खरी – अखरी *शुरू हो गया मदारियों का खेल*

विधानसभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया का अंतिम संस्कार पूरा हो गया। उम्मीदवार वोटरों के बीच जाकर अपने-अपने तरीके से रिझाने में लग गए हैं। राष्ट्रीय पार्टियों के स्टार प्रचारकों के दौरों की भी शुरूआत हो चुकी है और उन्होंने आमसभाओं में बटोर कर लाई जा रही भीड़ को हसीन ख्वाब दिखाने का मायाजाल फैलाना भी शुरू कर दिया है जिसे कुर्सी प्राप्ति के बाद बड़ी बेशर्मी के साथ जुमला बताने में भी परहेज नहीं किया जायेगा।

राजनीतिक दलों से उपकृत मीडिया घराने भी अपने – अपने सर्वे जारी कर राजनीतिक दलों के पक्ष में माहौल बनाने का काम कर चुके हैं। अब चूंकि चुनाव आयोग ने मीडिया पर सर्वे जारी करने की लगाम लगा दी है इसलिए अब मीडिया खबरों के माध्यम से अपनी पोषक पार्टियों के पक्ष में हवा बहाने की तैयारी में जुट गए हैं। कुछ ने तो राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को बाकायदा वोटिंग तक उनको महिमामंडित करने वाली खबरें छापने का पैकेज तक आफर किया हुआ है। यह अलग बात है कि मतदाता बिछाये जा रहे जाल में कहां तक फंसता है। वैसे भी मीडिया की बनाई गई छबि से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। क्लाईमैक्स तो वोटिंग के 48 के भीतर होता है जब मतदाताओं के खास समूहों के बीच दारू, साड़ी, कंबल, नगदी बांटने के लिए पहुंचाई जाती है और दुहाई निष्पक्ष मतदान की देकर लोकशाही को मजबूत किया जाता है।

इस बार पांचों राज्यों में कांग्रेस मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चुनाव मैदान में है तो वहीं भाजपा पहली बार मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने के बजाय नरेन्द्र मोदी के नाम पर विधानसभा के लिए वोटों की याचना कर रही है जबकि जनता इस बात को भलीभांति जानती समझती है कि नरेन्द्र मोदी किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले नहीं हैं। भाजपा की नरेन्द्र मोदी वाली याचना के जाल में मतदाता किस हद तक फंसता है इसका खुलासा तो मतगणना के पश्चात ही होगा।

मुडवारा में जाल बिछा गए शिवराज

मुख्यमंत्री पद का अंतिम ओव्हर खेल रहे शिवराज सिंह चौहान ने मुडवारा प्रत्याशी संदीप जायसवाल (फूल छाप कांग्रेसी) के समर्थन में तकरीबन जनविहीन सभा को संबोधित करते हुए पूर्व की भांति एकबार फिर उन्हीं पुरानी घोषणाओं का दुहराव ही किया। 18 साल से पूरा होने की बाट जोह रही घोषणाएं मतदाता को कहां तक प्रभावित करेंगी संदेहास्पद है। हां मुख्यमंत्री ने यह कह कर कि संदीप और मैं ब्लैंक चैक हूं जनता को चटकारे लेने का मौका जरूर दे दिया है। आम आदमी तो यह कर मजा ले रहा है कि संदीप और शिवराज ब्लैंक चैक नहीं डिसआनर (अनादरित) चैक हैं।

शिवराज की मौजूदगी में सभा को संबोधित करते हुए संदीप ने घंटाघर रोड़ के बहाने खुद के खिलाफ षडयंत्र रचने का आरोप लगाकर अपनी ही पार्टी की नगर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है । सारा शहर जानता है कि महापौर प्रत्याशी रहीं ज्योति दीक्षित (भाजपा) और प्रीति सूरी (भाजपा विद्रोही – निर्दलीय) तो मोहरे थीं असल टसल तो परदे के पीछे विधायक द्वय संदीप और संजय के बीच थी। जिसमें बाजी संदीप ने जीती थी। यह अलग बात है कि कुछ समय बाद प्रीति सूरी ने पाला बदलते हुए संजय के कहने पर भाजपा ज्वाइन कर ली।

शायद यह भी एक कारण हो सकता है मुख्यमंत्री के सामने अपनी भड़ास निकालने का। महापौर चुनाव में भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी रहीं ज्योति दीक्षित ने विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की तरफ से उम्मीदवार बनाये गये संदीप जायसवाल का खुला विरोध करते हुए ना केवल भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया बल्कि मुकाबले में भी उतर गई हैं। जन मानस में इस बात की खासी चर्चा है कि ज्योति दीक्षित को संजय पाठक ने संदीप जायसवाल के खिलाफ खड़ा किया है जबकि ज्योति दीक्षित और उनके समर्थक इस बात को सिरे से खारिज कर रहे हैं। भाजपा की टिकिट पर पार्षद चुने गए संतोष शुक्ला भी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।

पार्टी के भितरखाने से तो यह खबर भी निकल कर आई थी कि पार्टी के टाप लीडरों ने अशोक विश्वकर्मा नामक व्यक्ति को बतौर निर्दलीय प्रत्याशी फार्म भरवाया था संदीप के खिलाफ, जिसमें संदीप की अपरिपक्वता का योगदान भी बताया जाता है । समय रहते या यूं कहा जाय ऊपर बैठे आकाओं की दबिश पर अशोक का फार्म वापिस कराया गया। मगर एक सवाल तो जनता के बीच तैर ही रहा है कि अशोक के नाम वापिस लेने का फायदा किसको मिलेगा। संदीप को या फिर निकटतम प्रतिद्वंद्वी को ?

संदीप की जीत जहां मुडवारा में एक ऐसा नया कीर्तिमान स्थापित कर इतिहास लिखेगी जिसे बदलना सहज ही आसान नहीं होगा। मगर देखने में आ रहा है कि गैर तो दूर अपने ही कांटे बिछाने में लगे हुए हैं।

वैसे तो निर्णायक भिडंत भाजपा के संदीप जायसवाल और कांग्रेस के मिथिलेश जैन के बीच ही है मगर नगरीय निकाय चुनाव में घोषित उम्मीदवार होने के बावजूद महापौर की कुर्सी का निवाला शाजिसन छीन लिए जाने से घायल शेरनी बनी ज्योति दीक्षित समय के साथ – साथ अगर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दे तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

वैसे भी कटनी में विधानसभा में तो नहीं नगरीय चुनाव में जरूर कटनी की जनता ने महापौर की कुर्सी पर एकबार निखालिस निर्दलीय कमला जान हिजड़ा को तथा दो बार पार्टी विद्रोही बन निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले संदीप जायसवाल और प्रीति सूरी को बैठा चुकी है। विधानसभा चुनाव में अगर नगरीय चुनाव के इतिहास की पुनरावृति होती है तो यह भी अपने-आप में एक ऐतिहासिक कीर्तिमान होगा।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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