उत्तर प्रदेश में पत्रकारों का ऐतिहासिक संघर्ष लाया रंग: राज्य सरकार ने मानी सभी मांगें, पेंशन योजना 1 जनवरी 2026 से लागू होगी

नई दिल्ली/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पत्रकारों और मीडिया संगठनों का वर्षों लंबा संघर्ष आखिरकार रंग लाया है! राजधानी लखनऊ आज पत्रकार एकता और संघर्ष की एक मिसाल बन गई, जहाँ भारतीय मीडिया फाउंडेशन (बीएमएफ) और अन्य पत्रकार संगठनों की लगातार कोशिशों ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। 25 जून को राजधानी लखनऊ में आयोजित विशाल पत्रकार धरना-प्रदर्शन से ठीक पहले, पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने सरकार के साथ जबरदस्त वार्ता कर वो ऐतिहासिक सहमति हासिल की, जिसका इंतज़ार सालों से था।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने बताया कि सरकार ने पत्रकारों को 8 बड़े तोहफे देने का ऐलान किया है, जो पत्रकार समुदाय के लिए एक बड़ी राहत और सम्मान की बात है। बीएमएफ ने सरकार के इस कदम का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए संगठन की ओर से ढेर सारी बधाइयाँ दी हैं।
पत्रकारों को मिले ये 8 बड़े तोहफे
पेंशन योजना का शुभारंभ: 1 जनवरी 2026 से पत्रकार पेंशन योजना लागू होगी। इसके तहत, ज़िला और राज्य मुख्यालय के करीब 148 पत्रकारों की सूची तैयार की गई है, जिन्हें इस योजना का लाभ मिलेगा।
PGI में इलाज के लिए फंड: संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (PGI) में पत्रकारों के इलाज के लिए 24 लाख रुपये जारी किए गए हैं, साथ ही 2 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि भी स्वीकृत की गई है।
स्वास्थ्य खर्चों की स्वीकृति में संशोधन: स्वास्थ्य खर्चों की स्वीकृति के लिए शासनादेश में संशोधन किया जाएगा। अब मान्यता प्राप्त पत्रकार कार्ड पर भी इलाज की सुविधा मिल सकेगी, जिससे प्रक्रिया और सुगम होगी।
पत्रकार आवास योजना को मंज़ूरी: “पत्रकार पुरम” की तर्ज़ पर एक नई आवास योजना लाने पर सहमति बनी है, जिससे पत्रकारों के लिए आवास की समस्या का समाधान हो सकेगा।
PGI में नोडल अधिकारी की नियुक्ति: PGI में पत्रकारों के लिए एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, जो उनके स्वास्थ्य उपचार संबंधी समस्याओं का त्वरित समाधान सुनिश्चित करेगा।
आयुष्मान कार्ड की दिक्कतें दूर: आयुष्मान कार्ड से उपचार में आ रही दिक्कतों को सुलझा लिया गया है। उच्च अधिकारियों ने मौके पर ही इन समस्याओं का निराकरण किया, जिससे पत्रकारों को बिना परेशानी के उपचार मिल सकेगा।
आकस्मिक मृत्यु पर परिवार को सहायता: पत्रकारों की आकस्मिक मृत्यु पर उनके परिवार को सहायता राशि प्रदान करने के लिए एक नया शासनादेश आएगा। इस प्रस्ताव की स्वीकृति प्रक्रिया में है।
ज़िला समन्वय समिति का गठन: हर ज़िले में एक ज़िला समन्वय समिति बनेगी, जिसमें ज़िलाधिकारी (DM), पुलिस अधीक्षक (SP) और पत्रकारों के बीच नियमित मासिक बैठकें आयोजित की जाएंगी। यह कदम स्थानीय स्तर पर पत्रकारों की समस्याओं के त्वरित समाधान में सहायक होगा।
सफलता की राह: वार्ता और एकजुटता
लखनऊ में पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने सबसे पहले प्रदेश सरकार के वित्त मंत्री, मा. सुरेश खन्ना से मुलाकात की और अपनी मांगों को दस्तावेज़ के रूप में सौंपा। मंत्री जी ने इन मांगों को तुरंत गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए और अगले ही दिन सूचना निदेशक से बातचीत तय की।
25 जून को लोकभवन में सूचना निदेशक के साथ हुई लगभग 1 घंटे 15 मिनट की गहन बैठक में पत्रकारों की सभी प्रमुख समस्याओं को एक-एक कर सामने रखा गया और वन-टू-वन समाधान निकाला गया।
प्रदेश भर से आए सैकड़ों पत्रकारों की एकजुटता ने यह दिखा दिया कि जब आवाज़ उठती है, तो सत्ता को झुकना ही पड़ता है। आंदोलन को नेतृत्व देने वाले पत्रकारों ने सभी साथियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि — “हमने मांग रखी, सरकार ने मानी — अब निगरानी हमारी ज़िम्मेदारी है कि वादे ज़मीन पर उतरें।”
पत्रकार समुदाय ने इसे केवल आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई की शुरुआत बताया है। यह सिर्फ एक दिन का आंदोलन नहीं, बल्कि पत्रकारों के सम्मान, सुरक्षा और भविष्य की लड़ाई की जीत है। पेंशन, इलाज, आवास और न्याय — इन सभी मुद्दों पर जो ऐतिहासिक सहमति बनी है, वह आने वाले समय में पत्रकारिता को एक नई स्थिरता और गरिमा प्रदान करेगी।

एके बिंदुसार ने सभी पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे एकजुट होकर आगे भी अपने और प्रमुख मांगों को रखने के लिए अपनी आवाज़ को बुलंद करते रहें।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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