
एटा लोक सभा चुनाव अब दिलचस्प होता जा रहा है समाजवादी पार्टी ने लोकसभा एटा पर शाक्य प्रत्याशी को उतार कर सारे समीकरण बदल कर रख दिए है, शाक्य वोट परंपरागत अब तक भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक माना जाता रहा है, पूर्व सांसद महादीपक सिंह शाक्य के समय से ही शाक्य मतदाता भारतीय जनता पार्टी को ही अपना वोट देते रहे हैं, यह पहली बार है जब अधिकांश शाक्य मतदाताओं ने अपना मन समाजवादी पार्टी को देने का बना लिया है,बस यही से भारतीय जनता पार्टी की मुसीबतें शुरू होती हैं, लोकसभा चुनाव की शुरुआत से ही भारतीय जनता पार्टी की रणनीति विफल दिखाई दे रही है।
क्या किया जाना चाहिए था?
समाजवादी पार्टी ने जब देवेश शाक्य को अपना प्रत्याशी चुना तब भारतीय जनता पार्टी को शाक्य मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी के अपर शाक्य नेताओं से लेकर लोकल स्तर के नेताओं को संतुष्ट कर मतदाताओं में अपनी पेठ बनानी चाहिए थी एबं अन्य पिछडी जातियों के राजनेताओं को अपने पाले मे करना था जिसमे कि पार्टी विफल दिखाई दे रही है!
गलती कँहा हुई?
भारतीय जनता पार्टी के अब तक के प्रचार प्रचार में पूर्व विधयाक ममतेश शाक्य अलग-थलग दिखाई दे रहे हैं, यह क्यों अलग दिखाई दे रहें है? शायद पार्टी का कोई अंदरूनी मामला लगता है, खैर मामला चाहे कुछ भी हो चुनाव जैसे संवेदनशील समय पार्टी को अंतर कलह समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए थे,जो कि नहीं हो रहा, यहां भी चुनावी परिस्थितियों को प्राथमिकता ना देकर ईगो फर्स्ट प्रायरिटी पर रखा है, इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी अपना वोट बैंक बचाने के प्रयास करने की बजाय समाजवादी पार्टी के वोटो में सेंध लगाने की असफल कोशिश कर रही है,यादव नेताओं को पार्टी में लेकर यादव वोट बैंक को अपनी तरफ करने का यह एक असफल तुगलगी प्रयास मात्र है, साफ-साफ शब्दों में यह एक असंभव कार्य है पार्टी के इस प्रयास से पार्टी को मिलने वाला एंटी यादव वोट नहीं मिलेगा जो कि अब तक मिलता था, बल्कि इससे उनका अपना वोट भी प्रभावित हो रहा है इससे पार्टी के मतदान प्रतिशत मे गिरावट होंगी जो अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा , पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी राजवीर सिंह राजू भैया द्वारा अपने सजातीय लोकल स्तर के नेताओं को मनाने का भी कोई प्रयास नहीं किया गया,पार्टी के अंदर अंतर कलह अभी भी चरम पर है, लोकसभा प्रत्याशी राजवीर सिंह राजू भैया के नामांकन करते समय उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक के साथ साथ केशव प्रसाद मौर्य की उपस्थिति भी होती तो वो ज्यादा सार्थक रहती, शाक्य वोटरों के नुकशान होते देख पार्टी ने एक औऱ आत्मघाती कदम उठाया है वो ये कि दो परस्पर राजनीतिक विरोधियों को एक ही मंच पर लाना जो कि पार्टी के लिए नुकशान दायक ही सिद्ध होगा क्योंकि व्यक्ति दिखाने के लिए तो एक मंच पर आ जाता है पर अंदरूनी वेम्नास्य्ता भीतरी नुकशान करेंगी।
अब क्या हो रहा है?
चुनाव की मौजूदा स्थिति को यदि देखें तो एटा लोकसभा की भौगोलिक स्थिति व जातिय समीकरण को ध्यान में रखते हुए अभी तक समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी दिख रहा है,प्रत्याशी का व्यक्तिगत विरोध भी एटा लोकसभा पर देखने को मिल रहा है, एटा पर भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाला वोट मोदी और योगी पर आधारित है और वोटिंग एंटी मुस्लिम एबं एंटी अपराध पर केंद्रित है, इसमें विकास व भ्रष्टाचार एबं रोजगार के मुद्दे नगण्य है।
परिणाम क्या होगा?
यदि ईगो इस चुनाव में प्रायोरिटी पर रहा तो भारतीय जनता पार्टी का वोट प्रतिशत गिरेगा और समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ेगा, गलत रणनीति ओर अंतर्कलह इस परिस्थिति में पहुंच जागयी कि लोग यंहा तक सोच लेंगे कि प्रत्याशी हार जाये पर प्रधानमंत्री मोदी बन जाए, कामोंवेश इन्हीं परिस्थितियों का सामना एक बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी भी कर चुकी है! परिणाम सर्वविदित है कि क्या हुआ,इन परिस्थितियों में यदि भा ज पा इस चुनाव मे जीतती भी है तो रिकार्ड जीत होना बहुत ही कठिन प्रतीत हो रहा है, अब तक रिकार्ड जीत दर्ज करने वाले प्रत्यासी के लिए यह भी एक नैतिक पराजय ही कहलाएगी ओर भारतीय जनता पार्टी में राजवारी सिंह राजू भैया का वजन कम ही होगा जो भविष्य में उनके लिए चिंता जनक होगा!
पर…..अभी भी समय है परिस्थितियों को बदला जा सकता हैं! पर कहीं ऐसा ना हो समझते समझते बहुत देर हो जाए….