नकली नोटों के सिंडिकेट का सबसे बड़ा खुलासा, पाक-मलेशिया-दुबई में प्रिंटिंग और नेपाल से भारत मे इंट्री, कई तस्कर हिंदू लेकिन चेहरा मुस्लिम, बच्चे कैरियर, जाली डॉलर भी हो रहे जारी

कोरोना की लहर थमते ही भारत-नेपाल बॉर्डर पर जाली नोटों का धंधा धड़ल्ले से चल पड़ा है. इस धंधे में दुबई, मलेशिया, बांग्लादेश और पाकिस्तान के लोग शामिल हैं. बड़ा अड्डा नेपाल का परसा और बारा जिला हैं. सरगना दुबई में है. करीब 80 करोड़ जाली नोट की खेप नेपाल पहुंच चुकी है. दीपावली-छठ के बाद होली तक बाजार में कैश बढ़ेगा. उसी अनुपात में जाली नोट भी खपा दिए जाएंगे. इस धंधे की पड़ताल एक निजी न्यूज़ टीम ने की. उन्होंने भारत-नेपाल के बीच 1000 किमी का सफर तय किया. तस्करों तक पहुंचने के लिए टीम ने 30 लोगों से मुलाकात की. इनमें कई ऐसे लोग मिले, जो इस कारोबार में जेल जा चुके थे.
कई कोशिशों के बाद टीम नकली नोटों के एक बड़े कारोबारी तक पहुंची. उससे अपराधी बनकर मुलाकात की गई. कहा कि हम बड़ा काम करना चाहते हैं, जिसमें नकली नोटों का बड़ा अमाउंट लगेगा. उससे पूछा कि वह कितनी नकली करेंसी दे सकता है. जब कारोबारी को भरोसा हो गया तो उसने एक वीडियो दिखाया. इसमें दो सूटकेस में 100, 200, 500, 2000 के लगभग 80 करोड़ रुपए थे. उसने बताया कि नकली नोटों की प्रिटिंग पाक, मलेशिया, दुबई और बांग्लादेश में होती है. वहां से खेप श्रीलंका, पाकिस्तान, थाईलैंड, सिंगापुर, यूएई और मलेशिया के रास्ते नेपाल पहुंचती है.
100 का पत्ता या फिर 100 रुपए का नोट. ISI से भारत के बाजार तक पहुंचने में 100 रुपए के एक पत्ते में 6 गुना फायदा होता है. ISI 100 रुपए का नोट 25 रुपए में तस्करों तक पहुंचाती है. वहां से थोक तस्कर उसे 30 रुपए में फुटकर तस्करों को बेच देता है. फुटकर तस्कर सौदेबाजी कर 35 से 40 रुपए में इसे बेच देता है. जितना बड़ा नोट, फायदा उतना ही. नकली नोट तस्करी के सरगना जाति, धर्म पर अधिक विश्वास करते हैं. ऐसे में कई हिंदू तस्कर मुस्लिम बन कर धंधा कर रहे हैं. नेपाल में रहने वाला अभिषेक तिवारी दुबई और बांग्लादेश में असलम बन कर बात करता है. ये किसी का नाम लेने के बदले कोड में नोट, सोना, ड्रग्स के बारे में जानकारी देता-लेता है. नोटों की खेप भारत भेजने के लिए कैरियर के तौर पर बच्चों का भी इस्तेमाल किया जाता है. दशहरा, दीपावली, छठ में खरीद-फरोख्त बढ़ जाती है. नकली नोट खपाने के लिए तैयारी अगस्त से ही शुरू हो जाती है.
नेपाल के सांसद मिर्जा दिलशाद बेग की 1998 में हत्या के बाद वहां डी कंपनी और ISI का काम लाल मोहम्मद संभाल रहा था. उसकी 19 सितंबर 2022 को गैंगवार में मौत हो गई. अब ISI को नए चेहरे की तलाश है. इस समय नेपाल में नकली नोट, सोना और ड्रग्स के धंधे में सबसे बड़ा नाम अल्ताफ मियां और यूनुस अंसारी का है. दोनों जेल से ही धंधा चलाते हैं। ISI अल्ताफ पर दांव खेल रहा है. दुबई में गैंग का सरगना भी अल्ताफ को नेपाल में लाल मोहम्मद की जगह गिरोह की कमान सौंपना चाहता है. बड़े कारोबारी दो नंबर की कमाई को छिपाने के लिए अमेरिकी डॉलर में निवेश करते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि डॉलर भी फेक है. नेपाल से जाली डॉलर की खेप भी दुनिया के कई देशों में भेजी जा रही है.
महिला, बच्चे कुछ पैसे के लिए बॉर्डर की दूसरी तरफ नकली नोट की छोटी खेप की तस्करी करते हैं. छोटी पॉलीथिन में दो से तीन लाख नकली नोट पहुंचाने के बदले महिला और बच्चों को पांच सौ से हजार रुपए दिए जाते हैं. 10 से 20 लाख रुपए या बड़ी रकम के लिए तस्कर आलू के बोरे और कपड़े के गट्ठर के बीच नोटों के बंडल को पैक कर चारों तरफ से पॉलीथिन लगा देते हैं. इससे चेकिंग के दौरान भी नोट पकड़ में नहीं आता है. तस्कर पगडंडी के साथ खेतों का इस्तेमाल करते हैं. पैदल या साइकिल से तस्करी के सामान बॉर्डर पार करवाए जाते हैं. वहां से चार पहिया वाहनों से प्रदेश के अन्य हिस्से में पहुंचता है.
जाली नोट की खेप नेपाल से वीरगंज, रुपनदेही, सनौली, सिद्धार्थनगर के बढ़नी बॉर्डर से भारत में आती है. नकली नोट का कारोबार वीडियो दिखाने के बाद ओरिजनल और ट्रायल के आधार पर होता है. ग्राहक को फेक करेंसी के कारोबार का भरोसा दिलाने के लिए तस्कर पहले वीडियो दिखाते हैं. तस्करों से संपर्क साधने के लिए टीम ने 30 लोगों से मुलाकात की. कई ऐसे तस्कर भी मिले, जो जाली नोट के कारोबार में जेल जा चुके थे, लेकिन इन लोगों ने यह कह कर कुछ भी बताने से इनकार कर दिया कि वे तो अब भारतीय खुफिया एजेंसी के लिए ही मुखबिरी करते हैं. लेकिन, नेपाल और रक्सौल में लगातार संपर्क के बाद नकली नोट के एक पुराने तस्कर से मुलाकात हुई.
उसने दो घंटे बातचीत के बाद एक वीडियो दिखाया. इसमें दो सूटकेस में 100, 200, 500, 2000 के लगभग 80 लाख रुपए थे. जब नोट दिखाने को कहा तो काफी ना-नुकुर के बाद वह तैयार हुआ. रात को साढ़े दस बजे फोन कर उसने एक जगह बुलाया और वहां पांच-पांच सौ के 11 बंडल में साढ़े पांच लाख रुपए लाकर सामने रख दिया.
जब टीम ने नोट खरीदने के बारे में बात की, तो वह 40 रुपए में 100 का नोट देने को तैयार हो गया. साढ़े पांच लाख की फेक करेंसी के बदले डेढ़ लाख भारतीय रुपए की मांग की. टीम ने उसे अपने बॉस से पूछने की बात कह अगले दिन बुलाया. बातचीत के दौरान उसने अफरोज नाम के तस्कर के बारे में जानकारी दी. हालांकि, दूसरे दिन काफी इंतजार के बावजूद वह नहीं आया. फिर टीम नेपाल में वीरगंज के एक होटल में पहुंच गई. काफी इंतजार के बाद वहीं अफरोज पहुंचा. वह अपने साथ टीम को वीरगंज से 40 किलोमीटर दूर किसी सुवैठवा गांव ले गया. रास्ते में तस्कर ने कारोबार के बारे में पूरी जानकारी दी.
बताया कि नोट कहां से आता है? कहां छपता है और कहां सप्लाई होता है? सुवैठवा पहुंच कर तस्कर ने एक निर्माणाधीन कमरे में बैठाया. 45 मिनट के बाद वह एक पॉलीथिन में पांच सौ रुपए के नोटों का तीन बंडल लाया. प्रति बंडल के बदले उसने 15 हजार रुपए का असली नोट मांगा. टीम ने रकम बॉर्डर पार भारत पहुंचाने को कहा. तब उसने कमीशन बढ़ा कर 20 हजार रुपए प्रति बंडल कर दिया. फिर टीम ने अपने ऊपर बैठे असली कारोबारियों को सैंपल दिखाने के लिए कुछ नोट की मांग की. उसने इससे साफ मना कर दिया. टीम दूसरे दिन आने की बात कह रक्सौल लौट आई. इसके अगले दिन उसने नेपाल-भारत सीमा (महदेवा-सहदेवा गांव) पर बच्चे के हाथों नोटों के सैंपल की डिलीवरी करा दी.
एक तरफ एसएसबी का कैंप था, तो दूसरी तरफ नेपाल पुलिस का जवान खड़ा था. टीम नेपाल पुलिस के सामने ही नकली नोट का सैंपल लेकर भारत सीमा में प्रवेश कर गई. इस दौरान यह भी पता चला कि आईएसआई और दाउद इब्राहिम की कंपनी एजेंट के माध्यम से भारत में नकली नोट की सप्लाई के लिए कमीशन पर एजेंट रखती है. प्रत्येक 100 रुपए पर 25 से 30 प्रतिशत कमीशन दिया जाता है.