स्वामी दयानंद की अगुवाई में एकत्र हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को दिलाई स्वतंत्रता – राजू आर्य

स्वामी दयानंद की अगुवाई में एकत्र हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को दिलाई स्वतंत्रता – राजू आर्य

( स्वतंत्रता संग्राम में प्राणों की आहुति देने वाले सेनानियों को शत शत नमन )

आगरा/एटा- स्वतंत्रता दिवस की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश स्वाधीन भारत की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आगरा के दिल्ली पब्लिक इंटरनेशनल स्कूल में स्वतंत्रता दिवस बड़े ही उत्साह एवं धूमधाम से मनाया गया ! इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पुलिस अधीक्षक यातायात(प्रोटोकॉल) शिवराम यादव व विशिष्ट अतिथि रंजीत कुमार(राजू आर्य) तथा विद्यालय के चेयरमैन वरुण चौधरी एवं अशोक चौबे जी (डी जी सी राजस्व) सम्मिलित हुए। प्रदेश कैबिनेट मंत्री ( कारागार ) धर्मवीर प्रजापति इस मौके पर किसी निजी कारण के चलते सम्मिलित न हो सके।
ध्वजारोहण एवं दीप प्रज्वलन के पश्चात छात्रों ने परेड व कई भव्य कार्यक्रम प्रस्तुत गए। इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को संबोधित करते हुए रंजीत कुमार उर्फ राजू आर्य ने अपने संबोधन में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत से लेकर अंत तक आयी समस्याओं, संघर्ष एवं बलिदान के बारे में विस्तार से बताते हुऐ कहा कि देश को यह आजादी असंख्य लोगों के त्याग और बलिदान के परिणामस्वरूप प्राप्त हुई है। देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतन्त्रता आन्दोलन की दो धाराऐं नरम और गरम प्रवाहित हुईं। दोनों ने ही अपना अपना कार्य किया जिसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश स्वाधीन हुआ था। अतः अमृत महोत्सव के अवसर पर पराधीन भारत में उन सभी देशभक्तों को जिन्होंने देश को आजाद कराने में किसी भी रूप में योगदान किया है, उनको हमारा सादर नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित है। आज इस अवसर पर ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को भी याद करने सहित उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का भी दिन है। देश को आजाद कराने का विचार सन् 1857 के बाद जिस महापुरुष ने दिया था उसका नाम ऋषि दयानन्द सरस्वती था। उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त अज्ञान, अविद्या, अन्धविश्वास, पाखण्ड एवं कुरीतियों को दूर करने सहित सहित शिक्षा के प्रचार एवं समाज सुधार के अनेकानेक कार्य किये। उन्होंने देशवासियों को सत्यधर्म से परिचित कराने व मानव जाति की उन्नति को ध्यान में रखकर सन् 1875 में सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ मनुष्य को सत्य और असत्य दोनों से परिचित कराने के साथ असत्य को छोड़ने और सत्य को ग्रहण करने की प्रेरणा करता है। ऋषि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में कहते हैं कि सत्योपदेश और सत्य के ग्रहण करने तथा असत्य को छोड़ने के विना अन्य कोई भी कार्य मनुष्य जाति की उन्नति का कारण नहीं है।
आज भारत में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। आज ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के आजादी मे योगदान पर किसी नेता द्वारा कोई उल्लेख नहीं किया गया। आर्य समाज के अधिकांश लोगों ने अहिंसात्मक एवं क्रान्तिकारी आन्दोलनों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी , जिस कारण आर्य समाज का स्वतन्त्रता के आन्दोलन में अग्रणी योगदान है। कीर्तिशेष प्रसिद्ध पत्रकार पं. क्षितीज वेदालकार जी ने अपने ‘स्वतन्त्रता संग्राम में आर्यसमाज का योगदान’ शीर्षक लेख में लिखा है ‘स्वतन्त्रता-संघर्ष का यह रूप बनते ही समस्त आर्यसमाज व्यष्टि और समष्टि रूप में स्वतन्त्रताई संघर्ष में कूद पड़ा। इसीलिये कांग्रेस के इतिहास में लेखक पट्टाभि सीतारामैया को यह स्वीकार करना पड़ा कि कांग्रेस के स्वतन्त्रता-संघर्ष में 80 प्रतिशत व्यक्ति आर्यसमाजी थे, या आर्यसमाजी विचारधारा से प्रभावित थे।’ हम ऋषि दयानन्द सहित देश की आजादी में भाग लेने वाले सभी देशभक्तों को श्रद्धांजलि देते हैं। ओ३म् शम्।
इसके साथ ही राजू आर्य ने अपने संबोधन को विराम दिया। इस मौके पर मुख्य एवं विशिष्ट अतिथियों के अतिरिक्त विद्यालय की कॉर्डिनेटर श्रीमति तृप्ति चौहान , प्रधानाध्यापक, अध्यापक एवं अभिभावकों समेत सैकड़ों की संख्या में लोग सम्मिलित हुए।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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