
इस विलुप्त रस्म का आज पोस्टमार्टम करते है।
जौनसार बावर और बंगाण में आँखों देखी और मेरे द्वारा भी निभाई हुई एक अद्वितीय प्रथा थी।
जो बेटी, बहिन, दीदी, बुवा के साथ-साथ भांजों के लिए ही नहीं गाँव की हर बेटी के लिए असीम प्रेम का सागर थी।
जिसे जूठा छोड़ना कहते थे ये दो प्रकार का होता था।
१- धर्म जूठा
( खाने को जूठा करने से पहले ही परोसे खाने से कुछ हिस्सा निकाल कर देना) अमुक को देना।
२- जूठा ( निश्चित रूप से खाना खाने के बाद कुछ भाग अपने प्रिय के लिए बचाकर उसे देना) ।
धर्म जूठा कोई भी मेहमान छोड़ सकता था, जो अपनी या अपने गाँव की बेटी/ भांजे के घर आता था।
जूठा केवल पिता-चाचा, ताऊ, दादा, नाना, भाई और मामा ही छोड़ते थे।
इसके पीछे बहुत बड़ा तर्क था कि बेटी को पता नहीं कैसा ख़ाना खिलाया रूखा-सूखा आज मैं अच्छा ख़ाना खिलाता हूँ मुझे बचपन में खिलाने का सुख आज प्राप्त होगा, बेटी को अच्छा भोजन भी।
जूठा इसलिए भी छोड़ा कि जिसके लिये छोड़ा वही खाएगी अन्य जूठे से परहेज़ करेंगे अर्थात् निश्चित था कि जिसको छोड़ा वही खाएगी।
२- जूठा केवल धियाणी, भांजों यानी बेटियों, भांजी-भांजों के लिए ही छोड़ा जाता था । यहाँ मामा का प्रेम अपनी बहिन की औलाद से साफ़ दिखता है । भांजा जब बड़ा हो जाता है तब उसको नही दिया जाता था तब वह ख़ुद जूठा छोड़ने वाला बन जाता था।
ख़ासकर यह महिलाओं और बच्चों के लिये ही दिया जाता था ।
चाहे माघ का पर्व हो, सातों,आठों, शिवरात्रि, या कोई विशेष पर्व हो, या विशेष भोज हो।
विशेष बात !
परोसने वाला भी जानता था की अमुक मेहमान जूठा छोड़ेगा तो ज्यादा परोसा जाता था।
फिर हम अधिक पढ़ लिख गये तब इसको विलुप्त कर दिया ।
विवाह में जूठा
शादी में जब सबको ख़ाना परोसा जाता था तो कोई भी पहले खाना शुरू नही करता था जब तक की धर्म जूठा न निकाला जाता। वधू पक्ष का व्यक्ति सबकी थाली से थोड़ा थोड़ा ख़ाना निकाल कर एक थाली में लेकर वर पक्ष के हवाले यह कह कर देता था कि (येऊ धीयानी भांजों खे ) यानी बेटी, भांजों के लिए, वर पक्ष बड़े सम्मान से लेकर ध्यानी भांजों के हवाले कर देते थे और ध्यानी बहुत प्रसन्नता के साथ खाती थी। यही प्रतिक्रिया वधू पक्ष वाले वर पक्ष के साथ करते थे। टेंट में भोजन करने से अब लगभग विलुप्त हो रहा है ।
में इस असीम पितृ प्रेम की प्रथा का स्वागत करता हूँ, बेटी भी इस प्रेम प्रथा ka स्वागत करेंगी ये भावनाओं का जुड़ाव है।
प्रथा बनी रहे चाहे धर्म जूठा कर बनाये रखें।
यह प्रथा नौजवानों को अभी खलेगी किंतु पिता बनने पर याद आएगी।
ऑनरेरी
डॉ० सुरेंद्र कुमार आर्यन
जौनसार-बावर