
#यूपीएटा,
प्रचार के नामपर पार्टियां पब्लिक मे हिंसक प्रभाव छोड़ रही है यह राजनीति है या स्वार्थनीति–
कहते भी और सौ सत्य भी हैकि बक्त से बड़ा कोई गुरू, और साफ आईना, नहीं इसकी जय और पराजय मे हमारी सुधार शिक्षा और पश्चाताप की अग्नि होती है लेकिन इंसान इनपर कभी न अपना आत्मसात करता है न सबक लेता है आज हम पार्टियों और उनके समर्थकों मे कुछ ऐसा देख और सुन रहे है जो राजनीति की न भाषा मे सामिल है न करेक्टर मे,राजनीति एक पब्लिक और देश की सुरक्षा और उसकी परवरिश अधिकारों का मंच है यह कुर्सी आरामतलबी, और मनमानी,दबंगी,का लायसेंस नही हैकि पाँच साल बाद इसे रिनूवल करालो अगर सत्ता मे आऐ तो इसे सबक सिखाऊंगा उसे—जिसने मेरे साथ ये किया बो किया फिर एसी पार्टियां जनता के लिये क्या करने आ रही है, जब सारी फैरिस्त अपने बदले की लिखकर लाए हो तो इतनी पागल और अनपढ और शक्तिहीन तो अब जनता भी नहीं रह गई कि हर कोई अपनी मनमानी करता रहेगा और जनता सब झेलती रहेगी कुर्सी के कितने अधिकार है,यह तो हर सत्ताभोगियो को याद रखना होगा यहतो पार्टियों को सोचना हैकि वह भविष्य मे कैसा समाज तैयार करेगी,
आजकल हिंसक होती पार्टियां रूलों को ताक मे रखकर जनता मे भय ब्याप्त कर रही है,यह भूलकर कि यह कुर्सी भी शनी की तरह कर्मफल दायक का काम करती है,इस लिये प्रचार इस तरह का करो कि वोट आप को सुने और आपके पक्ष मे जाए पब्लिक मे हिंसा फैलाने का नहीं, जब कानून और आयोग भी भविष्य की कुर्सी की गोदमे बैठ जाएंगे तो पब्लिक का खून भी पानी नहीं हो जाएगा शक्ति और स्वाभिमान मर नहीं जाएंगे जैसा सत्ताएं भोग कराएंगी बैसा भोगेगी भी क्यों कि पब्लिक की ताकत से खेलने बाले कभी जीत का चेहरा नहीं बन सकते है, पब्लिक की ताकत सौ सुनार एक लुहार की ताकत मे सुमार है,इससे खेलने और हिंसा फैलाने बाले राजनीति करनी है या बदले लेने है,सत्ता किसी की भी क्यों ना हो जैसा समाज आप बनाएगे आपको बैसा ही फल मिलेगा जीत और हार आपके कर्म पर निर्भर करती है कुर्सी किसी की पेत्रिक प्रोपर्टी नही है जिसे आप हमेशा अपनी मुट्ठी मे दबाए रखेगे यह पब्लिक और देश की विरासत है इसे निष्पक्ष संभालना होता है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।