जिनके घर खुद शीशे के हों, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फैंकने चाहिए। यह पुरानी कहावत भी, ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के हिसाब से बाकी तमाम चीजों की तरह, उन पर लागू नहीं होती है। वर्ना क्या यह संभव था कि प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली मेें अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत, केजरीवाल के अपने लिए कथित रूप से शीश महल बनाने पर हमले से करते? बेशक, नरेंद्र मोदी को बखूबी इसका पता है कि हमारे जैसे समाज में, जहां जनता का प्रचंड बहुमत न्यूनतम जीवन सुविधाओं से वंचित जीवन जीने पर मजबूर है, सत्ता में बैठे किसी भी शख्स की लोक छवि इसकी धारणा बनाकर आसानी से बिगाड़ी जा सकती है कि वह अपने ऊपर, अंधाधुंध सार्वजनिक धन उड़ा रहा है। इसे देखते हुए अगर प्रधानमंत्री मोदी, जो हरेक चुनाव को युद्घ की तरह लड़ने में और युद्घ में सब कुछ जायज मानने में विश्वास करते हैं, दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के सर्वोच्च नेता, अरविंद केजरीवाल की छवि इसी पहलू से बिगाड़ने के लिए, उनके अपने लिए शीश महल बनवाने के मिथक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे थे, तो इसमें हैरानी की बात नहीं है।
वास्तव में केजरीवाल के खिलाफ इस हथियार की मारकता, सामान्य से कुछ ज्यादा ही होगी, कम नहीं। इसकी सीधी सी वजह यह है कि केजरीवाल जिस तरह की भ्रष्टाचार विरोधी जन-भावना की लहर उठाकर और उस पर सवार होकर राजनीति में आए थे, उसे देखते हुए उनकी कथित रूप से झक् सफेद कमीज पर, किसी भी दाग का सामान्य से ज्यादा चमकना स्वाभाविक है। इस सिलसिले में यह याद दिलाना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि भ्रष्टाचार विरोधी तथा ईमानदारी के धर्मयोद्घा की अपनी भूमिका के दौर के बाद, अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत में भी केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने, जन-भावनाओं को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए, निजी ईमानदारी की बहुत बढ़ी-चढ़ी अपेक्षाएं जगाने वाले वादे किए थे। यहां तक कि उसने सरकार में रहते हुए, सरकारी बंगला, गाड़ी आदि की सुविधाएं नहीं लेने तक के वादे किए थे, जिनसे जाहिर है कि बाद में सत्ता में आने के बाद उसे पीछे हटना पड़ा है। अरविंद केजरीवाल का कथित शीश महल, सबसे बढ़कर अतिरिक्त ईमानदारी की उक्त मुद्राओं से, इस तरह पीछे हटे जाने का ही प्रतीक है।
इसमें शक नहीं कि केजरीवाल का कथित शीश महल, अतिरिक्त ईमानदारी की मुद्राओं से पीछे खिसकने के क्रम में, लोकलाज की अनेक मर्यादाओं को उल्टी दिशा में तोड़े जाने का भी उदाहरण है। पर्दों से लेकर तरणताल तथा छत से लटकते झूमरों तक पर दसियों लाख रुपए खर्च किए जाने के जैसे विवरण सामने आए हैं और सामान्य रूप से लोगों से छुपे रहने के बावजूद, दिल्ली सरकार और लेफ्टीनेंट गवर्नर तथा उसकी आका केंद्र सरकार की खींच-तान के बीच से, संदर्भ से कटकर चौंकाने वाली जानकारियों के रूप में सामने आते रहे हैं, उनकी ओर से आसानी से कोई स्वतंत्र प्रेक्षक भी आंखें नहीं मूंद सकता है। मुख्यमंत्री आवास के रिनोवेशन पर पचास करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च का जो आंकड़ा अब तक सामने आया है, चौंकाता जरूर है।
इसके बावजूद, इस तथ्य की ओर से आंखें मूंदने के लिए भी प्रधानमंत्री की तरह घोर पक्षपाती होना जरूरी है कि यह सब, मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के, सरकारी संसाधनों से ही नहीं, सरकारी एजेंसियों के जरिए भी, रिनोवेशन या पुनर्नवीकरण का मामला है। इस तरह के मामले में कुछ भी ज्यादा छुपा नहीं रह सकता है और इसलिए सार्वजनिक जांच-परख से परे नहीं बना रह सकता है। फिर जो भी, जैसा भी शीश महल बना था, मुख्यमंत्री पद पर रहने तक ही केजरीवाल के लिए था और उसके बाद अगले मुख्यमंत्री के लिए हो जाने वाला था, जैसा कि आगे चलकर मुख्यमंत्री पद से केजरीवाल के इस्तीफा देने और आतिशी सिंह के मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद हुआ भी।
कथित शीश महल के दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास की संस्थागत व्यवस्था होने की इस सच्चाई की याद दिलाना इसलिए जरूरी है कि उच्चपदस्थ अधिकारियों के लिए सरकारी आवास की इस तरह की व्यवस्था, हमारे देश की व्यवस्था मेें एक नियम है, अपवाद नहीं। अपवाद वह है, जिसका केजरीवाल की पार्टी ने वादा किया था, लेकिन पालन नहीं कर पाए—सरकारी आवास नहीं लेना। लेकिन, केजरीवाल के शीश महल का ताना देने का कम से कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई हक नहीं बनता है, जो खुद सरकारी आवास की ऐसी ही सुविधा का उपयोग कर रहे हैं और किसी भी तरह से, उक्त शीश महल से कमतर दर्जे की सुविधा का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
चूंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास के रिनोवेशन के मामले को इतना उछाला जा रहा है, इसका पता लगाना भी दिलचस्प होगा कि क्या पिछले दस साल से ज्यादा में, नरेंद्र मोदी के सरकारी प्रधानमंत्री आवास पर भी कोई रिनोवेशन के काम हुए हैं? और अगर हुए हैं तो उन पर कितना खर्च हुआ था? बेशक, मोदी से संबंधित दूसरी तमाम जानकारियों की तरह, यह जानकारी भी सात पर्दों के पीछे छुपा कर रखी जा रही होगी और उसका बाहर निकलना आसान नहीं होगा। लेकिन, आवास आदि की सरकारी व्यवस्थाओं की थोड़ी भी जानकारी रखने वाले सभी लोग जानते हैं कि दस साल के इस अर्से में प्रधानमंत्री आवास में भी रिनोवेशन का काफी कुछ काम हुआ होगा, जिस पर लाखों में नहीं, करोड़ों रुपए में ही खर्चा हुआ होगा।
इसे देखते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह एक ओर अपने चार करोड़ गरीबों के पक्के घर बनवाने, किंतु अपने लिए एक घर नहीं बनाने और दूसरी ओर केजरीवाल के अपने लिए शीश महल बना लेने को आमने-सामने खड़ा करने की कोशिश की है, वह और भी कपटपूर्ण हो जाता है। जैसा कि हमने पीछे कहा, केजरीवाल के सरकारी आवास की तरह, नरेंद्र मोदी को भी सारी सुख-सुविधाओं से लैस सरकारी आवास मिला हुआ है और इस संदर्भ में अपने लिए एक घर नहीं बनवा पाने के मोदी के कथित त्याग की कोई प्रासंगिकता नहीं है। यही नहीं, जहां तक जनता के पैसे की अपने आवास पर फिजूलखर्ची का सवाल है, जो पहली नजर में दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास के रिनोवेशन में हुई लगती है, इससे कम से कम दस गुना ज्यादा खर्चा प्रधानमंत्री के उस प्रस्तावित आवास पर होने जा रहा है, जो नये सेंट्रल विस्टा के हिस्से के तौर पर बनने जा रहा है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जो प्रधानमंत्री मोदी, गरीबों के आवास बनाने की अपनी उपलब्धि का ढोल पीटते हुए, अपना एक घर नहीं बनाने के अपने त्याग की बार-बार याद दिलाते हैं, स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार एक अलग प्रधानमंत्री आवास बनवा रहे हैं और तमाम राजनीतिक विरोध को अनदेखा कर के, बनवा रहे हैं।
याद रहे कि अब तक के सारे प्रधानमंत्री, अस्थायी आवास व्यवस्थाओं में ही काम चलाते आए थे। जाहिर है कि ये आवास व्यवस्थाएं भी पूरी तरह से उपयुक्त और सारी सुविधाओं से संपन्न रहीं होंगी, फिर भी एक अलग प्रधानमंत्री आवास नहीं थीं। इस माने में नरेंद्र मोदी ही हैं जो प्रधानमंत्री के नाते अपना अलग घर बनवा रहे हैं और 460 करोड़ में बनवा रहे हैं, जिसे सोने का महल भी कहा जा सकता है। पुन: इस संबंध में बहुत कम जानकारियां ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, जिनमें एक जानकारी यह भी है कि यह प्रधानमंत्री महल, विशेष सुरंगों के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़ा होगा। ऐसा भी अनुमान है कि इस महल में एटम बम के प्रहार से बचाव मुहैया कराने वाले बंकर भी होंगे, आदि आदि।
अपने लिए ऐसा सोने का महल बनाते हुए भी, अगर नरेंद्र मोदी कथित शीश महल का मुद्दा उछाल कर केजरीवाल को जनता की नजरों में बेईमान, लालची आदि साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो यही माना जाएगा कि मोदी को विश्वास है कि शीशे के घर में बैठकर दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने की पुरानी सीख, उनके लिए है ही नहीं। कहने की जरूरत नहीं है कि मोदी का यह विश्वास, उनकी इस धारणा पर आधारित है कि कारपोरेटों के धनबल और मीडिया बल के कमोबेश पूर्ण समर्थन के सहारे, वह यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जनता सिर्फ वही देखे,a जो वह तथा उनके साथी दिखाना चाहते हैं। जनता सिर्फ केजरीवाल का शीश महल देखे, पर मोदी का बनता हुआ स्वर्ण महल नहीं देखे और यह भी नहीं देखे कि नरेंद्र मोदी तो पहले ही शीश महल से महंगे, चांदी के महल में तो रहते ही आए हैं।
मोदी राज के रहते हुए भी दिल्ली में दो-दो करारी हारों के बाद, मोदीशाही इस चुनाव में कोई भी दांव उठाकर नहीं रखना चाहती है। चूंकि मोदीशाही के पास उपलब्धियों के रूप में जनता को दिखाने और अपने पक्ष में करने के लिए कुछ है ही नहीं, आम आदमी पार्टी के शासन को भ्रष्ट शासन के रूप में बदनाम करने का दांव, उसकी चुनावी रणनीति का केंद्रीय हिस्सा है। यह खेल सिर्फ प्रधानमंत्री के शीश महल का शोर मचाने तक सीमित नहीं है। वास्तव में इसे एक लंबी योजना के हिस्से के तौर पर अमल में लाया गया है, जिसके महत्वपूर्ण हिस्से के तौर पर कथित शराब घोटाले समेत, भांति-भांति के घोटालों के आरोपों में लपेट कर, आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को पिछले कुछ वर्षों में जेल के काफी चक्कर कटवाए गए हैं। यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए केजरीवाल को, महीनों तक जेल में बंद रखा गया था और अब भी केजरीवाल समेत आप पार्टी के शीर्ष नेता जमानत पर ही जेल से बाहर आए हैं। इसे मोदीशाही द्वारा सत्ताा के दुरुपयोग का क्लासिक मामला कहा जा सकता है।
जाहिर है कि मोदीशाही की कोशिश इस सारे खेल के जरिए, आम आदमी पार्टी को उसी के अपने, भ्रष्टाचार-विरोध के सबसे बड़े हथियार से, जो उसके हाथों में पहले ही काफी भोंथरा हो चुका है, मात देने की है। इसमें शक नहीं कि मोदीशाही की इस रणनीति ने आम आदमी पार्टी की मुश्किलें काफी बढ़ा दी हैं। लेकिन, अंतत: वही सवाल कि भ्रष्टाचार के नाम पर मोदीशाही, आम आदमी पार्टी पर जो आरोप लगा रही है, उनसे भ्रष्टाचार से त्रस्त होने के बावजूद, दिल्ली की जनता कितनी कन्विंस होगी? ऐसा लगता है कि अगर कांग्रेस, चुनाव मैदान में अपनी मौजूदगी का भाजपा को फायदा न उठाने देने में कामयाब रहती है, तो भाजपा इस बार भी, एक अंक की सीमा को लांघने के सिवा और किसी बड़ी कामयाबी के लिए तरसती ही रह जाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। संपर्क : 94250-06716)