
ब्राह्मण श्रीमंत बाजीराव बल्लाळ भट्ट जी की जन्मजयंती पर कृतज्ञ भारतभूमि का सादर नमन
ब्राह्मण शिरोमणि भारत द्वारा प्रस्तुत. …
आज का दिवस भारतभूमि के इतिहास में अमिट स्वर्णाक्षरों से अंकित है। यह वही पुण्यतिथि है जब इस धरती पर एक ऐसे वीर, अद्वितीय रणधुरंधर और अजेय सेनापति का अवतरण हुआ, जिसने न केवल मुगलिया सल्तनत की जड़ें हिला दीं, बल्कि समस्त हिंदू समाज को यह सिखाया कि जब तक हृदय में धर्म का दीप प्रज्वलित है, तब तक किसी भी आक्रान्ता का शासन स्थायी नहीं हो सकता।
वह महापुरुष और कोई नहीं, श्रीमंत बाजीराव बल्लाळ भट्ट जी थे।
▪️मुगलिया साम्राज्य का आतंक और बाजीराव का उदय👉
जिस औरंगज़ेब के शासनकाल में 1707 तक भारतभूमि का लगभग अस्सी प्रतिशत भूभाग उसकी तलवार और ज़ुल्मों से कराह रहा था; जहाँ उत्तर में अटक से लेकर कटक तक, और कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक, मुग़लिया सल्तनत का हरित परचम लहराता था—
वहीं उस घोर दमन और पराधीनता के काल में बाजीराव जी ने अपने पराक्रम से हिंदू समाज को आत्मविश्वास प्रदान किया।
उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि अब भारतभूमि पर केवल धर्म का ध्वज फहरेगा, न कि अत्याचारियों का झंडा।
▪️बीस वर्षों का सतत युद्ध और हिंदू आत्मगौरव की स्थापना👉
लगातार बीस वर्षों तक उन्होंने अपनी प्रचण्ड रणकुशलता, तीव्र घुड़सवार सेना और अपराजेय रणनीति के बल पर मुगलिया शक्ति को परास्त किया।
एक ओर मुग़ल सल्तनत की अपार सेनाएँ थीं, तो दूसरी ओर हिंदू समाज के सीमित साधन; किंतु जब सेनापति के रूप में बाजीराव थे, तब विजय निश्चित थी।
उन्होंने औरंगज़ेब की औलादों और उसके बाद की मुगलिया सत्ता को चरण-दर-चरण झुका कर रख दिया।
महाराष्ट्र से लेकर मालवा, बुंदेलखंड, दिल्ली के दरवाज़ों और दक्खिन के प्रांतों तक—
हर ओर बाजीराव के पराक्रम की गाथाएँ गूँज उठीं।
▪️धर्मरक्षा और भगवा ध्वज का विस्तार👉
बाजीराव जी का लक्ष्य केवल भूमि-विजय नहीं था।
उनका ध्येय था –
👉 हिंदू समाज के स्वाभिमान की रक्षा,
👉 संतों-महात्माओं की वाणी का संरक्षण,
👉 और भारतभूमि पर भगवा ध्वज का विस्तार।
यही कारण है कि उनके पश्चात उनके पुत्रों और वंशजों ने उनके पथ का अनुसरण कर भारतीय भूखंड को भगवामय कर दिया।
जहाँ पहले हरे परचम की छाया थी, वहीं अब भगवा ध्वज लहराने लगा।
▪️कृतज्ञ राष्ट्र की श्रद्धांजलि👉
आज, उनकी जन्मजयंती पर सम्पूर्ण हिंदू समाज गर्व और कृतज्ञता से नत है।
हम यह स्मरण करते हैं कि यदि श्रीमंत बाजीराव न होते तो हिंदू समाज का आत्मविश्वास ढह सकता था।
परंतु उनके अदम्य साहस ने यह सिद्ध कर दिया कि—
“धर्म के लिए लड़ा गया युद्ध कभी व्यर्थ नहीं जाता, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वतंत्रता और आत्मगौरव का दीप बनकर जलता रहता है।”
🚩 जय श्रीमंत बाजीराव!
इस पुण्य अवसर पर हमारा प्रणाम केवल नमन मात्र नहीं है,
यह संकल्प भी है कि जिस प्रकार श्रीमंत बाजीराव ने हिंदुत्व और धर्म के लिए स्वयं को अर्पित किया, उसी प्रकार हम भी धर्मरक्षा के पथ पर सदैव अग्रसर रहें।