नशे के खिलाफ सामूहिक लड़ाई की जरूरत–ज्ञानेन्द्र रावत

नशा न केवल नौजवानों के लिए जहर है बल्कि वह देश और देश के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसकी वजह से युवाओं के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था व सुरक्षा पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इसके सेवन से देश के नौजवानों का भविष्य और जीवन खतरे में पड़ गया है। इसके खिलाफ भले सरकार लाख कार्यवाही का दावा करे, टाप टू बाटम और बाटम टू टाप के नजरिये से पूरे नेटवर्क को खंगालने का दावा करे, डेडिकेटेड टास्क फोर्स के माध्यम से राज्यों में इस पर अंकुश लगाने की दिशा में तेजी का दावा करे, इसके खिलाफ कार्रवाई में 296 फीसदी की बढ़ोतरी और मादक पदार्थों की बरामदगी की मात्रा 100 फीसदी होने के लिए अपनी पीठ ठोंकती दिखे व देश के हर जिले में ड्रग नेटवर्क बनाने की बात करे, के बावजूद देश में मादक पदार्थों का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा। हकीकत यह है कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता जबकि देश के किसी भी कोने से करोडो़ं रुपये की कीमत के मादक पदार्थों की बरामदगी न होती हो।
आजादी के सौंवे साल यानी 2047 तक देश को नशा मुक्त करने के प्रधानमंत्री मोदी जी के लक्ष्य को हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती है। सीमा पार से हो रही मादक पदार्थ की तस्करी नारको आतंकवाद है। ऐसी घटनाओं से सीमा की सुरक्षा में सेंध लग सकती है। इसको हासिल करने के लिए सभी राज्यों और उनकी एजेंसियों को मिलकर काम करना होगा। यदि हम योजना बनाकर काम करेंगे तो निश्चित ही हमें सफलता मिलेगी। सरकार के प्रयास भविष्य में कितने कामयाब होंगे, यह इसी बात पर निर्भर है कि मादक पदार्थ तस्करों के खिलाफ यह लडा़ई सामूहिक रूप से योजना बद्ध रूप से लडी़ जाती है या नहीं। यदि ऐसा हुआ और इस लड़ाई में तटीय राज्यों और केन्द्र ने समन्वय पूर्वक अभियान चलाया तो यह कहने में कोई संदेह नहीं कि उस दशा में देश की युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त से बचाया जा सकता है।