
क्रांतिकारियों के भय से भाग गए थे अंग्रेज
एटा। 1857 की क्रांति की गूंज उठी तो एटा में जबरदस्त विद्रोह हुआ। यहां के क्रांतिकारियों ने सरकारी दफ्तरों में जमकर उत्पात मचाया। काफी दमन करने के बावजूद इस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका। बाद में क्रांतिकारियों के भय से यहां तैनात अंग्रेजी हुकूमत के दो अधिकारियों को जान बचाने के लिए भागना पड़ा था। एन हिस्ट्री ऑफ द सिपॉय वार इन इंडिया पुस्तक का हवाला देते हुए साहित्यकार डॉ. प्रेमीराम मिश्रा यह वाक्या बताते हैं।
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि इतिहासकार जॉन विलियम काये की इस पुस्तक में एटा की घटना को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। उस समय के गजट में भी इसे उल्लेखित किया गया था। वह कहते हैं कि 1857 की क्रांति में एटा के क्रांतिकारियों ने काफी उत्साह दिखाते हुए अंग्रेजी हुकूमत से मोर्चा लिया था। क्रांतिकारी सदासुख राय सक्सेना, विशंभर कोठेवार, सदाशिव महेरे, रामनाथ तिवारी, द्वारिका प्रसाद, चेतराम जाटव, बब्लू मेहतर आदि तमाम लोगों ने योजनावद्ध तरीके से सरकारी दफ्तरों पर हमले किए। महत्वपूर्ण अभिलेख क्षतिग्रस्त कर दिए और खजाने लूट लिए। आगजनी की गई। इसमें कई सिपाही और कर्मचारी भी हताहत हुए।
इससे कुपित होकर अफसरों ने हिंसक और दमनात्मक नीति अपनाते हुए क्रांतिकारियों के साथ काफी ज्यादती कीं। इसके बावजूद क्रांतिकारियों के हौसले नहीं डिगे। उस समय यहां तैनात सिविल अधिकारी मिस्टर फिलिप्स और मिस्टर हॉल्प्स इस विद्रोह को लेकर भयभीत हो गए। उन्हें अपनी जान का भय सताने लगा। सुरक्षा के लिए वह एटा छोड़कर बदायूं भाग गए। डॉ. मिश्रा बताते हैं कि कई क्रांतिकारी शहीद हो गए और कई को पकड़ा गया, जिन्हें बाद में फांसी दे दी गई।