पत्नी की ट्रांसफर पिटीशन को अनुमति दी जा सकती है यदि सुनवाई में आने के लिए पति का किराया देने का प्रस्ताव वास्तविक न हो : तेलंगाना हाईकोर्ट

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ Legal Update ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

पत्नी की ट्रांसफर पिटीशन को अनुमति दी जा सकती है यदि सुनवाई में आने के लिए पति का किराया देने का प्रस्ताव वास्तविक न हो : तेलंगाना हाईकोर्ट

====+====+====+====+====+====+===

????तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि भले ही पति फैमिली कोर्ट की सुनवाई में आने जाने के किराए का भुगतान करने की पेशकश करता है,लेकिन अगर ऐसा लगता है कि यह प्रस्ताव बिना नेकनीयती/वास्तविकता के दिया गया है तो कोर्ट मामले को पत्नी के आवास के पास स्थित फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दे सकता है।

⬛जस्टिस ए वेंकटेश्वर रेड्डी ने कहा कि हालांकि यह तय सिद्धांत है कि पत्नी की सुविधा की भरपाई पति द्वारा वाहन/परिवहन शुल्क का भुगतान करके की जा सकती है, परंतु प्रत्येक मामला अपने स्वयं के तथ्यों पर निर्भर करता है और विभिन्न फैसलों में तय किए गए सिद्धांत वर्तमान मामले के तथ्यों से अलग हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

????”दो मामलों के बीच एक करीबी समानता होना उपरोक्त निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है, इससे भी अधिक, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पति द्वारा दिए गए प्रस्ताव में कोई नेकनीयती नहीं है और उसका यह भी मामला नहीं है कि उसने या तो अपने नाबालिग बच्चे या अपनी पत्नी को किसी भी समय भरण-पोषण या अन्य खर्चों का भुगतान किया है।”

⏺️ याचिकाकर्ता ने सीपीसी की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर कर मांग की थी कि हैदराबाद स्थित फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित एक याचिका को करीमनगर स्थित फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए और ऐसा कोई अन्य आदेश पारित किया जाए जो यह न्यायालय उचित और सही समझता है।

☸️ याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होने के चलते कुछ समय के लिए सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत किया और उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद, उनके बीच मतभेद पैदा हो गए और उसे कथित तौर पर वैवाहिक घर से बाहर कर दिया गया। तब से वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है।बाद में, प्रतिवादी ने विवाह विच्छेद के लिए हैदराबाद स्थित फैमिली कोर्ट केे समक्ष एक याचिका दायर कर दी।

???? याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके लिए हर बार अपने नाबालिग बच्चे के साथ हैदराबाद स्थित कोर्ट में सुनवाई में भाग होना काफी असुविधाजनक है क्योंकि उसे 200 किमी की यात्रा करनी पड़ती है। इसलिए उसने हैदराबद के सिटी सिविल कोर्ट स्थित फैमिली कोर्ट की फाइल से उक्त याचिका को वापस लेने और उसे करीमनगर में स्थित फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने की प्रार्थना की है।

✳️ प्रतिवादी द्वारा दायर काउंटर में, यह तर्क दिया गया कि करीमनगर और हैदराबाद के बीच की दूरी केवल 145 किमी है और सार्वजनिक परिवहन द्वारा मुश्किल से 2.5 घंटे लगते हैं। प्रतिवादी की ओर से पेश अधिवक्ता दीपक मिश्रा ने कहा कि वह अदालत की सुनवाई में भाग लेने के लिए याचिकाकर्ता को परिवहन शुल्क का भुगतान करने के लिए तैयार है और पत्नी की सुविधा वैवाहिक विवाद के ट्रांसफर का आधार नहीं है।

????दूसरी ओर याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता एस चलपति राव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि इस तरह के वैवाहिक विवादों में, पति की सुविधा पर पत्नी की सुविधा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और पत्नी हैदराबाद स्थित फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका को वापस लेने और करीमनगर (जहां वह रहती है) स्थित कोर्ट में मामले को ट्रांसफर करवाने की मांग करने की हकदार है।

⏹️कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई लाभकारी नौकरी नहीं कर रही है या खुद का और अपने नाबालिग बेटे का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है। यह भी पाया गया कि प्रतिवादी अपनी पत्नी या अपने नाबालिग बच्चे को भरण-पोषण नहीं दे रहा है।

☸️मामले के ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों में, यह पाया गया है कि प्रतिवादी ने अपने बेटे के जन्म के बाद से उसकी देखभाल करने या उसके लिए भरण-पोषण देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसे में उसका यह प्रस्ताव कि,वह हैदराबाद स्थित फैमिली कोर्ट के समक्ष पेश होने के लिए अपनी पत्नी को हर सुनवाई के लिए परिवहन शुल्क का भुगतान करने के लिए तैयार है, वास्तविक और स्वीकार्य नहीं है।

????सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों पर विचार करने के बाद कि पत्नी की सुविधा की भरपाई पति द्वारा वाहन शुल्क का भुगतान करके की जा सकती है, कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक मामला अपने स्वयं के तथ्यों पर निर्भर करता है और उपरोक्त निर्णयों में निर्धारित सिद्धांत वर्तमान मामले के तथ्यों से अलग हैं।

इसलिए,

????यह माना गया कि प्रतिवादी द्वारा भरोसा किए गए निर्णय उसके लिए मददगार नहीं हैं क्योंकि उसके द्वारा दिए गए प्रस्ताव में कोई सच्चाई/नेकनीयती नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए पति-पत्नी की सुविधा के बीच नाबालिग बच्चे के साथ पत्नी की सुविधा प्रबल होगी और इसे पति की सुविधा पर वरीयता देनी होगी।

➡️ इसलिए, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस अनुरोध में औचित्य पाया है कि हैदराबाद स्थित फैमिली कोर्ट के जज की फाइल में लंबित याचिका को वापस लिया जाए और उसे करीमनगर स्थित फैमिली कोर्ट के जज के पास ट्रांसफर कर दिया जाए। परिणामस्वरूप, ट्रांसफर सिविल मिश्रित याचिका को अनुमति दे दी गई और करीमनगर स्थित फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि अनावश्यक तौर पर मामले की सुनवाई टाले बिना मामले के निपटान में तेजी लाए।

❇️ हैदराबाद के सिटी सिविल कोर्ट स्थित फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह एक महीने के भीतर विधिवत तालिका के साथ मामले के पूरे रिकॉर्ड को प्रेषित करे।

केस का शीर्षक-जोन्नागड्डाला स्वाति बनाम एल कार्तिक चक्रवर्ती

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks