कांग्रेस के इस घर को आग
लग गई घर के चिराग से…
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ठीक उस वक्त जब सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की पदयात्रा की दिल को छू लेने वाली तस्वीरें हर कुछ घंटों में सामने आ रही थीं, और भारत जोड़ो यात्रा से राहुल विरोधियों में एक बेचैनी फैल रही थी, कांग्रेस पार्टी के भीतर से भी पार्टी की इस मुहिम को आग लग गई। अभी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा भी नहीं गया है, और राजस्थान में नए मुख्यमंत्री बनाने के लिए सोनिया गांधी की ओर से भेजे गए पर्यवेक्षक पहुंचे, और वहां कांग्रेस विधायकों में बगावत हो गई। शायद कांग्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा कि राज्य के विधायकों ने हाईकमान के भेजे पर्यवेक्षकों से मिलने भी इंकार कर दिया। अभी तक की ताजा खबर के मुताबिक पार्टी के दो बड़े पदाधिकारी और वे पर्यवेक्षक दिल्ली लौट जा रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने वाले, सोनिया परिवार के भरोसेमंद अशोक गहलोत ने भी राज्य के कांग्रेस विधायकों के बागी तेवरों को अपने से बेकाबू बता दिया है, और राज्य के 107 कांग्रेस विधायकों में से 90 ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को दे दिए हैं। इन सबका कहना है कि किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता जिसने पहले भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराने की कोशिश की थी। जाहिर है कि उनका निशाना मुख्यमंत्री पद के दावेदार सचिन पायलट हैं जिन्होंने 2020 में एक बार अपने कुछ विधायकों को लेकर राज्य के बाहर डेरा डाला था, और मुख्यमंत्री गहलोत को हटाने या उनकी सरकार गिराने की कोशिश की थी। तब किसी तरह हफ्तों की मशक्कत के बाद उन्हें शांत किया गया था, और ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस हाईकमान गहलोत के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी जगह पर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनवा सकेगी। लेकिन अब ऐसा लगता है कि राजस्थान कांग्रेस में सचिन पायलट का समर्थन दर्जन भर कांग्रेस विधायकों तक ही सीमित रह गया है, यह एक और बात है कि उनकी बगावत की बिना पर हो सकता है कि भाजपा राज्य में सत्ता पलट की कोशिश कर सके। कांग्रेस हाईकमान से पहली बगावत तो तब नजर आई जब दिल्ली से गए दो बड़े पर्यवेक्षक मुख्यमंत्री निवास पर कांग्रेस विधायकों का इंतजार करते रहे, और उन्होंने वहां जाने से इंकार कर दिया, एक दूसरी जगह मिले, और विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे दे दिए।
इस मामले को कुछ बारीकी से देखने की जरूरत है। अभी तो अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का फार्म भी नहीं भरा है। और उनकी जगह नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए पर्यवेक्षक राजस्थान भेज दिए गए। अभी कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नतीजा निकलने में कई हफ्ते लग सकते हैं, और राजस्थान विधायक दल के भीतर ऐसा बवाल खुद पार्टी हाईकमान ने खड़ा कर दिया। अब अगर यह सोची-समझी रणनीतिक-धुंध नहीं है, तो फिर यह बड़ी चूक है। और अगर यह एक सोचा-समझा काम है, तो भी यह खासा बड़ा दांव है क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा विधायकों के बीच संख्या का इतना बड़ा फासला नहीं है कि कांग्रेस इतना बड़ा खतरा उठा सके। और आज जब देश में माहौल यह है कि जनता किसी भी निशान पर वोट डाले, उसके चुने विधायक कमल छाप पर ही वोट डालते हैं, तो कांग्रेस के लिए अपने शासन के दो राज्यों में से एक में इतनी बड़ी अस्थिरता खासा खतरनाक काम है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों को यह भी समझ नहीं पड़ रहा है कि कांग्रेस को नया मुख्यमंत्री चुनवाने की इतनी क्या हड़बड़ी थी। अभी तो गहलोत न तो कांग्रेस अध्यक्ष का फॉर्म भर पाए थे, न ही अध्यक्ष का चुनाव हो पाया था। ऐसे में मुख्यमंत्री की कुर्सी तो खाली हुई भी नहीं थी। गहलोत राजस्थान में ही बैठे हैं, और उनका वारिस तय करने दिल्ली से पार्टी पर्यवेक्षक पहुंच गए। यह मामला किसी मरणासन्न आदमी की मिजाज कुर्सी के लिए जाने वाले के हाथों होने वाली विधवा के लिए रिश्ता भेजने जैसा है। और इसका तर्क कांग्रेस के लोग ही बेहतर बता सकते हैं जिन्हें अपनी पार्टी को नुकसान पहुंचाने का कोई बड़ा मौका हाल ही में नहीं मिला था। कोई पार्टी किस तरह अपनी फजीहत कराने में इतनी समर्पित हो सकती है, यह देखना हो तो कांग्रेस को देखना चाहिए। भाजपा पिछले कुछ दिनों से लगातार कांग्रेस के बारे में यह कहती आ रही थी कि कांग्रेस पहले अपनी पार्टी को तो जोड़ ले, फिर देश को जोडऩे की बात करे, और आज वह नौबत आ ही गई। राजस्थान से बैरंग रवाना होने के पहले केन्द्रीय पर्यवेक्षक अजय माकन को यह कहते हुए निकलना पड़ा कि गहलोत गुट के विधायकों ने अनुशासनहीनता की है। अब अगर 102 विधायकों में से 90 को अनुशासनहीन कहने की नौबत आ रही है, तो यह कांग्रेस के लिए या तो शर्मिंदगी की बात है, या फिर बड़े खतरे की।
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के बीच बगावत नई नहीं है, दो बरस पहले भी सचिन पायलट की अगुवाई में एक बगावत हो चुकी है, जिसके बाद यह चर्चा थी कि कांग्रेस ने अपने ही कुछ विधायकों को खरीदकर मामला ठंडा किया था। अब पार्टी के बहुसंख्यक विधायकों के ये बागी तेवर उन अशोक गहलोत की अगुवाई में सामने आए हैं जो कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सोनिया परिवार की पसंद बताए जा रहे हैं। अगर पार्टी अध्यक्ष बनने के पहले गहलोत के ये तेवर हैं, तो पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद क्या वे पूरी तरह बेकाबू, बागी, या अपनी मर्जी के अध्यक्ष नहीं हो जाएंगे? और दूसरी बात यह भी है कि आज जब पार्टी उन्हें पूरे देश का अपना संगठन दे रही है, तब क्या उनकी यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे अपने ही राज्य में अपने ही विधायकों के बीच सार्वजनिक बगावत की ऐसी नौबत न आने देते? यह पूरा सिलसिला कांग्रेस लीडरशिप से बेकाबू संगठन का सुबूत है, और आने वाले दिनों में यह देखना है कि यह राहुल गांधी की पदयात्रा से बनते अच्छे माहौल को किस तरह बर्बाद करेगा।
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