बस में वेबस्

आगरा,बाह के लिए अब यूँ तो आगरा से बस के अलावा रेल गाड़ी भी जाती है। मगर बस पता नहीं क्यों पर बस बनती जा रही है। बस में बैठते ही पता नहीं क्यों अंदर का सेवा भावी आदमी पन पने लगता है।
इन दिनों यका यक बस से आना जाना हो रहा है। बस राजकीय मगर अनूबन्धित। जिस पर ताम् झाम सरकारी मगर आगे पीछे केसाथ सारथी बनी डग्गे मार दोड़तीं बसें। जिनके लिए संसाधन जोड़ती ये अनूबन्धित निगम की बसे और उनके ऊपर धरे पिशाची चालक और परिचालक।
अपन जैसे ही बस में बैठे वैसे ही गेट के पास बाली खाली पड़ी सीट में समा पाता कि एक कर कस स्वर के ‘साथ चेतवानी सुनाई दी। यहाँ नहीं कहीं और जगह देख।
अधिकारी भी रास्ते में मिले उस परि चालक की तर्ज पर धमकाते नजर आए । न बस में और नहीं मुबाइल जांच दल के पास ही परिवाद पुस्स्तिका थी। थी तो बस राजशाही परम्परा।
अभी मंजिल मिलती कि तभी एक अशहाय महिला बस वेबस् हो बस में चढ़ी मगर परि चालक ने एक रुपया कम होने की भावना को अपराध बोध कर”पाती कि उसे धक्का दे नीचे उतार दिया।
और भी बहुत कुछ घटा अनूबन्धित बस में ….
सम्याभाव बस अकरमण्य शंकर देव तिवारी लगातार यात्रा पर है देखता हुआ निगम का नुकशान।
परिचलक् सीट
साफ है होनी चाहिए पर समुची दो लोग जिस पर बैठे वो कैसे। मगर दूरी के अनुसार जिस बस का फेर ही एक सो चालीस पचास किमी के संचालन के लिए परीचलन के लिए उचित नहीं।

डग्गा मार

आगे पीछे के बीच में फंसी निगम की बस अशहाय ही दिखती है। मगर जब अनूबन्धित बस के मालिक की बसे इस निगम की बस के बल ही सचालन डंके की चोट पर ही कहा जायेगा।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks