आपराधिक कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जब शिकायत/एफआईआर किसी अधिनियम/अपराध में अभियुक्त की भागीदारी का खुलासा नहीं करती: सुप्रीम कोर्ट

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आपराधिक कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जब शिकायत/एफआईआर किसी अधिनियम/अपराध में अभियुक्त की भागीदारी का खुलासा नहीं करती: सुप्रीम कोर्ट

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🟩सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही तब रद्द की जा सकती है जब एफआईआर में दर्ज की गई शिकायत के आधार पर अभियुक्तों के किसी भी कृत्य या अपराध में उनकी भागीदारी का खुलासा नहीं होता।

🟪 इस मामले में आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 467, 468, 471, 504, 506, 448, 387 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया। उसने एफआईआर/चार्जशीट रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

जैसे ही हाईकोर्ट ने इसे खारिज किया, उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

⬛जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने इस बात की जांच नहीं की कि शिकायत क्या है और वर्तमान अभियुक्त किसी भी तरह से तथाकथित कथित अपराध से कैसे संबंधित हैं।

🟧अदालत ने तब हरियाणा राज्य और अन्य बनाम भजन लाल और अन्य विशेष रूप से निम्नलिखित श्रेणियों में जारी दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया:
जहां एफआईआर या शिकायत में लगाए गए निर्विवाद आरोप और उसके समर्थन में एकत्र किए गए साक्ष्य किसी अपराध के होने का खुलासा नहीं करते हैं और अभियुक्त के खिलाफ मामला बनता है।

🟪 जहां एफआईआर या शिकायत में लगाए गए आरोप इतने बेतुके और स्वाभाविक रूप से असंभव हैं, जिसके आधार पर कोई भी विवेकपूर्ण व्यक्ति कभी भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार है। यह नोट किया गया कि वर्तमान मामला पूरी तरह से श्रेणियों (1) और (3) द्वारा कवर किया गया।

अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा,

🟥”जिस शिकायत के आधार पर शिकायतकर्ता/द्वितीय प्रतिवादी के कहने पर एफआईआर दर्ज की गई, वह वर्तमान अपीलकर्ताओं के किसी भी कार्य या अपराध में उनकी भागीदारी का खुलासा नहीं करती है। वे न तो रजिस्टर्ड बिक्री विलेख दिनांक 4 मई, 1977 से संबंधित है और न ही बाद में श्रवण कुमार गुप्ता द्वारा दिनांक 22 दिसंबर, 2018 को शिकायतकर्ता के पक्ष में निष्पादित बिक्री विलेख का उल्लेख करते हैं।

🟫 इसके साथ ही, न ही विषय संपत्ति के कब्जे में है और न ही सिविल कार्यवाही के पक्षकार हैं। शिकायतकर्ता का यह मामला नहीं है कि या तो अपीलकर्ताओं ने दस्तावेज़ लिखने में कोई सक्रिय/निष्क्रिय भूमिका निभाई या दस्तावेज़ के सहायक या गवाह हैं, जिसके संदर्भ में धोखाधड़ी और जालसाजी करने के लिए शिकायत की गई है या प्रश्नगत संपत्ति के कब्जे के वितरण में कोई भूमिका निभाई है.

❇️यह प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने विषयगत संपत्ति पर कब्जा प्राप्त करने के लिए दबाव बनाने और विनोद कुमार गुप्ता, श्रवण कुमार गुप्ता और शिकायतकर्ता के बीच लंबित दीवानी विवाद को निपटाने के लिए वर्तमान अपीलकर्ताओं के परिवार के सदस्य होने के नाते फंसाया।

केस विवरण:- रमेश चंद्र गुप्ता बनाम यूपी राज्य |
एसएलपी (क्रिमिनल) 39/2022 | 28 नवंबर, 2022 |
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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