482 के तहत हाईकोर्ट यह जाँच कर सकता है कि दीवानी मामले को आपराधिक रंग तो नहीं दिया जा रहा है : सुप्रीम कोर्ट

सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट यह जाँच कर सकता है कि दीवानी मामले को आपराधिक रंग तो नहीं दिया जा रहा है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े] सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए हाईकोर्ट इस बात की पड़ताल कर सकता है कि जो मामला दीवानी प्रकृति का है उसे आपराधिक मामला तो नहीं बनाया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मामले को दीवानी है पर उसे आपराधिक मामला बनाया गया है तो इस मामले का जारी रहना कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इस मामले को निरस्त किया जा सकता है। यह बात न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने अपने एक फ़ैसले में कहा। Also Read – ‘वकीलों पर प्रोफेशनल टैक्स लगाने व ‘व्यावसायिक भवनों’ के रूप में कार्यालयों पर ज्यादा संपत्ति कर वसूलने का मामला’-बीसीडी ने एलजी को पत्र लिखकर विरोध… प्रो. आरके विजयसारथी बनाम सुधा सीताराम मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों को निरस्त करने के आरोपियों की अपील को सुनने से मना कर दिया। मामले के तथ्यों के अनुसार यह विवाद दो परिवारों के बीच है। शिकायतकर्ता की बेटी आरोपी के बेटे की पत्नी है। बेटी की तलाक़ की अर्ज़ी पारिवारिकअदालत ने ख़ारिज कर दी। आरोपी के बेटे ने 17 फ़रवरी 2010 को अपनी सास के खाते में ₹20 लाख रुपए डाल दिए। बाद में जब दोनों के बीच वैवाहिक संबंध टूट गए तो उसने इस राशि की वापसी के लिए अपनी सास के ख़िलाफ़ एक मामला दर्ज कर दिया। Also Read – ‘गैरकानूनी गतिविधियों के बारे में जनता को ईमानदारी से बताना प्रेस का कर्त्तव्य, इससे प्रशासन को मिलती है सहायता’, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पत्रकार को… इसके बाद सास ने कहा कि यह राशि बाद में उसने अपने माँ-बाप को नक़द दी और उन लोगों ने इसकी कोई प्राप्ति रसीद उन्हें नहीं दी। सास ने आरोप लगाया कि आरोपी (उनकी बेटी का पति) और उसके माँ-बाप ने मिली भगत से इस पैसे को निकाल लिया है और जो दीवानी मामला दायर किया गया है उसमें कोईदम नहीं है। मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद आईपीसी की धारा 405, 406, 415 और 420 (धारा 34 के साथ) एफआईआर दर्ज किया गया। हाईकोर्ट ने इस एफआईआर को निरस्त करने से मना कर दिया। Also Read – ‘डिजिटल जीवन से राज्य का हित जोड़ना’ विषय पर SFLC के सहयोग से वेबिनार, जुड़िए LIVE सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बात की जानकारी दी कि कैसे हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस मामले की जाँच कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस शिकायत में वो सारी बातें होनी चाहिए जो इसे आईपीसी के तहत एक अपराध बनाता है। कोर्ट ने कहा – “हाईकोर्ट सीरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकारों का जब प्रयोग करता है तो उसे यह देखना चाहिए कि शिकायत में जिन बातों का ज़िक्र किया गया है वे पीनल कोड के तहत उसे मामला बनाने के लिए पर्याप्त है या नहीं। अगर आरोप ऐसे नहीं हैं तो आपराधिक मामले को धारा 482 के तहत निरस्त किया जासकता है। पूरी शिकायत पर आरोपों के सही या ग़लत होने के बारे नहीं सोचते हुए उस पर उसकी समग्रता में विचार किया जाना चाहिए… यह ज़रूरी है कि पीनल कोड के तहत शिकायत लायक़ सारे आवश्यक तथ्य उसमें हों।” Also Read – मुख्यमंत्री अधिवक्ता कल्याणकारी योजना : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिया निर्देश, 7 अगस्त से पहले बीमा के लिए बोली प्रक्रिया की तारीख तय करें शिकायत की जाँच करते हुए पीठ ने कहा, इस मामले में शिकायतकर्ता ने दीवानी मामले को आपराधिक प्रकृति का बताने की कोशिश की है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है और मामले को ख़ारिज किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, “सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मिले अधिकार का प्रयोग सावधानी से करने की ज़रूरत है। इसके तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट इस बात की पड़ताल कर सकता है कि कोई मामला जो कि आवश्यक रूप से दीवानी प्रकृति का है, उसे आपराधिक मामले का रूप तो नहीं दिया गया है। अगरशिकायत को सिर्फ़ पढ़कर ही ऐसा नहीं लगता कि ये तथ्य आपराधिक मामलों से संबंधित हैं, तो इस मामले को जारी रहना अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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