
हिन्दी की दुर्दशा कर रहे हैं हिन्दी के अखबार
हिन्दी पत्रकारिता दिवस हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आया और वैसे ही निकल गया जैसे कि हर वर्ष चुपके से निकल जाता था। पत्रकारों ने गोष्ठियां कीं एक दूसरे को सम्मानित किया और भाषणों में हिन्दी के सबसे पहले समाचार पत्र ‘उदण्त मार्तण्ड’ के इतिहास का बखान किया गया। गिनी चुनी गोष्ठियों में ही इस बात पर विचार किया गया होगा कि हिन्दी भाषा की प्रगति में आज की हिन्दी पत्रकारिता का योगदान है भी या नहीं। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए आज देश में हजारों समाचार पत्र प्रकाशित किये जा रहे हैं उनकी पाठक संख्या सभी भाषाओं के समाचार पत्रों से अधिक होती जा रही है। सिर्फ हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाले मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक और दैनिक अखबार/पत्रिकाओं का इतना ही योगदान है। लेकिन, इन्हीं अखबारों के पत्रकारों और सम्पादकों ने हिन्दी भाषा की दुर्गति भी की है। वे अखबार/पत्रिकाओं को सिर्फ औपचारिकतावश प्रकाशित कर रहे हैं, क्योंकि विज्ञापन के रूप में मिलने वाली सरकारी सहायता नगण्य है। ऐसी स्थिति में इन समाचार पत्रों के स्वामी, सम्पादक और सम्वाददाता प्रकाशन के कार्य को वजन समझकर ढ़ो रहे हैं। हिन्दी भाषा में चन्द्रबिन्दी सहित अर्ध विराम और पूर्ण विराम जैसे अनेकों चिन्ह हैं, जो आज के सम्वाददाताओं और सम्पादकों के द्वारा प्रयोग में नहीं लाये जाते। अधिकांश समाचार पत्रों में शब्दों की शुद्धता पर भी गौर नहीं किया जाता। कर्ता और क्रिया का भी तालमेल ठीक देखने को नहीं मिलता। कहीं कर्ता पुलिंग है तो क्रिया स्त्रीलिंग है और कहीं कर्ता स्त्रीलिंग है तो क्रिया पुलिंग है। अखबारों में बिन्दी के प्रयोग ने तो हिन्दी के स्वरूप को ही बिगाड़ दिया है। संस्कृत में बिन्दी ‘म्’ के लिए प्रयोग की जाती है तो वहीं हिन्दी में बिन्दी का प्रयोग ‘न्’ यानि कि आधे न के स्थान पर किया जाना चाहिए। हिन्दी में जहाँ भी ‘म्’ यानि कि आधे म के लिए बिन्दी का प्रयोग किया जाता है वह हिन्दी व्याकरण के अनुसार उचित नहीं है, लेकिन बड़े-बड़े समाचार पत्र घरानों से निकलने वाले अखबार साधन सम्पन्न होकर भी हिन्दी के विद्वानों को सम्पादक नियुक्त नहीं करते, वहीं सम्वाददाताओं की योग्यता पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सिर्फ ध्यान दिया जाता है तो सिर्फ इतना कि कोई भी खबर छूटनी नहीं चाहिए। सम्वाददाताओं के व्याकरण के ज्ञान के अभाव में समाचार गलत शब्दावली में जैसा प्रेषित कर दिया जाता है, अगले दिन वैसा ही समाचार छपकर जनता में अखबार बंट जाता है। आज से 20 वर्ष पूर्व समाचार पत्रों का कार्य बेहद कठिन था। तब समाचार हाथ से लिखा जाता था और उसे पढ़कर त्रुटिरहित किया जाता था। अब मोबाइल ने बिना टाइप किये ही समाचार भेजने की सुविधा उपलब्ध करा दी है। आजकल के सम्वाददाता मोबाइल पर बोलकर समाचार टाइप करते हैं। जैसा बोलते हैं अथवा मोबाइल की समझ में जैसा आता है, वैसा टाइप कर देता है, लेकिन लापरवाह सम्वाददाता मोबाइल पर बोलकर अपने द्वारा टाइप किये हुए समाचार को पढ़ना नहीं चाहते। अपने लिखे हुए को न पढ़ने की बुरी प्रवृत्ति पत्रकारों के साथ-साथ समाज के अधिकांश व्यक्तियों में बढ़ती जा रही है, यदि भेजने से पहले समाचार को सम्वाददाता पढ़ लें तो शब्दों की त्रुटियां समाचारों के माध्यम से अखबार में छपने से पूर्व ही समाप्त होकर अखबार की छवि में निखार आ सकता है। समाचार पत्रों के सम्पादकों, सम्वाददाताओं को अखबार की अशुद्धियां दूर करने के लिए यह कार्य तो करना ही होगा ताकि समाचार पत्रों की शब्दावली पर जनता का विश्वास बना रहे। तमाम विधाओं के साहित्यकारों द्वारा प्रेषित रचनाओं में भी व्याकरण सम्बधी अशुद्धियां देखने को मिलती हैं। उन अशुद्धियांे को समाचार पत्रों के कार्यालय में बैठे हिन्दी व्याकरण के जानकार सम्पादक दूर कर रचनाओं को प्रकाशन योग्य बनाते हैं लेकिन लिखे हुए को न पढ़ने की आदत के कारण उन साहित्यकारों को यह भी नहीं मालूम होता कि सम्पादक ने उनकी रचना को सही रूप में प्रकाशित करने में कितना योगदान किया है, इसी न पढ़ने की आदत के कारण उन्हें न तो सम्पादक के योगदान का मूल्य मालूम होता है, और न वे साहित्यकार अपनी रचना में स्वयं की त्रुटियों को समझ पाते हैं वे समाचार पत्र में छपी हुई रचना देखकर हजारों लोगों को बड़े गर्व से बताते तो हैं लेकिन दो शब्द धन्यवाद के रूप में कभी समाचार पत्र के सम्पादक को नहीं कहते। एक चर्चा के दौरान एटा के वरिष्ठ साहित्यकार कवि बलराम ‘सरस’ ने राष्ट्रीय कोहिनूर के सम्पादक से कहा था कि ‘आज से कुछ वर्ष पूर्व हम लोग, जब कभी किसी शब्द की शुद्धता पर संशय होता था तो अखबार में लिखे पर ही आंख बंदकर विश्वास कर लेते थे।’ सरकार राष्ट्रभाषा के उत्थान के नाम पर बहुत बड़ी धनराशि यूं ही खर्च कर देती है, जिसका सही उपयोग होता तो, हिन्दी का उत्थान हो चुका होता और हिन्दी पूरे देश की भाषा बन गई होती सरकार को चाहिए कि हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए साधन विहीन लघु समाचार पत्रों को विज्ञापन के रूप में वित्तीय सहायता करे ताकि समाचार पत्रों के प्रकाशक हिन्दी व्याकरण के विद्वानों को समाचार पत्रों में नियुक्त कर उनके वेतन आदि को वहन कर सके और हिन्दी भाषा के उत्थान में सहायक बन सकें।