करत रंग में भंग(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देखी, देखी, इन मंदिर विरोधियों की शरारत देखी। आखिर, आखिर तक मंदिर के रास्ते में अड़चन डालने से बाज नहीं आ रहे हैं। जब और कुछ काम नहीं आया, तो मोदी जी से मंदिर का उद्घाटन रुकवाने की कोशिश। बताइए, प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही राम लला की फोटो वाइरल करा दी और वह भी खुली आंखों के साथ। और शोर मचा दिया कि यह तो असगुन हो गया। प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही आंखें दिखाई दे गयीं। अब मोदी जी उद्घाटन में क्या करेेंगे? रामलला की आखों की पट्टी तो मोदी जी को ही खोलनी थी। अब क्या आंखों की पट्टी खोलकर, पहले ही सब को दीख चुकी आंखें दोबारा दिखाएंगे?
विरोधियों ने पहले तो सत्तर साल मंदिर बनने ही नहीं दिया। रामलला ने बयालीस-तेंतालीस साल मस्जिद में रहकर काटे। बाद में कार सेवकों के चक्कर में मस्जिद की जगह भी जाती रही और बेचारे को तीस साल से ज्यादा तंंबू में काटने पड़े। रो-पीटकर सुप्रीम कोर्ट से मंदिर बनाने के लिए हरी झंडी मिली और मंदिर बनना चालू हो गया, मोदी जी से मंदिर के उद्घाटन की डेट भी मिल गयी, तभी शंकराचार्यों ने इसका शोर मचा दिया कि अधूरे मंदिर में, पूरी प्राण प्रतिष्ठा कैसे? चुनाव से ठीक पहले का मुहूर्त निकला था, सो मुहूर्त का झगड़ा और पड़ गया। फिर मोदी की यजमानी पर झगड़ा। मंदिर में कौन से रामलला रहेंगे, इस पर भी झगड़ा। और जब वह सब भी नहीं चला, तो अब रामलला की बिना पट्टी की आंखें प्राण प्रतिष्ठा से पहले दीख जाने के असगुन का झगड़ा। विरोधी पूछ रहे हैं कि जब मोदी के खोलने से पहले ही रामलला की आंखों की पट्टी खुल गयी, मोदी जी अब रामलला को कैसे अपनी ही पट्टी पढ़ाएंगे। जिन आंखों ने पहले ही बहुत कुछ देख लिया, उन्हें गोदी मीडिया जो दिखाए, सिर्फ वही देखना कैसे सिखाएंगे!

सुना है कि मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास तो आंखों वाली तस्वीर की खबर से इतने विचलित हो गए कि खुले आम इसकी जांच की मांग करने लगे कि रामलला की खुली आंखों वाली तस्वीर लीक कैसे हो गयी? कौन है अपराधी? अपराधी का पता लगाया जाए। वह तो भला हो विहिप के भाइयों का, जो कर्मकांडियों वाले अंधविश्वासों में नहीं फंसे और बात को यह कहकर वहीं का वहीं दबा दिया कि उन्होंने तो ऑफीशियली कोई तस्वीर जारी नहीं की है। यानी यह तस्वीर फेक है, बल्कि डीप फेक भी हो सकती है यानी ऐसी फेक कि मूल से भी ज्यादा असली लगे। वर्ना पता नहीं पुजारी क्या वितंडा खड़ा कर देता? मालूम पड़ता कि मोदी जी दरवाजे पर खड़े इंतजार ही करते रह जाते और इधर पुलिस लला की खुली आंखों वाली तस्वीर लीक करने वाले को खोजती फिर रही होती!

फिर भी, लगता है कि विरोधियों के हाथ भागते भूत की लंगोटी तो लग भी गयी है। देखा नहीं, कैसे विरोधियों ने हे राम, हे राम कर के, एम्स जैसे बड़े सरकारी अस्पतालों की आधे दिन की छुट्टी भी मरवा दी। अच्छी खासी छुट्टी का एलान हो गया था, विरोधियों ने कैंसल करा दी। अब डाक्टर लोग रामलला में प्राण प्रतिष्ठा करते मोदी जी को देखना छोडक़र, मरीजों को देखने में ध्यान लगाएंगे। यानी मरीजों को देखना, रामलला का उत्सव देखने से भी ज्यादा जरूरी हो गया! डॉक्टर लोग चुनाव में विपक्ष वालों से इसका बदला जरूर लेंगे। और डाक्टर लोग तो शायद माफ भी कर दें, पर रामलला अपने उत्सव में खलल डालने वालों को कैसे भूल जाएंगे!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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