
नगर निकाय चुनाव सिर पर, जुबानी खैरात बांटने वाले एटा की जनता के रहनुमा गायब
एटा। नगर निकाय चुनाव सिर पर आ गये हैं लेकिन एटा की जनता को जुबानी करोडों की खैरात बांटने वाले रहनुमा अब तक गायब हैं। जो कुर्सी पर अब तक हैं वे अन्य दलों के नेताओं, सभासदों और पिछले अधिशासी अधिकारी द्वारा काम न करने देने का रोना रो रहे हैं। यह तो सच है कि पिछले पांच सालों के एटा में विकास कार्य धरातल पर दिखाई नहीं दे रहे जबकि राकेश गांधी के कार्यकाल में जितने विकास कार्य हुए थे उसी गति से विकास का पहिया चलता रहता तो एटा भी अगड़े जिलों की पंक्ति में खड़ा होता।
अब नगर की जनता का एक सवाल है कि पिछले पांच वर्षों में विकास के लिए आई धनराशि आखिर कहां चली गई? लोगों में चर्चा है कि अन्य दलों के नेताओं, सभासदों और अधिशासी अधिकारी ने काम नहीं करने दिया तो नगरपालिका के वाहनों के लिए डीजल और नगर में लगाये गये अतिरिक्त सफाई कर्मचारियों के नाम पर धनराशि का आहरण कैसे होता रहा? नगर की गलियों में प्रकाश व्यवस्था ध्वस्त है लेकिन चेयरमैन द्वारा हजारों लाइटें लगवाने का दावा किया जाता रहा है। घने कोहरे में बिना लाइट के खड़े बिजली के खम्भे तक दिखाई नहीं देते।
ठंडी सड़क के काली मंदिर से शांतीनगर के काली मंदिर तक सड़क पर बहता नालियों का पानी स्कूल जाते नौनिहालों की परेशानी का कारण बना हुआ है वहीं जमीन के भीतर बिछी पानी की पाइप लाइन से जगह-जगह सड़क फोड़कर बहता पानी एक ओर सड़क में गडढ़े बना रहा है तो दूसरी ओर केन्द्र सरकार की ओर से चलाई गई ‘हर घर नल से जल’ योजना को भी पलीता लगा रहा है। दो माह पूर्व तक घरों में पहुंचने वाला पानी जगह-जगह से पाइप टूटने की वजह से प्रेशर कम होने के कारण अब घरों तक नहीं पहुंच पा रहा है। जबकि नगर निकाय चुनाव लड़ने के इच्छुक तथा करोड़ों की जुबानी खैरात बांटने वाले जनता के रहनुमाओं को यह मालूम है कि काली मंदिर से शांतीनगर तक जितने भी मौहल्ले बसे हुए हैं उनमें जमीन से खारा पानी निकलता है ऐसी स्थिति में नगरपालिका के पानी का घरों तक पहुंचना बहुत ही आवश्यक है।
अब तक हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण का निर्धारण न हो पाने के कारण स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है लेकिन इतना तो निश्चित है कि चाहे नगर निकाय की सीट आरक्षित हो अथवा सामान्य, चुनाव लड़ने के लिए तो हर वर्ग का कोई न कोई व्यक्ति पहले से ही तैयारी कर रहा होगा। फिर जो व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं वह जनता की समस्याओं की अनदेखी क्यों कर रहे हैं? क्या जनता की सेवा चेयरमैन बनकर ही की जा सकती है? पूर्व चेयरमैन राकेश गांधी ने तो बिना चेयरमैन बने ही एटा में हजारों कन्याओं के विवाहों में दहेज का सामान दिया, गलियों में अपने पैसे से मिट्टी डलवाई, बिजली के खम्भे लगवाये और भी अनेकों प्रकार की जनसेवा की तब कहीं वह प्रथम प्रयास में ही चेयरमैन बन पाये। चेयरमैन बनने के इच्छुक अन्य लोगों को भी राकेश गांधी की तरह पहले से जनसेवा करनी चाहिए।