योगी जी की जातिगत न्याय की अवधारणा को पलीता लगाते डिप्टी सीएम

योगी जी की जातिगत न्याय की अवधारणा को पलीता लगाते डिप्टी सीएम
-मदन गोपाल शर्मा
योगी आदित्यनाथ बहुत ही दूरदृष्टि रखने वाले प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने जातियों में बंटी उत्तर प्रदेश की जनता को न्याय दिलाने के लिए सत्ता का विभाजन करने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई। इससे पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने कभी जातियों को साधने के लिए दो-दो उपमुख्यमंत्रियों को सत्ता में भागीदार नहीं बनाया। यह योगी आदित्यनाथ की ही सोच है कि जिन जातियों की सरकार में भागीदारी कम या नगण्य है, उनको न्याय नहीं मिल पा रहा है और वे जातियां उनकी पार्टी के प्रति समर्पित हैं तो उन्हें न्याय मिलना ही चाहिए, शायद इसी विचार को ध्यान में रखते हुए कुछ जातियों को साधने के लिए उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा दो उपमुख्यमंत्री बनाये थे। दूसरे कार्यकाल में दिनेश शर्मा को हटाकर उनके स्थान पर ब्राह्मणों को साधने के लिए ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर पदस्थ किया। लेकिन जिस प्रकार दिनेश शर्मा योगी जी की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे उसी प्रकार ब्रजेश पाठक भी प्रदेश की जनता को अपने कार्य से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं, वैसे ही केशव प्रसाद मौर्य भी अनुपयोगी ही साबित हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि मैं यह पंक्तियां किसी दुराभाव की वजह से लिख रहा हूं। मैं दोनों उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक से रूबरू मिला हूं और उन्हें ऐसे प्रकरणों पर कार्यवाही करने हेतु प्रार्थनापत्रों को सौंपा जिन्हें पढ़ने के बाद अंधा व्यक्ति भी सम्बंधित अधिकारियों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही कराने हेतु आदेश देता, जिससे मुझे ही नहीं बल्कि दर्जनों व्यक्तियों को न्याय मिलता।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य वर्तमान विधानसभा चुनाव से पूर्व वर्ष 2021 में बहुत सी योजनाओं की शिलाओं का उद्घाटन कम बल्कि चुनावी सभा को ज्यादा, सम्बोधित करने ग्रीन गार्डन एटा में आये। मुझे याद है कि उस चुनावी सभा में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने एटा-गंजडुण्डवारा रोड के निर्माण की घोषणा करते हुए निर्माण राशि को अवमुक्त करने की बात कही थी। लेकिन एटा-गंजडुण्डवारा रोड आज तक निर्माण की आस लगाये बैठा है। उस सभा में मेरे अलावा एटा के हजारों लोगों ने अपनी-अपनी समस्याओं से सम्बंधित प्रार्थना पत्र सौंपे लेकिन उन पर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला क्योंकि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सौंपे गये हमारे एक प्रार्थना पत्र के संदर्भ में अलीगढ़ के परियोजना प्रबंधक को जांच सौंप दिये जाने हेतु मुख्य विकास अधिकारी अलीगढ़ द्वारा अवगत कराया गया। समस्या यूपीएसआईडीसी के क्षेत्रीय प्रबंधक से थी जिसके सम्बंध में एटा के जिलाधिकारी ने स्पष्ट कहा था कि क्षेत्रीय प्रबंधक की जांच हम नहीं करा सकते तो फिर परियोजना निदेशक अलीगढ़ क्या जांच करते, उन्होंने भी आज तक मुझे अवगत नहीं कराया कि जांच में क्या कार्यवाही हुई?
इसी प्रकार दूसरे उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जी को यही प्रार्थना पत्र दो बार सौंपा गया। पहली बार तब जब हमारे लोकप्रिय सदर विधायक विपिन वर्मा ‘डेविड’ भी उपमुख्यमंत्री से मिलाने उनके सरकारी आवास पर हमारे साथ गये थे। दूसरी बार प्रार्थना पत्र तब उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जी को सौंपा गया जब वे लखनऊ में एक समाचार पत्र का उद्घाटन करने आए थे। दोनों बार के प्रार्थना पत्रों का एक ही हश्र हुआ, प्रार्थना पत्र मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज हुए और यूपीएसआईडीसी ने मनचाहे जवाब देकर प्रकरण को ठंडा करा दिया। जबकि 16 अगस्त 2018 को निरीक्षण हेतु आये तत्कालीन आयुक्त/निदेशक उद्योग उत्तर प्रदेश, कानपुर के. रवीन्द्र नायक द्वारा इसी प्रकरण को सुनते हुए औद्योगिक क्षेत्र आईआईडीसी एटा में रजिस्ट्री कराये गये भूखण्डों का बगैर कब्जा दिये निरस्त किये जाने का दोषी मानते हुए इसका समस्त उत्तरदायित्व क्षेत्रीय प्रबंधक यूपीएसआईडीसी अलीगढ़ को लिखित रूप में माना जा चुका है जिसके समस्त प्रपत्र दोनों उपमुख्यमंत्रियों को सौंपे गये थे। लेकिन सत्ता में बैठे राजनीतिक व्यक्ति पीड़ितों के प्रार्थना पत्र सदैव ठुकराते रहे हैं, वही केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जी कर रहे हैं। काश! इन प्रार्थना पत्रों पर न्याय मिला होता तो लगभग एक दर्जन गरीब लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में समय और धन खर्च नहीं करना पड़ता। साथ ही यह संदेश भी दूर तक जाता कि भाजपा सरकार में गरीबों को भले ही निचले स्तर पर अधिकारियों से न्याय न मिल रहा हो लेकिन सरकार के स्तर से न्याय मिलने में देर नहीं होती। मुख्यमंत्री का जनसुनवाई पोर्टल जनता की समस्याओं का निराकरण तो नहीं करता बल्कि अधिकारियों की साठगांठ के कारण सरकार की जनता में बदनामी का कारण बन गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार लखनऊ और गोरखपुर में जनता दरबार लगाकर प्रदेश की जनता को दुःख-दर्द को सुनकर उनका निराकरण कर रहे हैं वैसे ही दोनों उपमुख्यमंत्री प्रत्येक जिलों में जा-जाकर जनता दरवार लगाकर प्रदेश की जनता के दुःख दर्द को दूर करने की भावना से कार्य करते तो निश्चित ही जनता की नजर में भाजपा सरकार के अच्छे कार्यों की गिनती में वृद्धि होती। लखनऊ और गोरखपुर में लगने वाले जनता दरवार सुविधा को लोग सपा और बसपा सरकार द्वारा कुछ जिलों में बांटी जाने वाली बिजली की तरह बता रहे हैं, क्यों कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अब तक किसी अन्य जनपद में जाकर जनता की समस्याओं को वैसे नहीं सुना जैसे लखनऊ और गोरखपुर की जनता को सुनकर उनके दुःख दर्द दूर किये जा रहे हैं। दोनों उपमुख्यमंत्री लखनऊ के अलावा अन्य जनपदों में जनता दरवार लगाकर सहयोगी बनते और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जातिगत न्याय की सोच को समझकर गरीबों के घर तक न्याय देने में सहायक होते तो योगी सरकार की उपलब्धियों में चार-चांद लग जाते, लेकिन दोनों उपमुख्यमंत्री जनसेवा के नाम पर दिखावे की राजनीति के साथ सुविधा भोगी बनकर मुख्यमंत्री योगी की जातिगत न्याय की अवधारणा को पलीता लगा रहे हैं।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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