
यह ऐतिहासिक घर महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का है। लेकिन यह केवल उनका घर ही नहीं, बल्कि उनकी कर्मभूमि भी थी। इसी जगह से उन्होंने अपने समाज सुधारक कार्यों को आगे बढ़ाया। महाराष्ट्र के पुणे में बना उनका यह घर ‘फुले वाडा’ के नाम से जाना जाता है।
फुले वाडा उनकी क्रांतिकारी, सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था। खासकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के लिए; जिन्होंने सामाजिक मानदंडों को तोड़ते हुए फुले वाडा के परिसर में ही लड़कियों के लिए पहले स्कूल की स्थापना की थी।
ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने सिर्फ शिक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि समाज में मौजूद कई कुरीतियों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाई। उन्होंने छुआ-छूत, बाल-विवाह, सती प्रथा और विधवा विवाह निषेध जैसी कुप्रथाओं का विरोध किया और इनके खिलाफ लड़ती रहीं। इस संघर्ष में उनका साथ उनके पति व सामाजिक क्रांतिकारी नेता ज्योतिबा फुले ने दिया था।
ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने दलितों और वंचितों को न्याय दिलाने के लिए, 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी।जिसकी बैठकें भी फुले वाडा में ही होती थीं। उन्होंने अपने घर के कुओं को उन लोगों के लिए खोल दिया था जिन्हें पहले सार्वजनिक पेयजल का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी।
यही कारण थे कि फुले वाडा महिला शिक्षा, समानता और समाजिक सुधारों का प्रतीक बन गया। अपने इन कार्यों के दौरान ज्योतिबा फुले ने कई पुस्तकें भी लिखी थीं, जो आज यहां की लाइब्रेरी में देखी जा सकती हैं। क्या आप कभी फुले वाडा गए हैं? हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।