
नेताओं की भाषणबाजी तक सीमित रहा अलीगढ़ का रिंग रोड – रिपोर्ट शुभम शर्मा
अलीगढ़ – दावों की गाड़ी तो खूब दौड़ाई गई, मगर इन पांच सालों में इस गाड़ी संग रिंग रोड नहीं दौड़ सका। वर्षों से यह फाइलों की कैद में है। आश्चर्य की बात यह है कि दो विधानसभा क्षेत्रों से होकर निकलने वाले रिंग रोड के लिए मजबूती से पैरवी तक नहीं की गई। इसका निर्माण न होने से आधा शहर प्रभावित हो रहा है। लोगों को जाम से जूझना पड़ता है। बरेली, मुरादाबाद समेत आधा दर्जन से अधिक शहरों से आने वाले लोगों को शहर के भीषण जाम में फंसना पड़ता है। शहर के विकास में सेतु बनने वाले इस रिंग रोड का यदि निर्माण हो जाता तो अलीगढ़ की तस्वीर कुछ और ही होती। तालानगरी चमक उठता और ग्रामीण क्षेत्र भी विकास की फलक पर होता। तमाम लोगों के रोजगार के साधन भी मुहैया होते। शहर के विस्तार के साथ ही रिंग रोड की जरूरत महसूस की जाने लगी थी। वर्ष 1981 में अलीगढ़ विकास प्राधिकरण की ओर से पहली बार महायोजना लागू हुई थी। करीब 40 वर्ष का समय बीत गया, मगर रिंग रोड का निर्माण नहीं हो सका। पहले रिंग रोड की इतनी आवश्यकता महसूस नहीं हो रही थी, मगर पिछले 10 वर्षों से इसकी मांग तेजी से उठने लगी। रिंग रोड का आधा हिस्सा बनने के बाद से दूसरे हिस्से की मांग तेज हो गई। गभाना विधानसभा क्षेत्र के भांकरी, हरदुआगंज होते हुए यह छर्रा विधानसभा क्षेत्र के पनेठी में जाकर मिलेगा। करीब 34 किमी दूरी है। जिससे बाहर होते हुए आधा शहर पार कर सकते थे। यह जीटी रोड (गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे) होकर पनेठी में इसी में आकर मिल जाता। महायोजना 2031 में भी रिंग रोड का प्रस्ताव शामिल है। इसलिए एडीए ने प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा था। मगर, इस प्रस्ताव पर गौर नहीं किया गया। 2014 में गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे का निर्माण हो गया। खेरेश्वरधाम से लेकर पनेठी तक यह हाईवे शहर के बाहरी हिस्से से होकर निकलता है। इसके बाद से दूसरे हिस्से के लिए भी प्रस्ताव बनाकर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने केंद्रीय परिवहन मंत्रालय को भिजवाया। मगर, इस प्रस्ताव पर भी मोहर नहीं लग सकी। करीब आठ साल से भांकरी की ओर से निकलने वाले रिंग रोड की मांग काफी तेजी से हो रही है। 2019 में कमिश्नर अजयदीप सिंह ने भी कहा था कि शहर के दूसरे हिस्से से रिंग रोड का निर्माण कराया जाए, एडीए से फिर प्रस्ताव भेजा गया था, मगर इसपर भी गंभीरता नहीं दिखाई गई।