श्री नाथ मंदिर में लूटने के लिए आते और पुनः प्रशाद जोलियों में भरते है

आज गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव हे सब जगह के अन्नकूट और नाथद्वारा के अन्नकूट में बहुत बड़ा अंतर हे

अन्नकूट की लूट

श्रीनाथजी के बृज से मेवाड़ पधारने पर जगह जगह आदिवासियों और भीलो किसी न किसी प्रकार का साथ रहा ही हे प्रभु के मंदिर को बनाने में राजसिंह के शासन में भी उनके आदेश पर यही मजदूर लगे थे प्रभु का मंदिर बनाने में


नाथद्वारा और आसपास के गांव के भील आदिवासी दिन में ही बस भर भर के नाथद्वारा के मार्केट में दिखना शुरू हो जाते हे रात होते होते हजारों की तादात में भील आदिवासी श्रीजी मंदिर के आस पास पहुंच जाते हे

रात्रि में अन्नकूट दर्शन केवल इन भील आदिवासी के लिए खोले जाते हे भील आदिवासी अपने शरीर पर बड़े बड़े जोला लटकाए आते हे ताकि खूब प्रशाद भर के ले जा सके
इधर श्रीनाथजी मंदिर के अंदर जहा से लोग दर्शन करते हे उस जगह से पूरा स्थान केवल प्रशाद से भर दिया जाता हे बड़े बड़े चांवल के पर्वत बना दिए जाते उनके ऊपर एक दीप प्रज्वलित रहता है।

जहा श्रीजी के दर्शन होते हे वो आदिवासी आते हे दोनो के बीच बड़ी बड़ी सलाखों का रेलिंग लगाया जाता हे।

बाहर रत्न चोक में प्रशाद से भरी मटकियां की दीवार चुन दी जाती हे ना ना प्रकार के व्यंजन धरे जाते हे

तब तक किसी की भी एंट्री अंदर नही होती हे

रात अन्नकूट की लूट के दर्शन खोलते वक्त मंदिर के बाहर का मुख्य दरवाजा खोला जाता हे आदिवासी इतनी तादात में और इतनी गति से अंदर धावा बोलते हे की खोलते वक्त सिपाही गार्ड को पूरी सावधानी के साथ दरवाजे से दूर भागना पड़ता हे

दरवाजा खोलते ही आदिवासी भील डोडते हुए अंदर जाते ही श्रीजी बावा को देखते हुए प्रशाद को चुन चुन के जोलियो में भरते हे और मंदिर के बाहर जाके अपने परिवार की स्त्री को प्रशाद देकर पुनः मंदिर में लूटने के लिए आते हे। और पुनः प्रशाद जोलियों में भरते हे।

*आज मेरे प्रभु श्रीजी बावा अन्नकूट प्रशाद पर केवल अपने भोले भील आदिवासियों को अधिकार देकर उनका मान बढाते हे और बड़े बड़े करोड़पति बड़े से बड़ा व्यक्ति उन भील आदिवासियों के सामने हाथ फैलाकर खड़े रहते हे और उन से कुछ प्रशाद के कण के लिए बार मांगते हे इस अन्नकूट के प्रशाद का विशेष महत्व है नाथद्वारा में इस प्रशाद के लिए सभी व्याकुल रहते हे *,,

आदिवासी श्रीजी के सामने ही खड़े खड़े दर्शन कर करके प्रशाद भरते रहते हे और धी धी कर जोली भर भर के डोडते रहते हे और श्रीजी के जयकारे लगाए करते है

यह क्रम काफी लंबे समय तक चलता रहता हे ओर तब तक चलता हे जब तक सारा प्रशाद खतम नही हो जाता

प्रभु अन्नकूट प्रशाद लुटते देखते आदिवासियों को आनंदित देख कर प्रसन्न होते हे।

बाद में वैष्णव भक्तो के लिए दर्शन खोलते हे।

अन्नकूट के प्रशाद की महिमा का बखान में क्या करू , खुद महाप्रभु जी इसका बखान करते रह गए

आज भी इस भोग की महिमा भारी हे लोग चावल को लेके सूखा कर अपनी तिजोरी में लेके रखते हे , और उसचांवल प्रशाद को आदिवासी सुखा कर साल भर खाते हे।

सभी को मंगल बधाई
श्रीजी सखा मण्डली नाथद्वारा

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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