
अभिनेता सुशांत सिंह राजूपत के मामले में मंगलवार को एक नई जीरो एफआईआर दर्ज की गई है. इसके बाद जीरो एफआईआर को लेकर चर्चा हो रही है. ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल आ रहा है कि जीरो एफआईआर आखिर होती क्या है. तो हम आपको बताने जा रहे हैं कि कानून कैसे और कब पुलिस को जीरो एफआईआर लिखने की इजाजत देता है.
कानूनी जानकार बताते हैं कि अक्सर किसी भी आपराधिक मामले में एफआईआर (FIR) दर्ज करते वक्त इस बात का ख्याल रखा जाता है कि घटनास्थल से संबंधित थाने में ही शिकायत दर्ज की जाए ताकि आगे की कार्रवाई को आसानी से आगे बढ़ाया जा सके. लेकिन कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब पीड़ित को विपरीत और विषम परिस्थितियों में किसी बाहरी पुलिस थाने में केस दर्ज कराने की जरूरत पड़ जाती हैं.
मगर अक्सर देखने आता है कि पुलिस अपने थाने क्षेत्र की सीमा से बाहर हुई घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती है. जबकि वादी को उस वक्त शिकायत दर्ज कराने की ज़रूरत होती है. ऐसे में सरकार ने पीड़ित जनों की सहायता करने और उनके नागरिक अधिकारों को बचाए रखने के लिए कानून में जीरो एफआईआर का प्रावधान किया है.
इसके तहत पीड़ित नागरिक किसी भी अपराध के सन्दर्भ में बिना देरी किए किसी भी नजदीकी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. जिसे जीरो एफआईआर के तौर पर थाने में दर्ज किया जाता है. बाद में उपरोक्त केस को संबंधित थाने में ट्रान्सफर कर दिया जाता है. फिर वहां की पुलिस उस केस में कार्रवाई करती है.