
राजनीति हाशिल करने का यह तरीका बिल्कुल गलत है,देश और पब्लिक को परेसान और तिरंगे का अपमान किसान के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने जैसी —
एटा-मै न सरकार की पक्षधर हूँ, न टिकेत की विरोधी, पर सत्य तो यह है,कि टिकेत के साथ किसान कम राजनीतिग्य ज्यादा है,उनकी कार्य प्रणाली मे किसान के कंधों पर बंदूक जरूर चल रही है,याद हो शुरुआत मे टिकेत के भाषण मे था भी सरकार ने अगर तीनो कानून वापस नहीं लिये तो धरना चाहे 22तक क्यों ना चलाना पड़े आज यह वही हकीकत सामने आ रही है,क्या किसान देश और तिरंगे का अपमान कर सकता इस धरने मे बहुत कुछ हुआ जो एक किसान के लिये असोभनीय है,धरना एक तरफ चल रहा है और किसान सरकार की योजनाओं का भरपूर फायदा ले रहा है,फिर चाहे सालमे छ,हजार की किस्मों द्वारा हो या फ्री राशन या उज्वला गैस कनेक्शन आवास सुविधा हो, टिकेत जी दो नावों मे पैर ठीक नहीं होते है,बैठो धरने पर हमे कोई समस्या नहीं है आपसे लेकिन देश और पब्लिक को बक्से रहो भारत बंद मे पब्लिक को कितनी परेसानियों का सामना करना पड़ता है इसका ख्याल रखते हुये कोई कदम उठाने चाहिये। सीधे सरकारों के बंगलो मे बैठो जाकर हमे कोई आपत्ति नही है राजनीति की भाषा ये नहीं जो आप अपना रहे है आमने सामने अपने बजूद पर कुर्सी हाशिल करो पब्लिक को परेसान और किसान के कंधों पर बंदूक रखकर नहीं।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।