ज्यादा गरमी पड़ने पर फलों के आकार छोटे हो जाते हैं,स्वाद भी कम हो जाता, प्रति पेड़ फलों की संख्या कम हो जाती है

ज्यादा गरमी पड़ने पर फलों के आकार छोटे हो जाते हैं,स्वाद भी कम हो जाता, प्रति पेड़ फलों की संख्या कम हो जाती है

इस बार अच्छे स्वाद के फल ढूंढ़ने पड़ रहे हैं। यह सब जलवायु परिवर्तन के चलते हुआ है।

आने वाले दिनों में इसका और व्यापक असर देखने को मिलेगा। जलवायु में हो रहे परिवर्तन लीची और आम की खेती के लिए गंभीर खतरे के रूप में उभर रहे हैं। पिछले कई वर्षों से अप्रैल से मई माह के बीच का पारा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रह रहा है। जून में तो तापमान 44 डिग्री से भी ज्यादा चल रहा है।

लीची की बात करें, तो फल की तुड़ाई के समय तक अधिकतम तापमान 38 डिग्री से कम होना चाहिए। इस बार अत्यधिक गरमी की वजह से लीची के फल के छिलके झुलस गए हैं। छिलके की कोशिकाएं मर गईं, तो छिलके फट गए। बागों में ही 60 प्रतिशत से अधिक फल फट गए। खेत में नमी नहीं रहने से फल गिरने की प्रक्रिया तेज हो गई। फल जल्दी पकने लगे, इससे बागान मालिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। भारत में 97.91 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है, जिससे कुल 720.12 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में लीची की खेती 36.67 हजार हेक्टेयर में होती है, इससे 308.06 हजार मैट्रिक टन फल प्राप्त होता है। भारत में पैदा होने वाली लीची का लगभग 40 फीसदी बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले बिहार के मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। ज्यादातर किसान लीची की शाही और चाइना किस्म की खेती करते हैं। भारत में लीची 18वीं शताब्दी में चीन से बर्मा होते हुए भारत आई थी। विश्व में लीची उत्पादन का 91 प्रतिशत हिस्सा भारत और चीन का है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते फलों के जल्द खराब होने से स्थानीय स्तर पर ही ज्यादा खपत होती है।

लीची के विकास की हरेक प्रक्रिया में उचित तापमान का होना जरूरी है। तापमान और आर्द्रता से फूल की कली का विभेदन, फूल आना, फल लगना, फलों की गुणवत्ता और स्वाद का विकास काफी प्रभावित होता है। लीची की खेती दिसंबर से फरवरी तक न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अप्रैल से जून तक 38 डिग्री सेल्सियस वाले क्षेत्रों में अत्यधिक सफल होती है। फूल और फल लगने के दौरान तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 37.0 डिग्री सेल्सियस के बीच अच्छा माना जाता है। आजकल तापमान इससे ऊपर रह रहा है।

स्वाद बढ़ाने के लिए लीची के बागान में मधुमक्खी पालन भी बड़े पैमाने पर होता है। लीची के बागों में मधुमक्खी पालन से गुणवत्ता वाले फलों की पैदावार 15-20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। अत्यधिक गरमी हो, तो मधुमक्खियां कम सक्रिय होती हैं। इससे भी गुणवत्ता प्रभावित हुई है और स्वाद भी फीका हुआ है।

इसी तरह आम के फलों के विकास के लिए भी अनुकूल तापमान की स्थिति जरूरी है। ज्यादा गरमी पड़ने पर आम का विकास कम होता है। फलों के आकार छोटे हो जाते हैं। प्रति पेड़ फलों की संख्या कम हो जाती है। सनबर्न या असमान पकने की समस्या भी आती है। इस वर्ष भी यही पाया गया है। यही कारण है, आम के आकार पहले की तुलना में छोटे और फीके रंग में दिख रहे हैं। स्वाद भी पहले जैसा नहीं है। इस बार कई राज्यों में ज्यादा तापमान के चलते आम के मंजर झड़ गए, उत्पादन घट गया। जलवायु परिवर्तन के असर व उच्च तापमान ने फलों को जल्दी पका दिया है। लू की वजह से पके फलों की उम्र कम हो गई है।

उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि लीची और आम के बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया जाए, तभी हम जलवायु परिवर्तन के प्रकोप का सामना कर सकते हैं। सरकार को भी चाहिए कि बागान मालिकों और आम-लीची के उत्पादक किसानों को प्रशिक्षण दे। किसानों को चाहिए कि मंजर लगने के समय से ही बाग का प्रबंधन शुरू कर दें। इससे हम लीची और आम की उन्नत किस्मों का स्वाद ज्यादा दिनों तक पा सकते हैं।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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