मऊगंज जिले में किसानों की समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। ठंड के इस कठोर मौसम में किसान अपनी मेहनत की फसल को बेचने के लिए खरीददारी केंद्रों पर घंटों नहीं, बल्कि दिनों तक इंतजार करने को मजबूर हैं। लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से इस स्थिति को लेकर कोई गंभीर प्रयास नजर नहीं आ रहे। मऊगंज जिले में दो विधानसभा क्षेत्र आते हैं, लेकिन दोनों ही क्षेत्रों के विधायकों ने अब तक खरीददारी केंद्रों का दौरा नहीं किया। किसानों का कहना है कि जब चुनाव आते हैं, तब नेता उनकी समस्याओं का हल ढूंढने की बात करते हैं। लेकिन चुनाव के बाद, इन वादों का कोई अता-पता नहीं रहता। हमारी हालत बहुत खराब है। ठंड में बैठकर इंतजार कर रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। अधिकारी रिश्वत मांगते हैं, और विधायक तो कभी यहां आते ही नहीं। ये नेता सिर्फ वोट लेने आते हैं।”
समस्या की जड़:
- खरीददारी केंद्रों पर अव्यवस्था: फसल तौलने में देरी, उचित मूल्य न मिलना, और भ्रष्टाचार।
- प्रशासनिक उदासीनता: किसान लगातार शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही।
- नेताओं की बेरुखी: जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
क्या किसानों को सिर्फ चुनावी मौसम में याद करना ही राजनीतिक दलों की प्राथमिकता बन गई है? ठंड में तड़पते किसान और भ्रष्टाचार के जाल में फंसी व्यवस्थाएं, दोनों ही लोकतंत्र पर सवाल खड़े करते हैं। क्या किसानों को न्याय दिलाने के लिए कोई आगे आएगा? या फिर यह राजनीति का दौर इसी तरह चलता रहेगा?