खरी – अखरी
अनैतिक तरीके अख्तियार कर दूसरी पार्टियों को झटका देने वाली पार्टी को दे रहा एस सी झटके पर झटके (नैतिक झटके)

ईश्वर का लाख – लाख शुक्र है कि ऐसी कोई खबर खबरचियों ने नहीं चलाई।
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एसबीआई मुख्यालय की फलानी – ढिकानी मंजिल पर भयानक आग लगी। सब कुछ जल कर हुआ राख। इसी मंजिल में रखे हुए थे इलेक्टोरल बांड्स से संबंधित कागजात। पुलिस ने कहा आग शार्क सर्किट की वजह से लगी। इसे संयोग कहा जाय या…………. ।
मोदी सरकार जिस तरह से इलेक्टोरल बांड्स की सार्वजनिकता पर परदा डालने की भरसक कोशिश में लगी हुई थी। एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई समय सीमा खत्म होने से 2 दिन पहले सुप्रीम न्यायालय ने अर्जी दाखिल कर जून की समाप्ति तक का समय मांगा था मगर बैंक के वकील की तमाम दलीलों के बाद भी 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने अच्छी खासी क्लास लगाते हुए न केवल बैंक की अर्जी खारिज की बल्कि फटकार लगाते हुए नई समय सीमा 12 मार्च तय करते हुए चेतावनी दी कि यदि अब कोर्ट के आदेश को हल्के में लिया गया तो कोर्ट की अवमानना का सामना करने के लिए तैयार रहें ।
मोदी – शाह द्वारा की जाने वाली हर जायज – नाजायज हरकतों को अंध भक्तों और गोदी मीडिया द्वारा मोदी का मास्टर स्ट्रोक बताने वालों के लिए कोर्ट के इस फैसले को मोदी – शाह के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक पखवाड़े के भीतर मोदी – शाह की भाजपा पर दूसरा करारा प्रहार किया है। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में प्रीसाइडिंग आफीसर अनिल मसीह द्वारा की हेराफेरी पर फटकार लगाते हुए असंवैधानिक तरीके से चुने गए मेयर मनोज सोनकर को पद से हटाते हुए कुलदीप कुमार को मेयर की कुर्सी पर बैठा दिया। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में शायद यह फैसला है जब निर्वाचित घोषित किए गए मेयर को हटाकर पराजित घोषित किए गए मेयर को कुर्सी सौंपी गई है ।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड की अगुआई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इन दोनों फैसलों ने आम आदमी के इस विश्वास को मजबूत तो किया ही है कि सुप्रीम कोर्ट में अभी भी जीवंतता है वरना देश की कई संवैधानिक स्वायत्त संस्थाओं के हालात तो मुरदों से भी गये बीते हैं। उम्मीद की जाती है कि अब एसबीआई मोदी कुचक्र से बाहर निकल कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई समय सीमा के भीतर इलेक्टोरल बांड्स की सारी जानकारी सीईसी से साझा कर अपने दामन में लग चुके दाग को गहरा नहीं करेगा ।
इस समय देश भर में जिस तरह से ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की जा रही है तथा इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाखिल है तो देश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड से अपेक्षा कर रहा है कि वह आम चुनाव की तारीखें घोषित होने के पहले ईवीएम और बैलेट पेपर में से किस पद्धति से चुनाव कराया जाना उचित होगा उस पर निर्णय देवेंगे ।
कहते हैं तरबूजे को देखकर तरबूजा रंग बदलता है। तो क्या निर्वाचन आयोग और दूसरे संवैधानिक स्वायत्त संस्थान मर्दानगी दिखाते हुए अपने जिंदा रहने का सबूत देंगे।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार