
यह प्रक्रिया उच्च पदों, संवेधानिक पदों पर बैठे हुए पर बैठकर देशद्रोह, अथवा भ्रष्टाचार अथवा कदाचार अथवा पदानुकूल आचरण न किये जाने की अवस्था में, उसे पदच्युत करने के लिए रखी गई है।
इसका अधिकार, संसद के पास है।
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संसद यानी लोकसभा, राज्यसभा औऱ राष्ट्रपति तीनो से मिलकर बना-एक निकाय।
संसद, देश की सुप्रीम बॉडी है, नियंत्रक है, जो कानून बनाती है, धन का प्रवाह नियंत्रित करती है, और शासन करती है।
और शासन के सम्पादन हेतु उपयुक्त लोगो को विधि अनुसार नियुक्त करती है। उन्हें निर्दिष्ट कार्य के अधिकार डेलीगेट करती है।
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नियुक्त किये गए व्यक्ति को भी संविधान कुछ उन्मुक्तियां (संरक्षण) देता है, ताकि वह निर्भय होकर काम करे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के जजों, चुनाव आयोग, सीएजी वगैरह को यह उन्मुक्तियाँ हैं।
ऐसे में, जब पदारूढ़ व्यक्ति अपने निर्दिष्ट काम न करे, या निर्दिष्ट दायरे से बाहर जाकर काम करे, तो निकाल बाहर करने का अधिकार सन्सद को है।
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कुछ मामलों में (जज वगैरह के लिए) 10% सांसद (55) महाभियोग का नोटिस दे सकते हैं। कुछ मामलों में (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति वगैरह) के लिए 25% सांसद (करीब 140) नोटिस दे सकते हैं।
नोटिस 14 दिन पहले सर्व होना चाहिए। नोटिस पर बहस होगी, वोटिंग होगी। सिम्पल मैजोरिटी या तीन चौथाई मैजोरिटी, जैसा भी उस पद के लिए लिखा है, उतने वोट मिले तो प्रस्ताव पारित माना जायेगा, और पद से वह व्यक्ति उसी समय च्युत मान लिया जायेगा।
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विपक्ष आज मजबूत है। सँख्या बल में वह सत्ता पक्ष से बस जरा पीछे है। वह नियुक्तियों को प्रभावित करने के पक्ष में नही।
मगर संवैधानिक पदों पर बैठकर, निष्पक्ष, विवादरहित तरीक़े से, कर्तव्य निर्वहन में असफल रहे लोगो को पदच्युत कर सकने की ताकत उसके पास है।
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विपक्ष को कुछ उदाहरण खड़े करने की जरूरत है। संवेधानिक पद पर बैठकर, ताबेदार बने रीढ़हीनो से, राजधर्म को हुजूर के जूतों में रख देने वाली जमात से, छांटकर कुछ के नाम निकालने चाहिए।
कुछ जज हो सकते हैं। कुछ संवैधानिक पदों और आसीन शख्स हो सकते हैं। इनके कर्म, जगजाहिर है, प्रश्नों और संदेहों के अधीन हैं।
महाभियोग लगाना चाहिए।
इन पर लगाए गए आरोप, उस पर पक्ष विपक्ष की बहस, सांसदों के भाषण, सदन में कार्यवाही पर रिकार्ड.. उनके करियर का उचित सबाब होगा।
अगर इम्पीच्ड चाहे तो उसका जवाब, और उस जवाब की बाल की खाल- जनता के सामने आए।
महाभियोग सफल न भी हो पाए, तो भी ये उदाहरण, भविष्य में लोगो को चारण बनने और पथभ्रष्ट होने से रोकने का एक डिटरेंट बनेगा।
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चुनाव आयुक्त अच्छा उदाहरण बन सकते हैं। उनके झोले में बहुत कुछ है- मशीनों को लेकर, डेटा को लेकर, पारदर्शिता को लेकर,
महाराष्ट्र में पार्टियों की टूट पर कोर्ट की कटूक्तियाँ हैं। बाकी तो कांग्रेस कुछ कपिल सिब्बल औऱ सिंघवी भी बताएंगे।
आचार संहिता की अनुपालना कराने में असफलता को लेकर, जिसमे फेलियर के आधे उदाहरणों में स्वयं पीएम कलप्रिट हैं..
अब इस झोले के उठाने का समय आ गया है। मशीन या बैलट का सवाल बाद में, पहले तो राजीव कुमार से छुटकारा पाया जाए।
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