देखिए कैसे एक पत्रकार ने यूपी में बुलडोजर को किया बुलडोज, *सुप्रीम कोर्ट से जीती जंग,*

देश भर के पत्रकारों में खुशी की लहर!

नई दिल्ली। यूं तो पत्रकार जीवन भर दूसरों की लड़ाई लड़ता है और इसी में कई बार वह अफसरों की आंखों में चुभने लगता है। कुछ ऐसा ही हादसा हुआ उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में 13 सितंबर 2019 को। इसके बाद सवा पांच साल तक लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक आदेश इस मामले में सुनाया वह न सिर्फ देश भर के 140 करोड़ लोगों के लिए एक नजीर बन गया और राज्य सरकारों के अवैध ढंग से चलने वाले बुलडोजर के पहियों पर एकाएक ब्रेक लगा दिया गया।

अब मामले के याचिकाकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश का देश और विदेश के मीडिया वाले धड़ाधड़ इंटरव्यू कर रहे हैं कि उन्होंने यह लड़ाई कैसे जीती क्योंकि अपने देश में सिस्टम से लड़ना यानी कि लोहे के चने चबाना जैसा है। याचिकाकर्ता पत्रकार के इस जीत की हर कहीं चर्चा हो रही है।
पूरा मामला है 185 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले नेशनल हाइवे 730 के सड़क निर्माण का। सड़क के भ्रष्टाचार के बारे में जब पत्रकार ने खबर लिखी तो वह जिले के मनबढ़ और तानाशाह जिलाधिकारी और नेशनल हाइवे के भ्रष्ट इंजीनियरों की आंखों में खटकने लगा। फिर क्या बिना एक मिनट का वक्त दिये, बिना लिखित नोटिस, बिना परमिशन, बिना वारंट पुलिस वाले घर के अंदर घुसते हैं और घर की महिलाओं और पुरुषों को घसीटकर बाहर निकाल देते हैं और पलक झपकते ही घर और पत्रकार के ब्यूरो कार्यालय को सभी सामानों सहित चारों तरफ से बुलडोजर लगाकर जमीदोंज कर देते हैं।
याचिकाकर्ता पत्रकार ने इसके बाद इस जुल्म व अत्याचार को लेकर सुप्रीम कोर्ट को चार पन्ने का शिकायती पत्र लिखा जिसका स्वत: संज्ञान देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने लिया और इस पत्र को ही रिट में बदल दिया और फिर शुरु हुई मामले की व्यापक सुनवाई।

इस मामले में लंबी अदालती लड़ाई के बाद दिनांक 6 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ का ऐतिहासिक फैसला आया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने अफसरों को पूर्ण रुप से दोषी पाया और कहा कि याचिकाकर्ता मनोज टिबड़ेवाल आकाश का मकान पूरी तरह से जायज था, इसके बाद गैरकानूनी तरीके से पैतृक मकान को ध्वस्त कर दिया गया, जो पूरी तरह से असंवैधानिक कृत्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बेहद सख्त आदेश देते हुए इस मामले में राज्य सरकार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और इसे तत्काल याचिकाकर्ता मनोज टिबड़ेवाल आकाश को देने का आदेश दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक मकान व दुकानों के ध्वस्तीकरण का मुआवजा देने का आदेश दिया।

बड़ी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के अपने आदेश में कहा कि गैर-विधिक ध्वस्तीकरण के समस्त दोषिय़ों के खिलाफ उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक तत्काल FIR पंजीकृत करें और इस केस की विवेचना UP-CBCID से कराने का आदेश दिया।

इसके बाद 30 दिसंबर की रात में महराजगंज कोतवाली थाने में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अपर मुख्य सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक ने मुकदमा अपराध संख्या 629/2024 धारा 147, 166, 167, 323, 504, 506, 427, 452, 342, 336, 355, 420, 467, 468, 471 तथा 120 बी के अंतर्गत FIR पंजीकृत करायी है। इन धाराओं में आजीवन कारावास की सजा का प्राविधान है। इस एफआईआर में तत्कालीन आईएएस- आईपीएस, पीसीएस- पीपीएस, NH-PWD के इंजीनियरों, नगर पालिका के ईओ, पुलिस इंस्पेक्टरों, सब- इंस्पेक्टरों, LIU इंस्पेक्टरों तथा ठेकेदारों सहित 26 नामजद तथा कई अन्य अज्ञात शामिल हैं।

रिपोर्ट अरविंद यादव पत्रकार।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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