
जयपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर शिवाड़ गाँव है जो बारहवें ज्योतिर्लिंग श्री घुश्मेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्द है। शिवाड़ को प्राचीन काल में शिवालय नाम से जाना जाता था। लक्ष्मी देवी इतनी देर यात्रा नहीं कर सकती थीं। पहले हवाई जहाज की यात्रा और फ़िर जयपुर से रणथम्बोर की यात्रा, इसलिए वे लोग शिवाड़ में रुक जाया करते थे। वहाँ उनकी एक २५-३० कमरों की हेली (हवेली) थी जहाँ वे आराम करते थे और शिवजी के मंदिर के दर्शन करके आगे की यात्रा पूरी करते थे। वे लोग शिवाड़ पहुँचे। जैसे ही लक्ष्मी देवी गाड़ी से उतरीं, उनके पैर ज़मीन पर पड़ने की बजाय किसी के हाथों पर पड़े। वे एकदम से हड़बड़ा गईं और पैर वापिस ऊपर खींच लिए। तभी एक रौबदार आवाज़ आई, “अब हमारा आपके चरणों की धूल तक पर अधिकार न रहा राणी माँ सा?” लक्ष्मी देवी और गाड़ी में बैठा यश दोनों ही यह आवाज़ सुनकर चौंक गए। यश अभी तक गाड़ी में था ताकि यदि दादी सा को कोई मदद चाहिए तो वह कर सके। आवाज़ सुनते ही वह एक झटके से गाड़ी से उतर गया।
दिलीप जी ने आरना का फ़ोन उठाया और पूछा, “बेटा आप पहुँच गए रेलवे स्टेशन?” उन्हें उत्तर में हाँ सुनने की इच्छा थी लेकिन उत्तर में कुछ और ही सुना। आरना ने उन्हें सब कह सुनाया और फ़िर अकेले ही रणथम्बोर जाने की अनुमति मांगी। हालाँकि उसे उम्मीद थी कि वे हाँ कर देंगे, दिक्कत तो माँ सा से हाँ सुनने में थी। दिलीप जी सोच में पड़ गए। उन्होंने कहा, “बेटा मुझे केवल दो मिनट का समय दीजिये। मैं आपकी माँ सा से बात करके बताता हूँ।” यह कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया और अर्चना जी से सारी बातें कह सुनाईं। अर्चना जी फ़िर से परेशान हो गईं और बोलीं, “सुनिए, आपको क्या लगता है? हमें उसे यूं अकेले जाने देना चाहिए? दिलीप जी बोले, “आप कैसी बात कर रही हैं अर्चना जी? आपको अपनी बेटी पर विश्वास नहीं है कि वे अपने आप को संभाल सकती हैं?” अर्चना जी दिलीप जी के हाथ पकड़कर बोलीं, “आप ऐसा सोच रहे हैं? आप अच्छी तरह जानते हैं हमारी चिंता की वजह। हमें अपनी बेटी पर अपने से भी अधिक विश्वास है। हम जानती हैं कि वे अपना ख़्याल रख सकती हैं लेकिन हमारी चिंता बेवजह नहीं है। वहाँ ख़तरा है। हम अपनी बेटी को जानते हैं मगर आप उन्हें भी जानते हैं ना? यदि वे वहाँ उनसे मिलीं और उन्हें पता चला कि आरना हमारी बेटी है तो आप जानते हैं ना कि क्या हो सकता है?” दिलीप जी बोले, “आप इतना परेशान मत होइए अर्चना जी। आरना इधर उधर तो जायेगी नहीं। वे रिसोर्ट से सफ़ारी करेंगी और फ़िर गणपति महाराज के दर्शन करके आ जाएँगी। हमारे हिसाब से उन्हें जाने देना चाहिए। यदि उन्हें रोका तो असली कारण हम उन्हें बता नहीं सकेंगे और बहाना किया तो वे समझेंगी कि हमें उनपर विश्वास नहीं है और यह बात उनके आत्मविश्वास के लिए ठीक नहीं है। वे एक राजपूतानी हैं और एक…।” कहकर वे चुप हो गए। अर्चना जी ने सर हिलाकर हाँ कह दिया। दिलीप जी ने आरना का नंबर लगाया।