MP का व्यापमं पार्ट-2! मेडिकल यूनिवर्सिटी ने 2 बार फेल छात्रों को कर दिया पास, परीक्षा फर्जी छात्रों ने दिया, वीसी ने जांच में सहयोग नहीं किया, दागी को गोपनीय विभाग
मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय) में पास करने का जबरदस्त खेल चल रहा है. भले ही स्टूडेंट परीक्षा में नहीं बैठे, लेकिन पास कराने वाली ‘कंपनी’ पास करा ही देगी. भले ही इसके लिए नियम तोड़ना पड़े. शर्त बस इतनी है कि आपका एडमिशन NRI कोटे से होना चाहिए.

मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, जबलपुर में NRI कोटे के MBBS व BDS के 13 ऐसे छात्रों को पास कर दिया गया, जो री-वैल्यूवेशन में 2 बार फेल हो चुके थे. उन्हें स्पेशल केस का फायदा देकर तीसरी बार री-वैल्यूवेशन कराया गया और पासिंग मार्क्स दे दिए गए. यह खुलासा जस्टिस केके त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली कमेटी की जांच रिपोर्ट में हुआ है. आयोग ने फेल-पास के खेल की जांच के आधार यह रिपोर्ट तैयार की है, जिसे हाईकोर्ट में पेश किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि NRI कोटे के जिन छात्रों को री-वैल्यूएशन में पास किया गया है, उनकी कॉपियों की जांच की गई तो इनमें ओवर राइटिंग मिली है. खास बात यह है कि यूनिवर्सिटी में री-वैल्यूवेशन का नियम ही नहीं है. छात्रों के न सिर्फ नंबरों में हेरफेर कर मार्कशीट जारी की गई, बल्कि कई ऐसे छात्रों को पास बताया गया जो एग्जाम देने ही नहीं आए थे. परीक्षा वाले दिन वो गैरहाजिर थे.
रिटायर्ड जस्टिस केके त्रिवेदी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय जांच कमेटी का 14 अक्टूबर 2021 को गठन किया गया था. कमेटी ने जांच के बाद सीलबंद लिफाफे में यह रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. कमेटी में साइबर क्राइम के एडीजी योगेश देशमुख, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुनील कुमार गुप्ता, सीनियर कंसलटेंट MPSEDC विरल त्रिपाठी व इंजीनियर टेस्टिंग AAPSEDC प्रियंक सोनी शामिल थे.
साल 2011 में जबलपुर में शुरू की गई मध्यप्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी के अंतर्गत राज्य के सारे MBBS, डेंटल, नर्सिंग, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, पैरामेडिकल के कोर्स चलते हैं. पिछले फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को अपना पद छोड़ना पड़ा था. लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं अधिवक्ता विशाल सिंह बघेल ने बताया कि मेडिकल यूनिवर्सिटी में परीक्षा परिणामों में अंकों के हेरफेर के मामले में एक याचिका हाईकोर्ट में लंबित है. कोर्ट के निर्देश पर जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में सौंप दी है. इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि कई NRI कोटे व अन्य छात्रों को फेल होने के बावजूद री-वैल्यूवेशन से पास किया गया है, जबकि इसका नियम ही नहीं है. इसके अलावा यह गड़बड़ी भी सामने आई है कि जिस छात्र का नामांकन हुआ, उनके बजाय प्रवेश पत्र में किसी अन्य छात्र का नाम है.
कमेटी का कहना है कि वर्तमान कुलसचिव डॉ. प्रभात बुधौलिया ने दस्तावेज उपलब्ध कराने में असहयोग किया. जस्टिस त्रिवेदी जांच कमेटी ने अपनी सिफारिशें सरकार को दी हैं जिसे हाईकोर्ट में पेश किया गया है. हालांकि इस फर्जीवाड़े को कोर्ट तक ले जाने वाले इस रिपोर्ट खासकर अनुशंसा पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि इसमें कंपनी की संलिप्तता की जांच नहीं की गई. बीजेपी विधायक अजय विश्नोई ने मार्च 2021 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे पत्र में दावा किया था कि मेडिकल यूनिवर्सिटी में कुल स्वीकृत 275 पदों में से महज 75 पद ही भरे गए हैं. इसमें भी अधिकतर आउटसोर्स से भरे हैं. यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद से आज तक रेक्टर का पद नहीं भरा गया है. अलग-अलग संकायों के हेड/विभागाध्यक्ष नहीं बनाए गए हैं. यूनिवर्सिटी का कोर्ट स्थापित नहीं हुआ है. इस कोर्ट में 4 विधायकों का स्थान भी सुरक्षित रहता है. रजिस्ट्रार के पद पर पिछले 7 वर्षों से अनुभवी प्रोफेसर या समकक्ष प्रशासनिक क्षमता वाले व्यक्ति की पदस्थापना नहीं हो पाई.
विधायक विश्नोई ने सीएम को लिखे पत्र में डॉक्टर तृप्ति गुप्ता पर गंभीर आरोप लगाए. मेडिकल यूनिवर्सिटी में गोपनीय विभाग का प्रभार संभाल रही डॉक्टर तृप्ति गुप्ता मूलत: मेडिकल कॉलेज जबलपुर की बायोकेमिस्ट्री विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर हैं. डॉक्टर तृप्ति गुप्ता पूर्व में भी मेडिकल यूनिवर्सिटी का प्रभार संभाल चुकी हैं. उनके खिलाफ कई शिकायतें थीं. उन्होंने नियम विरुद्ध जाकर छात्रों का रि-वैल्यूवेशन कराया था और फेल छात्रों के नंबर बढ़वाकर उन्हें पास कराया था. उन्होने यह भी आरोप लगाया कि आयुष के छात्रों की पिछले 4 साल की मार्कशीट व उनके रिकार्ड यूनिवर्सिटी से गायब है. कोई अधिकारी इसकी जिम्मेदारी लेने काे तैयार नही है. बता दें कि डॉ. तृप्ति गुप्ता और उनके पतिपति डा. अशोक साहू को सरकार ने 4 नंवबर को बर्खास्त कर दिया गया है. हालांकि बर्खास्तगी के पीछे 14 वर्ष पूर्व हुई दोनों की नियुक्ति में गड़बड़ी मुख्य वजह बताई जा रही है.
अप्रैल 2021 में कोरोना संक्रमित होने पर प्रभारी एग्जाम कंट्रोलर डॉ. वृंदा सक्सेना अवकाश पर थीं. तब अन्य अधिकारी को परीक्षा नियंत्रक का प्रभार सौंपा गया, लेकिन अवकाश पर रहते हुए परीक्षा नियंत्रक ने डेंटल और नर्सिंग पाठ्यक्रम की प्रेक्टिकल परीक्षा के अंकों में बदलाव के लिए माइंडलॉजिक्स कंपनी को ई-मेल किया. यही नंबर कंपनी के असिस्टेंट मैनेजर सुधीर शर्मा ने पोर्टल में दर्ज किए. अंकों में परिवर्तन से पूर्व कंपनी ने न तो तत्कालीन प्रभारी परीक्षा नियंत्रक और न ही कुलपति से अनुमोदन प्राप्त किया. इसी शिकायत पर कुलसचिव डॉक्टर जेके गुप्ता की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने जांच की तो निजी कंपनी की परीक्षा परिणाम की प्रक्रिया में कई गड़बड़ी उजागर हुई.
माइंडलॉजिक्स इंफ्रा कंपनी के साथ यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 16 जुलाई, 2018 को अनुबंधन किया था. कंपनी की ऑनलाइन रिजल्ट प्रक्रिया में खामी, गोपनीयता भंग होने और निविदा शर्तों के विरुद्ध कामकाज का प्रकरण सामने आते रहे, पर इन शिकायतों को यूनिवर्सिटी प्रशासन नजरअंदाज करता रहा. छात्रों की उत्तर पुस्तिकाएं फेंके जाने के मामले में जबलपुर के गढ़ा थाने में शिकायत कर फिर इसे वापस ले लिया था. तीन वर्षों में इस ठेका कंपनी ने कितने छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया होगा, इसका खुलासा हाईकोर्ट की मॉनीटरिंग में हो रही जांच से होगा.