अब ठाकुर और ओबीसी नेता की जंग का मैदान बना उत्तर प्रदेश चुनाव ??

बर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव समापन के साथ ही बीजेपी के अंदर खाने लात-घुसे होना शुरू हो चुके थे कि आखिर किसे उत्तर प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बनाया जायें। बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं नें केशव प्रसाद मौर्य को मोहरा बनाया तो वही मनोज सिन्हा भी बाबा विश्व नाथ के पग धो आये थे! लेकिन गोरखपुर के अड़ियल बाबा नें बीच में घुस पर पैर जमा दिया था,परन्तु यहाँ तक तो पूरे प्रदेश की जनता नें बाबा योगी को स्वीकार कर भी लिया था। लेकिन बाबा भूल गए थे कि मुख्यमंत्री पद एक लोकतंत्र का बड़ा स्तम्भ हैँ जिस के पायदान पाँच बर्ष बाद जनता से बदलवाने होते है लेकिन बाबा ठहरे बाबा जी वो ना माने थे अपने गुरु अवैधनाथ जी की भी… सो उन्होंने अपनी हिंदुत्व (मऊ दंगे )वाली दुश्मनी को भी नहीं भूले थे और लग गए दहाई-सेकड़ा करने… इसी बीच शासन के कुछ अफसर भी साथ हो लिए कि इसी रास्ते हम भी गंगा नहा ले और बुलडोजर लेकर चल दिए ईंटो की गिनती करने के लिए… लेकिन देखिए उत्तर प्रदेश की जनता नें इसे भी स्वीकार कर लिया कि जो क़ानून की नजर में गलत होगा उसे दंड मिलेगा ही… मिल रहा है ईमारते धराशाई हो रही है….!!!किन्तु इसी बीच बाबा एक समरसता भूल गए कि उत्तर प्रदेश की राजनीति का धुरी वोट ओबीसी फ्रंट है… जिसे चाहे सत्ता पर काबिज कराये और जिससे चाहे सत्ता की चाभी छीन ले।अब बाबा योगी जी सोच में है कि यें क्या गलती हो गई है ना ही मठ जा सकते है और ना ही ओबीसी वोट खुद के पास बैठने दें रहा है। पूरी बीजेपी खेमा इस भयानक स्थिति से निकलने के लिए बचें हुए ओबीसी नेताओं को माँ की तरह दूध पिला रही है।
मान कर चलिए कि सपा के अखिलेश यादव की सरकार बन भी गई तब भी बीजेपी से भागे नेता क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री बन पाएंगे शायद नहीं!!… या जो सपा के साथ आज गठबंधन होकर लड़ रहें है वो जीतने के बाद सपा के साथ रुकेंगे!क्या कल बीजेपी को समर्थन नहीं देंगे।इससे परे एक सत्य है जिसे राजनीति में कभी झूठलाया नहीं गया है कि बड़ा लालच जहाँ मिला वही राजनैतिक आदमी की ओकात गिर जाती है ऐसा महाराष्ट्र सरकार में हो चूका हैँ।
इस समय सपा ओबीसी वोट के नेताओं को अपने साथ खड़ा कर रही है। उत्साह भी देखने को मिल रहा है लेकिन क्या व्यक्ति होने से वोट साथ आता हैँ। सपा का मूल वोट यादव/ मुस्लिम हैँ जिसके साथ अब कुछ अंश तक मौर्य, जाट, राजभर जुड़ रहा है लेकिन धरातल पर कितना सार्थक सिद्ध होगा नहीं पता…?
बहुत हद तक योगी आदित्यनाथ की गलतिया रही है।
जिस ओबीसी के लिए बीजेपी नें अपने सबसे बड़े नेता जो कि डेढ़ दशक से नाराज थे।दिवंगत बाबू जी कल्याण सिंह को मना कर अमित शाह नें बीजेपी के मंच के लिए राजी किया था।उसी ओबीसी के नेताओं को हासिये पर रखने का काम भी योगी आदित्यनाथ नें किया था।अपनी जिद और अड़ियल रवैयें से भी विधायक नाराज रहें हैं। इससे भी महत्वपूर्ण व्यवस्था यह रही कि वर्तमान सत्ता रहते भी विधायको की प्रशासन स्तर पर एक नहीं सुनी गई। एक बर्ष पूर्व ही एक विधायक नें अपने कपडे उतार कर जिलाधिकारी का विरोध किया था। ऐसे ही एक मामले में विधायक को अलीगढ थाने में थप्पड़ व कपडे फाड़ने का मामला भी प्रकाश में आया था,लेकिन मसले और भी रहें है।जिन्हे समय-समय पर स्थानीय मिडिया के द्वारा या फिर सोशल मिडिया के माध्यम से दिखाया जाता रहा है।आरोप तो यह भी लगते रहें है कि योगी आदित्यनाथ अपने समाज के नेताओं के आलावा किसी अन्य समाज के नेताओं से मिलना भी ऊंच-नीच समझते थे! अब कितना सच और कितना झूठ हैँ यह तो चुनाव का दौर ही बताएगा।
बीजेपी विधायक सपा सरकार जैसी हनक चाहते थे
इस समय के फरार विधायको का कहना था कि सत्ता में रहकर भी अगर हम अपने चहेतो को नौकरी और ठेकेदार नहीं बना पा रहें हैं तो ऐसी सरकार से हम बिना सरकार के सही थे।इस समय के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य नें बसपा शासन काल में सीधे अपने रसूख से करीव 1000/ नौकरिया विभिन्न विभागों में गलत तरीके से लगाई थीं। जिसके प्रमाण आज भी सचिवालय में जिन्दा गवाही देते है।स्वामी प्रसाद मौर्य नें 2017 से ही बीजेपी में दवाब बनाना शुरू कर दिया था कि श्रम विभाग में हजारों की संख्या में खाली रिक्तिया हैँ जिन्हे भरने की अनुमति स्वामी को दी जाये। लेकिन बीजेपी की पेनी नजर नें स्वामी के इरादे जानकर साफ शब्दों में मना कर दिया गया था।बस उसी दिन से योगी आदित्यनाथ और स्वामी प्रसाद मौर्य में बागबत ठन गई थीं। अब समझ लीजिए कि सीधी भर्तियों के खेल ना हो पाने की वजह से बगावती बीजेपी विधायको में भगदड़ मच गई हैँ. जबकि बाबा का कहना है कि साफ परीक्षा होंगी जो पास होगा वो नौकरी पायेगा… और इसीलिए कई बार माफियाओ नें ऊपर सेटिंग करनी चाही लेकिन नहीं बनी तो पेपर ही आउट करा कर पलिता कर दिया… खेर ओबीसी और ठाकुर के खेल में कही गब्बर मारा गया तो फिर क्या होगा.. क्यूंकि शोले फ़िल्म में गब्बर को धोखा था कि ठाकुर तो बिना हाथ का हैँ यें क्या कर सकता है परन्तु सभी को पता है कि जय और वीरू अभी रामगढ़ (अयोध्या)आये नहीं हैँ अभी शहर में ही हैं…सलीम खान कि असली फ़िल्म उत्तर प्रदेश की थिएटर तो नहीं हैँ..।
आइये देखते है इस फ़िल्म के एक-एक किरदार को….
जल्द लायेगे एक-एक विधानसभा का हार जीत का फंडा. प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी और कौन होगा इस खेल का असली बाजीराव….