखन में भी दिनकर जी ने “संस्कृति के चार अध्याय “लिखकर राष्ट्रीय ऐक्य को सिद्ध किया।पूज्य दिनकर जी की पुण्यतिथि पर उनकी ही प्रेरक पंक्तियों से उनकी पावन स्मृति को प्रणाम करता हूँ।
“बडी कविता कि जो इस विश्व को सुन्दर बनाती है,
बड़ा वो ज्ञान जिससे व्यर्थ की चिन्ता नही होती।
बड़ा वो आदमी जो ज़िन्दगी भर काम करता है,
बड़ी वो रूह जो रोये बिना तन से निकलती है।।
—श्रद्धांजलि सहित-
डॉ .ध्रुवेन्द्र भदौरिया..

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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