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पितृपक्ष का महत्व
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि हिंदू धार्मिक शास्त्र के अनुसार 16 दिनों तक चलने वाला यह पितृ पक्ष पूरी तरह से हमारे पितरों को समर्पित होता है। इस दौरान हम उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, पूजा, आदि करते हैं। इस दौरान विशेष तौर पर कौवों को भोजन कराया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कौवों के माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंच जाता है। आशीष तिवारी बरिष्ठ ज्योतिषाचार्य लाल किताब
इसके अलावा बहुत से लोग ऐसा भी मानते हैं कि पितृपक्ष में हमारे पितृ ही कौवों के रूप में पृथ्वी पर आते हैं इसीलिए इस दौरान भूल से भी भी इस दौरान उनका अनादर नहीं करना चाहिए और उन्हें हमेशा ताज़े बने भोजन का पहला हिस्सा देना चाहिए।
पितृ पक्ष 2022 श्राद्ध की तिथियां–
10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
11 सितंबर- आश्निव, कृष्ण द्वितीया
12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पष्ठी
16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या
पितृ पक्ष के नियम
पितृपक्ष की यह अवधि जहां पूरी तरह से पितरों को समर्पित होती है वहीं दूसरी तरफ इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष की इस अवधि में यदि खुशी का कोई भी काम किया जाए तो इससे पितरों की आत्मा को कष्ट पहुँच सकता है। ऐसे में इस अवधि के दौरान शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, इत्यादि मांगलिक और शुभ कार्य भी नहीं करना चाहिए। साथ ही मुमकिन हो तो इस दौरान कोई बड़ी चीज भी खरीदने से बचें।
इसके अलावा पितृ पक्ष की अवधि विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिनकी कुंडली में पितृ दोष मौजूद होता है। पितृपक्ष के दौरान आप कुछ विशेष उपाय करके भी इन दोषों का प्रभाव अपने जीवन से कम या दूर भी कर सकते हैं। आशीष तिवारी बरिष्ठ ज्योतिषाचार्य
पितृ पक्ष की इस अवधि में पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है और यह परंपरा हमारे यहां सदियों से चली आ रही है। ,बहुत से लोग (जिनके लिए मुमकिन हो) वह अवंतिका (उज्जैन) और गया भी जाते हैं और पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान करते हैं।
इसके अलावा बहुत से लोग इस दौरान ब्रह्मा भोज करवाते हैं।
बहुत से लोग अपने पितरों की प्रिय वस्तुओं का अपनी यथाशक्ति अनुसार दान पुण्य भी करते हैं।
माना जाता है इन सभी कार्यों को करने से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन पर हमेशा बना रहता है। हालांकि पितृपक्ष में यदि अपने पितरों का श्राद्ध ना किया जाए तो इससे उनकी आत्मा तृप्त नहीं होती है। कहा जाता है इससे उन्हें शांति भी नहीं मिलती है।
आशीष तिवारी बरिष्ठ ज्योतिषाचार्य लाल किताब
पितृ दोष के लक्षण
यदि आपके जीवन में दुख निरंतर बना रहता है या धन का अभाव रहता है तो यह पितृ दोष के लक्षण हो सकते हैं।
सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक साधनों में बाधा उत्पन्न होना पितृ दोष का लक्षण होता है।
अदृश्य शक्तियां यदि आपको परेशान करती है तो यह भी पितृ बाधा के लक्षण होते हैं।
जिन जातकों के जीवन में पितृदोष का साया होता है उनके उनके माता पक्ष के लोगों के साथ संबंध अच्छे नहीं होते हैं।
इसके अलावा पितृपक्ष का साया जिन व्यक्तियों के जीवन में होता है ऐसे लोगों की तरक्की रुक जाती है, समय पर विवाह नहीं होता है, और हो भी जाता है तो उसमें तमाम बाधाएं आने लगती हैं, काम करते में रुकावट आती है, पारिवारिक कलह क्लेश बढ़ जाता है और जीवन एक संघर्ष की तरह हो जाता है।
पितृ दोष कारण
जब किसी जातक के घर के आसपास व्यक्ति मंदिर में तोड़फोड़ हुई हो या पीपल का पेड़ काटा गया हो या पिछले जन्म के पाप की वजह से भी पितृ दोष लगता है।
पूर्वजों से संबंधित आपने कोई गलत काम या पाप किया हो तो इससे भी पितृदोष जीवन में बन सकता है।
यदि व्यक्ति पाप कर्मों में सलंग्न हो तो इससे भी पूर्वज रुष्ट हो जाते हैं और जीवन में पितृदोष का साया बन जाता है।
इसके अलावा यदि आपने कभी भी गाय, कुत्ते, या किसी भी निर्दोष जानवर को सताया हो, परेशान किया हो तो भी पितृ दोष आपके जीवन में लगता है।
पितृ दोष निवारण उपाय
विशेष रूप से पितृपक्ष के दौरान पितरों का नियम पूर्वक श्राद्ध करें। इसके लिए आप हमारे द्वारा परामर्श लेकर या मार्गदर्शन में भी इस पूजा को संपन्न कर सकते हैं।
इसके अलावा रोज सुबह और शाम घर में संध्या वंदन के समय कर्पूर जलाएं।
घर का वास्तु सुधारें और ईशान कोण को मजबूत बनाएं।
हनुमान चालीसा का पाठ करें।
श्राद्ध पक्ष के दिनों में तर्पण करें और अपने पूर्वजों के प्रति अपने मन में श्रद्धा, भक्ति, इज्जत रखें।
अपने कर्म सुधारें।
तामसिक भोजन का त्याग करें और जानवरों को परेशान करना बंद करें।
परिवार में सभी को एक समान इज्जत दें और क्रोध कम करें।
जितना मुमकिन हो कौवों, चिड़ियों, कुत्तों, और गायों को भोजन कराते रहें।
पीपल और बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
केसर का तिलक लगाएं।
???? पंडित आशीष तिवारी बरिष्ठ ज्योतिषाचार्य लाल किताब ????
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