5 जुलाई से 60यानी साठ का पाठा कहलाऊंगा,शंकर देव तिवारी

अब असलियत का जन्म दिन पता नहीं । सन और तारीख का पता असल उस दिन पता चला जब कस्बा के प्राथमिक विद्यालय में नाम लिखा गया । बीती रात्रि नाम को लेकर पिताजी के साथ मन्त्रणा होती रही । जब स्कूल पँहुँचे तो रात्रि को तय नाम दिवेश की जगह हरिशंकर लिखा तब 5 जुलाई 1960 लिखा गया जन्म वैसे असल क्या था की जानकारी कबहुँ नहीं पूछ सका। नाम परिवर्तन की सजा मांके फिकउआ लहराते चिमटा ने जो घोंटू में धंस के गहरा घाव बनाया के रूप में छह माह तक सल पड़ती रही । 68 से शिक्षा के नाम पर इधर उधर लुढ़कना शुरू हुआ तो वह जाकर 74 में आके बाह पर ही थमा ।इसबीच इटावा जनपद के आधा दर्जन भर गांव छान मारे जहाँ बड़े मामा की पोस्टिंग रही पढ़ने भेजा जाता रहा उनके पास । 76 में फेल 77 में पास खेल के साथ प्रेम में हार ने तोड़ दिया। लिखने का शोक मैदान अखाड़े के अलावा लग गया । घर वाले दिवेश कहना नहीं भूले थे । स्कूल से विद्यालय तक हरीशंकर । इंटर के तीन साल बाद भरतपुर होम्योपैथी के डॉक्टर बनने जब पँहुँचा तब हरिशंकर के आगे देवेश लिख काव्य सृजन शुरू हो चुका था । भरतपुर छूटा 84 तक गद्य भी लिखने लगा । इस बीच दो पुस्तक छपी जिनमें नाम शंकर देव लिख तिवारी लोप किया तो पसंद आया । बहुत कुछ घटा और डॉक्टर से पत्रकारिता में रास्ता मुड़ विकासशील भारत 1985 में पकड़ा । 86 में अमर उजाला 93 तक , 2004 तक आज, 2008 तक दैनिक भास्कर, 10 तक अमर उजाला, 17 तक बी पी एन टाइम्स , स्थानीय संपादक , 22 माह सी एक्सप्रेस समाचार सम्पादक, फिर व्यास दृष्टि , जनसन्देश 2018 से मार्च 2020 तक के बाद से स्वतंत्र पत्रकारिता में हूं । और कल 60 का हो जाऊंगा । अर्थात आराम अवकाश निमित्तता से । बचपन से पचपन तक की यात्रा पर केवल यही कि बस मीशन जो चुना वो पूरा हो जिसमें चाहे जान चली जाए । कलम हाथ में सफेद झूठ को खोलने का काम करती रही । मान सम्मान की राह थी । पिताजी जीवन के आदर्श थे तो मित्रता के नरेंद्र और प्रेम के सुमन विस्मृति के थे । जीवन के सफर में पत्नी और मुकुल व मिनी जरूर हमसफ़र रहे । शालू ने भी भूमिका अदा की मगर जीवन में आज्ञाकारी बनने की ललक ने और किसी को आज्ञाकारी नहींबना सका । सभी अपने मित्रवत रहे ।जीवन के कई उतार चढ़ाव स्मरण में आते जाते हैं । संघर्ष कर्म फल सवाल जवाब किंतु परंतु से अगर मगर के अथाह सागर में गोता लगाते हुए 60 तक आ पँहुँचा । 5 जुलाई से 60यानी साठ का पाठा कहलाऊंगा ।
यादों में खेल, मेल, और मिलाप है जो वक्त के साथ खो गए ।रह गए आरोप प्रत्यारोप बस!
हालांकि 28 अगस्त 2019 को पड़े ह्रदयघात से घर का होकर रह गया हूँ । लोग कहते हैं किंग मेकर मगर मैं प्रश्न चिन्ह ही लगता हूँ अपने आप पर खुद के द्वारा लगाया हुआ ।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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