
मैनपुरी और खतौली में मिली हार के बाद भाजपा के लिए बढ़ीं निकाय चुनाव की चुनौतियां सपा के गढ़ रहे आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीटें जीतने के बाद उपचुनाव ने सत्ताधारी भाजपा को झटका दिया है। भाजपा मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी डिंपल यादव को ऐतिहासिक जीत दर्ज करने से नहीं रोक पाई तो पिछले दो बार से उसके कब्जे में रही मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट हाथ से निकल गई। रामपुर की जीत ने उसके घाव पर मरहम लगाया है।
लोकसभा चुनाव में मिशन-80 के लिए चुनौतियां बढ़ीं
डबल इंजन की सरकार के बूते भाजपा ने उपचुनाव में जिस करिश्मे की उम्मीद संजोयी थी, वह सिर्फ रामपुर में ही पूरी होती दिखी। उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के लिए नगरीय निकाय चुनाव के साथ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मिशन-80 के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं। भाजपा ने जिस आक्रामक तेवर के साथ प्रचार किया और तीनों सीटों पर सरकार और संगठन की पूरी ताकत झोंकी, उपचुनाव के परिणाम संकेत देते हैं कि निकाय चुनाव के लिए उसे अपनी तैयारियों पर पुनर्विचार करना होगा। खासतौर पर जब उसका जोर निकाय चुनावों में क्लीन स्वीप कर ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने का हो।
सीएम योगी की जनसभाएं भी नहीं आई काम
मैनपुरी के अभेद्य सपाई गढ़ को ढहाने के लिए भाजपा ने अपना पूरा फायर पावर झोंक दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विधानसभा क्षेत्र करहल और मैनपुरी में जनसभाएं कीं। दोनों उप मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री और संगठन पदाधिकारी मैनपुरी में डेरा डाले रहे लेकिन नतीजे ने सारे समीकरण तार-तार कर दिए। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र के जिन दो विधानसभा क्षेत्रों-मैनपुरी और भोगांव पर भाजपा काबिज है, उनमें भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह मैनपुरी तो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में आबकारी मंत्री रहे रामनरेश अग्निहोत्री भोगांव विधानसभा क्षेत्र में पार्टी की प्रतिष्ठा नहीं बचा पाए।
शिवपाल और अखिलेश के एक होने से बीजेपी का हुआ बुरा हाल
शिवपाल के शिष्य रहे रघुराज सिंह शाक्य को टिकट थमाकर भाजपा ने शाक्य के साथ यादव वोट बटोरने की जो योजना बनाई थी, वह शिवपाल और अखिलेश के एका से धूल-धूसरित हो गई। हालांकि रघुराज सिंह शाक्य का अपना बूथ हार जाना पार्टी के प्रत्याशी चयन पर भी सवाल खड़े करता है। अपने लिए बेगानी रही मैनपुरी लोकसभा सीट की हार भाजपा पचा भी ले लेकिन खतौली सीट का हाथ से निकल जाना उसे सालता रहेगा। मुजफ्फरनगर दंगे के केंद्र में रहे खतौली के निवर्तमान विधायक विक्रम सैनी के दंगे से ही जुड़े मुकदमे में सजायाफ्ता होने पर उनकी पत्नी राजकुमारी सैनी को मैदान में उतार कर भाजपा ने उनके समर्थन में भावनात्मक ज्वार उमडऩे की उम्मीद लगाई थी।
सपा-रालोद गठबंधन ने खतौली पर कब्जा कर भाजपा को दी चुनौती
सपा-रालोद गठबंधन की ओर से किसानों की समस्याओं और बेरोजगारी को लेकर उठाये गए जमीनी मुद्दों ने उसकी उम्मीदों को धूमिल कर दिया। बसपा की अनुपस्थिति में यहां हुई आमने-सामने की लड़ाई में रही-सही कसर आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर ने गठबंधन के पक्ष में प्रचार करके पूरी कर दी। भाजपा सरकार और संगठन तो खतौली में मोर्चा संभाले ही रहे, केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री संजीव बालियान की मशक्कत भी उनके संसदीय क्षेत्र में पार्टी को हार से नहीं बचा पाई। पड़ोस की मुजफ्फरनगर सीट के विधायक और योगी सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल की सक्रियता भी काम न आई।
सपा के पास यादव और मुस्लिम वोट बैंक ही बचे
बसपा की गैर मौजूदगी में हुए उपचुनाव के नतीजों ने अगड़ों, पिछड़ों के साथ दलितों को साधने की भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग की मुहिम पर भी सवालिया निशान लगाया है। खासतौर पर तब जब यह माना जा रहा हो कि सपा के पास यादव और मुस्लिम वोट बैंक ही बचे हैं। चंद दिनों के फासले पर खड़े निकाय चुनाव और अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा पर उपचुनाव के परिणामों ने मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ चुनौतियां भी बढ़ाई हैं। खासतौर पर तब जब निकाय चुनाव की कसौटी भावनात्मक से ज्यादा आम आदमी की जरूरतों से जुड़े मुुद्दे हों।