फिर चाहे राजनीति का चीरहरण ही क्यों ना हो देख सहकर कराहकर रह जाते है—-


कुछ भी सह सकते है,वतन के तिरंगे का अपमान नहीं आजकल बहुत कुछ हो रहा है फिर चाहे राजनीति का चीरहरण ही क्यों ना हो देख सहकर कराहकर रह जाते है—-
तब उनके लिये कहना जरूरी है जोअपने स्वार्थ के लिये धरती और तिरंगे की ढाल बनाना चाहते है,इसे जागरूक पब्लिक कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती है,अगर कहा जाए कि अबतो इंसान की कार्यप्रणाली से चाहे राजनीति हो या समाज की बदलती सोच राजनीति और मानवता दोनों ही सर्माने लगी है,तब कहना पड़ रहा हैकि,जितना गिरना था स्वार्थ मे गिर चुके और गिरना हो गिरो पर तिरंगे की खेंचातानी से दूर रहना क्यों कि सभी पब्लिक न बिकाऊ हो सकती है न अंधी बहरी और स्वार्थी जिसने देश की कीमत और संघर्ष वलिदान को समझा है वह किसी भी कीमत पर तिरंगे का अपमान नहीं सह सकता है, फिर चाहे वह अपोजिट हो टिकेट हो धरती के लाडले तिरंगे का सहारा लेकर अपने स्वार्थ के हाथों से इसे ना छुएं यह समझते हुए कि पढी लिखी और जागरूक पब्लिक से बड़ी ताकत न किसी कुर्सी की है न किसी स्वार्थ और यूनियन की तब इसे मजबूर ना किया जाए देश और तिरंगे की खींचातानी जैसे अपमान कृत्य को करके, तिरंगा देश के कर्मठ लाडलों के संघर्ष और लहू की वह निशानी है जिसे भूला नहीं जा सकता है देश की शानपर लहराता एक ही तिरंगा है इससे छेड़छाड़ किसी भी कीमत पर नहीं सही जा सकती है,और मौजूद सत्ताऔ को भी समझना होगा कि तिरंगे और देश के वीरों के त्याग की सुरक्षा करना पहली प्राथमिकता मे होना चाहिये पूर्व मे जो हुआ वह भूलने लायक नहीं है इसबार फिरसे तैयारी हो रही है।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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