उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के कातिलों को मिले फांसी की सजा- डॉ हर्ष प्रभा

उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के कातिलों को मिले फांसी की सजा- डॉ हर्ष प्रभा

उत्तर प्रदेश गाजियाबाद की समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका डॉ हर्ष प्रभा ने उत्तराखंड सरकार और न्यायालय से अंकिता भंडारी के कातिलों को जल्द से जल्द फांसी की सजा देने की मांग की है। अभी तो एक महीना भी नहीं बीता है झारखंड की बेटी अंकिता सिंह को सरफिरे एकतरफा प्यार में पागल हुए शाहरुख ने जिंदा जला कर मार दिया था। अभी तो उस बेटी की चीखें शांत भी नहीं हुई थी कि उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल की बेटी अंकिता भंडारी को नहर में धक्का देकर मार दिया दरिंदों ने। अंकिता भंडारी एक गरीब परिवार की बेटी थी। उसके बाद भी अंकिता भंडारी के माता पिता ने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया। उसने 2020 में 12वीं कक्षा में 88% नंबर लाकर अपने जिले पौड़ी गढ़वाल के साथ-साथ अपने राज्य उत्तराखंड का भी नाम रोशन किया था। लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण अंकिता ने अपने परिवार को संभालने और खुद की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए एक होटल में रिसेप्शन की नौकरी करने शुरू की। लेकिन अंकिता भंडारी को क्या पता था कि होटल का मालिक अंकिता भंडारी को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेलना चाहता था। जिसका अंकिता भंडारी ने विरोध किया और उसने होटल से नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन अंकिता भंडारी को क्या पता था कि यह रात उसके लिए मौत की रात बन जाएगी। इस मासूम सी प्यारी सी बेटी की क्या गलती थी जिसको इतनी बड़ी सजा मिली दरिंदों के हाथों। जिसको जिंदा नहर में फेंक दिया गया और सब तमाशा देखते रहे उसके डूबने का मरने का। अंकिता भंडारी चिल्लाती रही मुझे बचा लो मुझे, बचा लो लेकिन दरिंदों को कोई फर्क नहीं पड़ा। डॉ हर्ष प्रभा का कहना है कि ऐसे कातिलो, दरिंदों, बलात्कारियों को जल्द से जल्द फांसी के तख्ते पर लटकाया जाए ताकि लोगों को न्याय व्यवस्था पर विश्वास बना रहे और ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले कातिल एक नहीं हजार बार सोचे और डरे। तभी देश की बेटियां खुद को सुरक्षित महसूस कर पाएंगी। आज इन कातिलों में डर नाम की चीज नहीं है। कहीं ना कहीं यह हमारी न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाती है। दोनों ही बेटियों के साथ जल्द से जल्द न्याय हो ताकि इन दोनों बेटियों की आत्मा को शांति मिल सके।

समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका डॉ हर्ष प्रभा

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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